रोज़गार में कमी पर योगी सरकार का रिपोर्ट कार्ड: सच या सरकारी प्रोपैगैंडा
राजेश सचान, संयोजक युवा मंच
उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्रालय ने 2019 में सीएमआईई के उत्तर प्रदेश के बेरोजगारी के डेटा को स्वीकार किया था जिसमें 2018 में 5.92% से 2019 में बढ़कर बेरोजगारी की दर 9.92 % थी(2018 में ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है कि 2017 में 17.5 फीसद से घटकर 2018 में 5.92 फीसद बेकारी की दर हो गई जिसमें 2019 में पुनः करीब दुगना बढ़ोतरी हुई।)। इसके पहले केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने संसद में जानकारी दी थी कि (10 अप्रैल 2017 को जागरण आनलाईन में प्रकाशित) राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की दर 5.8% है, इससे कुछ अधिक उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की दर है जिससे उन्होंने बताया था कि उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में 5.8% व शहरी क्षेत्र में 6.5 % है। अभी तक किसी भी सरकारी-गैरसरकारी डेटा में यह तथ्य नहीं आया है कि मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्तारूढ़ होने के वक्त प्रदेश में बेरोजगारी की दर 17.5% थी, हमारी जानकारी में हाल में सरकार के दावे के पूर्व सरकार कभी भी ऐसा दावा नहीं किया है कि उत्तर प्रदेश में 2017 में बेकारी की दर 17.5% थी।लेकिन हाल में ही अचानक सरकारी प्रोपैगेंडा तेज हो गया है कि प्रदेश में 4 चार साल में 4 गुना बेरोजगारी की दर में कमी आ गई है(17.5% से घटकर 4.1% )।
दरअसल अभी तक सरकारी-गैरसरकारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2017 से आपदा के दौर तक लगातार बेकारी की दर में बढ़ोतरी हुई है तब अचानक 2-3 महीने में ऐसा प्रदेश में कौन सा कायाकल्प हो गया है और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित हो गए इसकी कहीं से भी ग्राउण्ड रिपोर्ट नहीं है। आज 4 साल साल पूरे होने पर अखबारों में पूरे दो पेज का विज्ञापन है, उसमें सिवाय आंकडे़बाजी के कोई दम नहीं है। निवेश के संबंध में बताया गया है कि 4.68 लाख करोड़ के कंपनियों से एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं जो कि सत्य है आगे बताया गया है कि 3 लाख करोड़ के निवेश से परियोजनाएं शुरू। लेकिन यह नहीं बताया गया है कि इन परियोजनाओं में कितना फीसद काम पूरा हो पाया है जबकि ज्यादातर समझौते तो 2018 में इन कंपनियों से किये गए हैं, जमीनी हकीकत यह है कि इन परियोजनाओं में 10-15 फीसद काम पूरा होने की कहीं से भी रिपोर्ट नहीं है।
इसी तरह दावा किया गया है कि एमएसएमई सेक्टर में 1.80 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है, पहले इसी मामले में मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि इस सेक्टर में सरकार के प्रयासों से 1.80 करोड़ नये रोजगार सृजित हुए हैं लेकिन अब विज्ञापन में सिर्फ यह बताया गया है कि एमएसएमई सेक्टर में 1.8 करोड़ लोगों को रोजगार, इससे यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि इस सेक्टर में 2017 में सरकार बनने के पहले कितने लोग लगे हुए थे और इसमें वास्तव में रोजगार सृजित हुए हैं या फिर उसमें कमी दर्ज की गई है। जो जमीनी रिपोर्ट प्राप्त है उसमें नोटबंदी, जीएसटी से लेकर आपदा तक के पीरियड में यह सेक्टर लगातार तबाह होता गया है, प्रदेश में इसमें सबसे बड़ा रोजगार देने वाला बुनकरी और जूता उद्योग अभी तक बेपटरी है। अगर इस सेक्टर में 1.8 करोड़ लोग लगे हैं या रोजगार मिला हुआ है तो इसमें सरकार का क्या योगदान है। सरकार को तो यह जानकारी देनी थी कि इस सेक्टर में 4 सालों में कितने नये रोजगार सृजित हुए हैं।
कुलमिलाकर करीब हर सेक्टर से यही रिपोर्ट है कि रोजगार के अवसरों में कमी दर्ज हुई है। यहां तक कि आपदा के बावजूद मनरेगा योजना में भी 100 दिन की जो काम की कानूनी गारंटी है उसे भी लागू नहीं किया गया। बहुप्रचारित प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार गारंटी योजना का क्या हश्र हुआ , यह जगजाहिर है। मुख्यमंत्री के आफिसियल ट्विटर हैंडल से रोजगार की सरकारी उपलब्धियों का किस तरह से प्रचार किया गया, जिसमें लेखपाल भर्ती प्रकरण में मुद्दा बन जाने पर डिलीट भी करना पड़ा, इसे बताने की जरूरत नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरी को लेकर इसी तरह का प्रचार जोरशोर से जारी है। लेकिन आज प्रदेश में बेरोजगारी की जद में उच्च शिक्षित युवा सबसे ज्यादा है। इन बेरोजगारों की आवाज को बलपूर्वक कुचला जा रहा है। आपने देखा होगा कि किस तरह 24 फरवरी को हजारों छात्र-छात्राओं द्वारा इलाहाबाद में प्रशासन की ईजाजत से हो रहे शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन को अचानक अवैध घोषित कर लाठीचार्ज किया गया, गिरफ्तारी की गई और युवा मंच के पदाधिकारियों को जेल भेजा गया। हालत यह है कि प्रदेश में कहीं पर भी छात्रों को शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन तक की ईजाजत नहीं दी जा रही है। अभी तक छात्रों के सवाल जस के तस हैं और प्रदेश सरकार की उन्हें हल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उलटे शांतिपूर्ण आंदोलन पर दमन ढहाया जा रहा है और युवाओं व प्रदेश की जनता को गुमराह करने की हर मुमकिन कोशिश जारी है जिसमें योगी सरकार कामयाब नहीं होगी|