पहले कौन साफ करता था नदियां….
लाखों करोड़ों सालों से ये नदियां धरती पर यूं ही बह रही हैं। कभी-कभी वे अपना रास्ता बदल देती हैं। और कभी-कभी आस-पास की धरती को अपने आगोश में समेटने का प्रयास करती हैं। इन लाखों-करोड़ों सालों में वो कौन था जो इन नदियों को साफ करता था।
वो कौन था जिसके चलते यह साफ, नीला पानी कल-कल करके बहता रहता था। किसके चलते इसका पानी इतना निर्मल बना हुआ था कि उसे बेहिचक कोई भी अंजुरी में भरकर पी सकता था।
हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि गंदा होने से पहले नदियां साफ थीं। वे स्वच्छ थीं। निर्मल थीं। लॉकडाउन ने नदियों के बारे में भी कुछ खुलासे किए हैं। नदियों में होने वाला प्रदूषण मुख्यतः तीन तरह का है। नदियों में उद्योगों से निकला हुआ गंदा पानी गिरता है। नदियों में घरों से निकलने वाला सीवरेज गिरता है। करोड़ों की संख्या में नहाने, कपड़ा धोने, पूजा सामग्री फेंकने, घर निर्माण का मलबा फेंकने से नदिया गंदी होती हैं।
उपरोक्त तीनों तरीकों से नदियां गंदी होती हैं। लॉकडाउन के चलते इन तीन में दो गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। उद्योगों को बंद कर दिया गया है। इसलिए इसका गंदा पानी नदियों में नहीं गिर रहा है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना का दिल्ली से गुजरने वाले हिस्से में हर दिन साढ़े तीन करोड़ लीटर से (35 मिलियन लीटर पर डे) गंदा पानी इस समय नहीं गिर रहा है। इसके चलते नदी थोड़ा साफ हुई है। लेकिन, घरों से निकलने वाला सीवरेज अभी भी नदियों में ही गिरता है।
सीपीसीबी की गंगा के बारे में रिपोर्ट भी कुछ ऐसे ही खुलासे करती है। चार प्रदेशों से गुजरने वाली गंगा नदी में कुल मिलाकर 3500 मिलियन लीटर पर डे पानी गिरता है। इसमें से 1100 एमएलडी पानी का शुद्धीकरण करने के बाद गंगा में छोड़ा जाता है। जबकि, 2400 एमएलडी पानी बिना शुद्धीकरण के गंगा में छोड़ दिया जाता है। लॉकडाउन के बाद पूरे उद्यम बंद हैं। इसके चलते फिलहाल गंगा में 300 एमएलडी गंदा पानी गंगा में नहीं जा रहा है। इसके चलते नदी कुछ हद तक साफ दिख रही है।
लेकिन, घरों से निकलने वाले सीवरेज का बड़ा हिस्सा अभी भी नदियों में जा रहा है। नदी के घाट सूने हैं। यहां पर नहाने वाला कोई नहीं। धोबी घाट पर कपड़े नहीं धोए जा रहे। पूजन सामग्री भी नहीं डाली जा रही है। निर्माण सामग्री का मलबा भी नहीं डाला जा रहा है। लेकिन, घरों से निकलने वाला सीवरेज अभी भी नदियों को नाले में तब्दील किए हुए हैं।
जाहिर है कि बिना इसका हल निकाले नदियों को साफ नहीं किया जा सकता। अगर हम अपना गंदा पानी नदी में नहीं डालेंगे चाहे वो उद्योगों से निकलने वाला हो या घरों से, तो नदी अपने आप साफ हो जाएगी।
इस कचरे की व्यवस्था किए जाने की जरूरत है। नदियां कोई सीवरेज का नाला नहीं हैं। जो कचरे को बहाकर समुंदर में ले जाने का काम करें।
लाखों-करोड़ों सालों से कोई नदियों को साफ नहीं करता था, बस उसे इस कदर गंदा करने वाला कोई नहीं था।