गालियों पर ही चर्चा क्यों?
तौक़ीर सिद्दीक़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना कर्नाटक चुनावी अभियान 29 अप्रैल से शुरू किया। राजनीतिक पंडितों के साथ आम लोगों में भी इस बात को लेकर बड़ी चर्चा थी कि आखिरकार प्रधानमंत्री कर्नाटक के चुनावी अभियान से इतना दूर क्यों हैं, जबकि चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले उन्होंने किसी न किसी बहाने कर्नाटक के सात आठ दौरे कर डाले थे. चुनावी अभियान में इस देरी के लिए लोगों में एक मज़ाक चल रहा था कि कांग्रेस की तरफ से इस बार अभी तक किसी ने कोई ऐसा शब्द नहीं निकाला जो उनका चुनावी मुद्दा बन सके. लोगों का यही कहना था कि जैसे ही उन्हें अपने बारे में किसी कांग्रेस नेता का कोई ऐसा शब्द मिल जायेगा जिसे वो चुनावी हथियार बना सकें, वो दुसरे ही दिन से कर्नाटक के दौरे शुरू कर देंगे और हुआ भी कुछ ऐसा ही. जैसे ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना ज़हरीले सांप से की, प्रधानमंत्री कर्नाटक के चुनावी रण में कूद पड़े.
बीदर में अपनी पहली चुनावी रैली में उम्मीद के मुताबिक उन्होंने अपने भाषण का मुख्य मुद्दा गालियों को बनाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें अबतक 91 गालियां दी हैं. हैरानी होती है कि कोई गालियों को किसी अवार्ड की तरह संभालकर रखता है. आम तौर पर लोग अपने सम्मानों को याद रखते हैं, उनकी संख्या को भी याद रखते हैं कि उन्हें जीवन में अबतक कितने सम्मान मिले। यह पहली बार सुनने को मिल रहा है कि किसी को गालियों की संख्या भी याद है और वो बाकायदा पब्लिक मीटिंग में इस बात का ज़िक्र कर रहा है कि अगले ने उसे इतनी बार गालियां दीं।
प्रधानमंत्री बीदर में ही नहीं रुके, रविवार को कोलार में भी उनके भाषण का मुख्य हिस्सा खरगे के ज़हरीले सांप वाला बयान ही था, हालाँकि खरगे ने उसी दिन स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने मोदी के बारे में नहीं उनकी विचारधारा के बारे में कहा है, लेकिन उनकी सफाई का कोई मतलब नहीं। हालाँकि उन्होंने अपने भाषण में इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि उनकी पार्टी के एक पूर्व विधायक ने खरगे की टिप्पणी का बदला लेते हुए सोनिया गाँधी को विषकन्या बता दिया।
सवाल यहाँ यही उठता है कि क्या मोदी जी हर चुनाव सिर्फ इस बात पर लड़ेंगे कि विपक्षी नेता उन्हें बुरा कहते हैं, विवादित टिप्पणी करते हैं. यहाँ पर ये गिनाने की ज़रुरत नहीं कि चाय वाले से लेकर ज़हरीला सांप वाले बयान तक, लगभग हर चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी हथियार विपक्ष द्वारा उनके विरोध में कहे गए शब्द ही होते हैं. यह अलग बात है कि उनकी पार्टी के नेता , उनकी सरकार के मंत्री किस तरह के विवादित और अपमानजनक बयान लगातार देते रहते हैं।
कर्नाटक के चुनाव का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार है, ये किसी से छिपा नहीं है. बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा शासित सरकार के बारे में कर्नाटक के लोगों में एक आम राय है कि ये 40 परसेंट कमीशन वाली सरकार है. कांग्रेस भाजपा के इस भ्रष्टाचार को भरपूर तरीके से चुनावी मुद्दा बनाये हुए है. उधर प्रधानमंत्री जी मौजूदा करप्शन पर चुप्पी साधे हुए हैं. उनके चुनावी भाषण “मोदी तेरी कब्र खुदेगी”, ज़हरीला सांप” के आगे पीछे ही घूम रहे हैं. वो एकबार फिर अपने को प्रताड़ित साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। हैरानी होती है जब खुद को विश्व गुरु कहलाने वाले प्रधानमंत्री जी लोगों से कहते हैं कि कांग्रेस उन्हें गालियाँ दे रही है, आप लोग कांग्रेस को सबक सिखाइये। दो बातें एकसाथ कैसे हो सकती हैं, या तो आप मज़बूत हो सकते हैं या फिर असहाय।
खैर प्रधानमंत्री मोदी सात मई तक कर्नाटक में लगभग 20 रैलियां और तीन-चार रोड शो करेंगे और इस बात की पूरी सम्भावना है कि उनके भाषणों का मुख्य अंश गालियाँ ही होंगी। देखने वाली बात ये होगी कि उनके विक्टिम कार्ड का कर्नाटक के लोगों पर कितना असर पड़ेगा। वैसे अभी तक मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उसके हिसाब से कर्नाटक में भाजपा की हालत अच्छी नहीं है, अगले आठ दिनों में प्रधानमंत्री की चुनावी रैलियों, रोड शोज़ और गालियों की चर्चा से संभावित नुक्सान की कितनी भरपाई हो पायेगी इसका पता 13 मई को चल जायेगा।