लोकतंत्र की हत्या कर रही है योगी सरकार, प्रदेश अघोषित आपातकाल: माले
लखनऊ ब्यूरो
भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने लखीमपुर कांड और कृषि कानूनों के खिलाफ 15-16 अक्टूबर को मोदी, शाह, योगी व अजय मिश्रा टेनी के पुतले फूंकने के संयुक्त किसान मोर्चे के आह्वान के मद्देनजर योगी सरकार द्वारा माले समेत विपक्षी कार्यकर्ताओं की प्रदेश भर में की गई गिरफ्तारियों, नजरबंदियों और लगाई गई पाबंदियों की कड़ी निंदा की है। पार्टी ने सभी गिरफ्तार नेताओं की रिहाई और अघोषित आपातकाल को खत्म कर जन अधिकारों को बहाल करने की मांग की है।
माले राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि योगी सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी के जौनपुर जिला प्रभारी गौरव सिंह को 14 अक्टूबर की रात पुलिस ने उनके घर से उठा लिया। इसके दो दिन पूर्व का. गौरव ने एक व्हाट्सएप पोस्ट डाला था कि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का जौनपुर के बक्सा ब्लॉक में कार्यक्रम है और माले उन्हें काला झंडा दिखाकर वापस भेजेगी। गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में किसान नरसंहार केशव मौर्य के दौरे के दौरान ही हुआ था। कार्यकर्ता उप मुख्यमंत्री को कला झंडा दिखाने की तैयारी कर रहे थे कि उनके नेता को पुलिस ने पूर्व संध्या पर ही गिरफ्तार कर लिया। शाम को समाचार देने तक उन्हें रिहा नहीं किया गया है।
का. सुधाकर ने कहा कि इसी तरह, शुक्रवार (15 अक्टूबर) की सुबह रायबरेली में किसान महासभा जिलाध्यक्ष फूलचंद मौर्य और बलिया में माले जिला कमेटी सदस्य नियाज अहमद को भी गिरफ्तार कर लिया गया। सोनभद्र में लकवा के शिकार माले कार्यकर्ता मो. कलीम से भी योगी सरकार को डर था, इसलिए उन्हें भी गिरफ्तार कर राबर्ट्सगंज कोतवाली में बैठा दिया गया। चंदौली में माले जिला सचिव अनिल पासवान और इंकलाबी नौजवान सभा के सचिव ठाकुर प्रसाद व सीतापुर के बिसवां में किसान महासभा नेता संतराम को उनके घरों पर नजरबंद कर दिया गया। गाजीपुर में माले जिला कार्यालय पर प्रशासन ने पुलिस का पहरा बैठा दिया ताकि आंदोलनात्मक कार्यक्रम न हो सकें।
राज्य सचिव ने कहा कि इन पाबंदियों और पहरों के बावजूद तमाम जिलों में मोदी-योगी सरकार के पुतले फूंके गए। उन्होंने कहा कि योगी सरकार की दमनात्मक कार्रवाइयों से माले व जनसंगठनों के कार्यकर्ता डरनेवाले नहीं हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी जब तक नहीं होती, विरोध कार्यक्रम रुकने के बजाय तेज ही होंगे। कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन जारी रहेगा।