पश्चिमी यूपी: चुनावी चौसर पर हो गए कई बादशाह पैदल
तौक़ीर सिद्दीक़ी
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की रणभेरी बज चुकी है, इस महाजंग की शुरुआत पश्चिमी यूपी से होने वाली है जहाँ पहले दौर का चुनाव होगा। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लगभग सभी मुख्य पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है. किसान आंदोलन के बाद पश्चिमी यूपी पर सब की निगाहें हैं. हर कोई जानना चाह रहा है कि किसान आंदोलन का सत्ताधारी पार्टी पर क्या असर पड़ने वाला है. पश्चिम यूपी में चूंकि मुसलमान काफी संख्या में रहते हैं और चुनाव को पूरी तरह से प्रभावित करने की पूरी हैसियत रखते हैं इसलिए भाजपा को छोड़कर दूसरी पार्टियां मुस्लिम उम्मीदवारों पर काफी दांव लगाती हैं. ऐसे में कई मुस्लिम घराने ऐसे हैं जो अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं और जिनके परिवार से लोग लगातार विधानसभा और संसद में नुमाइंदगी करते आ रहे हैं, यह अलग बात है कि कभी इस पार्टी से टिकट नहीं मिला तो दूसरी पार्टी का रुख कर लेते हैं.
लेकिन इस चुनाव में इन्हीं में से कुछ प्रभावकारी मुस्लिम राजनीतिक परिवार के स्थापित लोगों को उनकी ही पार्टी ने ज़ोरदार झटका दिया है और इस चुनाव में उनकी हालत कटी पतंग जैसी हो गयी है. ऐसे ही एक उम्मीदवार राणा फैमिली से हैं जो टिकट न मिलने से इतना मायूस हुए कि थाने शिकायत करने पहुँच गए, यही नहीं फूट फूटकर कर रोने भी लगे.
ऐसा ही एक नाम इमरान मसूद का है जिनकी कांग्रेस पार्टी में काफी इज़्ज़त थी, आला कमान के करीबी समझे जाते थे, लगातार चुनाव भले ही हारते रहे हों मगर पार्टी उनको टिकट देती रहती थी. मगर इसबार यूपी कांग्रेस नई तरह की राजनीति कर रही है, लड़कियां लड़ने लगी हैं सो इमरान मसूद साहब को हाथ के पंजे की जगह साइकिल अच्छी लगने लगी. अखिलेश की मौजूदगी में खामोशी से जॉइनिंग भी हुई मगर बात बनी नहीं और जल्द ही रिश्ते टूटने की बात सामने आने लगी. पता चला अब वह बसपा की तरफ ताक रहे हैं मगर बहन जी ने उन्हें घास नहीं डाली। बेचारे घर के रहे न घाट के.
पश्चिमी यूपी में, विशेषकर मेरठ की राजनीति में हाजी याकूब कुरैशी का अपना एक स्थान है, सलमान रश्दी की गर्दन पर इनाम की घोषणा करके काफी मशहूर हुए थे. क्षेत्र के मुसलमानों में एक पहचान है, करीब 25 साल का राजनीतिक जीवन है, अपने सियासी रुतबे के दम पर निर्दलीय विधायक भी बन चुके हैं, मुलायम सिंह सरकार में मंत्री भी रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में याकूब कुरैशी और उनके बेटे इमरान कुरैशी ने बसपा के टिकट पर किस्मत आजमाई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में याकूब कुरैशी मेरठ सीट पर बहुत मामूली वोटों से हार गए थे. 2022 के चुनाव में मायावती ने उनके बेटे इमरान कुरैशी को मेरठ दक्षिण सीट से प्रत्याशी बनाया था लेकिन चुनावी घोषणा होने से एक दिन पहले ही उनका टिकट काट दिया. ऐसे में अब याकूब कुरैशी के बेटे के चुनाव लड़ने पर संकट खड़ा हो गया है.
पश्चिमी यूपी का एक और मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले हाजी शाहिद अखलाक या उनके परिवार का कोई सदस्य इस बार के चुनाव में नहीं है, वजह यही है कि बसपा और सपा दोनों जगह बात नहीं बनी, 40 साल में ऐसा पहली बार होगा जब मेरठ ज़िले का यह बाअसर मुस्लिम परिवार चुनावी मैदान में नहीं होगा।
इसी तरह से बुलंदशहर के बाहुबली नेता भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा भी टिकट से वंचित हैं. टिकट की आस के साथ जल्द वह साइकिल पर सवार हुए थे मगर उनका दांव कामयाब नहीं रहा. बुलंदशहर की सियासत में अच्छी पकड़ के बावजूद सपा ने न तो गुड्डू पंडित को और न ही मुकेश शर्मा को किसी सीट से प्रत्याशी बनाया.
वाकई वक्त बड़ा बेरहम होता है, राजनीति में और भी. कहा नहीं जा सकता कब आपका सूरज डूब जाय, राजनीतिक दलों की चुनावी चौसर पर बादशाह भी पैदल बन जाता है और पैदल को भी बादशाहत मिल जाती है. बस वक़्त वक़्त की बात है.