यूपीएस पेंशन स्कीम: बड़े धोखे हैं इस राह में
(आलेख : रविंद्र पटवाल)
अपने पोलैंड और यूक्रेन के दौरे से लौटते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट की बैठक कर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत होने के बाद एक नए पेंशन स्कीम को मंजूरी दे दी। अभी तो इस बारे में चर्चा ही चल रही थी कि सरकार जल्द ही एनपीएस स्कीम पर पुनर्विचार कर रही है, लेकिन किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि एनडीए सरकार इस बार आम लोगों के बीच बढ़ते असंतोष को इतनी जल्दी से निपटाने के लिए व्याकुल है। इसलिए, पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस), नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) के बाद अब केंद्र सरकार एकीकृत पेंशन स्कीम (यूपीएस) के साथ नमूदार हुई है, जिसे देख कर्मचारी वर्ग के एक हिस्से में ख़ुशी की लहर दौड़ रही थी, लेकिन अब जैसे-जैसे इसके विस्तार में जा रहे हैं, तो कई लोगों को तो एनपीएस स्कीम ही बेहतर जान पड़ रही है।
हम यहाँ पर ओपीएस, एनपीएस और यूपीएस का तुलनात्मक अध्ययन करने के बजाय फिलहाल यही समझते हैं कि वे कौन से प्रमुख झटके यूपीएस में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के कर्मचारियों को लगने वाले हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके सामने जो पेश किया गया है, वह देखने में तो ओपीएस जैसा नजर आता है, लेकिन वास्तविकता में यह कर्मचारियों की जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई पर लूट की योजना कहीं अधिक है। इसलिए हम सिर्फ ग्रेच्युटी और रिटायरमेंट के बाद पेंशन फंड से मिलने वाली एकमुश्त राशि पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
ग्रेच्युटी पर डाका
सबसे पहले ग्रेच्युटी के मुद्दे पर गौर करते हैं। इसके तहत अभी तक 35 वर्ष सेवाकाल पूरा करने वाले व्यक्ति को सेवानिवृत्त होने पर 20 लाख रूपये की रकम (25 लाख रूपये तक) एकमुश्त मिला करती थी। यूपीएस में इसमें तगड़ी गिरावट देखने को मिलने वाली है। उदाहरण के लिए, यदि सेवानिवृत्त के समय किसी कर्मचारी का अंतिम वेतन 1 लाख रूपये है, और उसने 35 वर्षों तक अपनी सेवाएं प्रदान की हैं तो ग्रेच्युटी के तौर पर इसकी गणना इस प्रकार से की जाएगी।
अंतिम वेतन 100000 रुपए / 10 = 10,000x 70 = 7,00,000 रुपये। इसमें आपके समूचे 35 वर्षीय कार्यकाल को छमाही में बांटा गया है, जिसके कारण ग्रेच्युटी को हर छमाही के हिसाब से 70 आँका गया है। यदि कार्यकाल 25 वर्ष का होता है तो उस केस में यह रकम 50 छमाही के हिसाब से 5 लाख रुपये रह जाएगी। इस प्रकार कह सकते हैं कि हर कर्मचारी से सरकार ने ग्रेच्युटी में 15 लाख रुपये तो हजम ही कर लिए।
सेवानिवृत्त होने के बाद मिलने वाली एकमुश्त रकम सफाचट है
यह दूसरा मामला है, जिस पर लोगों का ध्यान पहले गया है और यह तो एनपीएस के मुकाबले भी बेहद भयावह है। एनपीएस स्कीम के तहत कर्मचारी को अपने वेतन का 10% अंशदान पेंशन फंड में देना पड़ता था, जिस पर सरकार भी बराबर का अंशदान जमा कराती थी, जिसे 2019 में सरकार ने बढ़ाकर 14% कर दिया था। यूपीएस में तो इसे और भी बढ़ाकर सरकार ने 18.5% कर दिया है।
लेकिन ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है! यही तो असली कैच है। रिटायरमेंट पर आपको इस फंड में से मात्र 10% रकम ही एकमुश्त मिलने जा रही है, बाकी 90% फंड सरकार के ही कब्जे में रहने वाला है। इसे ऐसे समझते हैं।
मान लेते हैं कि आपका औसत वेतन 1 लाख रुपये प्रति माह है। पेंशन फंड के लिए आपके वेतन से 10% अर्थात 10 हजार रुपये का अंशदान होगा और सरकार की ओर से 18,500 रुपये का योगदान किया जाएगा। 35 वर्ष की सर्विस पूरी करने के बाद (बिना ब्याज के भी) यह रकम 1 करोड़ 19 लाख 70 हजार रुपये होती है। एनपीएस स्कीम के तहत कर्मचारी को 60% हिस्सा रिटायरमेंट के वक्त एकमुश्त दे दिया जाता था, मतलब कि 71 लाख 82 हजार रुपये आपको पेंशन फंड से एकमुश्त मिल जाते, और बाकी 40% से आपको शेयर बाजार में निवेश से जो कुछ भी मिलता, वह मासिक पेंशन के तहत मिलता रहता, जो कि ओपीएस की तुलना में बेहद नाकाफी था।
लेकिन यूपीएस स्कीम के तहत इतनी बड़ी धनराशि में से कर्मचारी को मात्र 12 लाख रुपये ही एकमुश्त रकम हाथ आएगी। आपके संचित धन का 90% हिस्सा, अर्थात 1।20 करोड़ रुपये अब आप भूल जायें। इतनी बड़ी रकम को गंवाकर अब आपको एनपीएस की तुलना में एक सम्मानजनक मासिक पेंशन मिलने वाली है। यह रकम क्या होगी? यदि आपकी बेसिक सैलरी आखिरी सेवाकाल में औसत 50 हजार रुपये है तो आपको 50% अर्थात 25,000 रुपये मासिक पेंशन पाने का हकदार बना दिया गया है। लेकिन आपने गंवाया कितना?
मान लेते हैं कि देश में जीवन प्रत्याशा दर सरकारी कर्मचारियों को हासिल बेहतर भोजन और स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते 67 के बजाय 75 वर्ष है। ऐसे में अगले 15 वर्षों तक 25000+DA की रकम 45-50 लाख रुपये से अधिक नहीं होती। इसका अर्थ हुआ कि बाजार से मिलने वाले लाभ की तो बात ही छोड़ दें, आप सरकार से पेंशन फंड में जमा अपनी मूल रकम का भी 50% इस्तेमाल करने से पहले इस दुनिया से विदा हो सकते हैं। इसके अलावा, पेंशनधारक की मृत्यु हो गई तो परिवार को मिलने वाली राशि घटकर 60% अर्थात 15 हजार रुपये हो जाएगी।
ओपीएस में न तो कर्मचारी कोई कोई अंशदान देना होता था, और ऊपर से उसे अंतिम तनख्वाह की आधी रकम के बराबर का पेंशन मिला करता था, जिसे भाजपा राज में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 2004 से खत्म कर एनपीएस स्कीम के तहत नए कर्मचारियों को डाल दिया था। धीरे-धीरे एनपीएस को सभी राज्य सरकारों ने भी अपना लिया, सिवाय पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल के, क्योंकि इन राज्यों में वामपंथी सरकारें थीं। बाद में त्रिपुरा में वाम मोर्चा सरकार के पतन के बाद भाजपा ने आते ही एनपीएस स्कीम को लागू कर दिया था।
2014 तक कांग्रेस ने भी एनपीएस के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई थी, लेकिन 2014 और 2019 में दो-दो बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दुत्ववादी विचारधारा की लहर की काट के लिए कांग्रेस ने कुछ राज्यों राजस्थान, हिमाचल और आप पार्टी ने पंजाब में ओपीएस स्कीम को बहाल कर दिया है, लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्रालय जब तक कर्मचारियों की पुरानी जमा राशि को इन राज्यों को वापस कराने के लिए कदम नहीं उठाती, यह मामला उलझा रहेगा।
दो दिन पहले जब यूपीएस स्कीम की घोषणा की गई तो अधिकांश को लगा कि मोदी सरकार आगामी चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह फैसला लेने को मजबूर हुई है। लेकिन अब जैसे-जैसे धुंध साफ़ हो रही है, ऐसा लगता है कि असल में यह सारा खेल तो लाखों करोड़ रुपयों को कॉर्पोरेट के लिए दबाकर रखने का खेला हो रहा है।
सीटू के राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन ने यूपीएस स्कीम को ख़ारिज करते हुए खुलासा किया है कि इस नई स्कीम के माध्यम से मोदी सरकार का मकसद सिर्फ बड़े पूंजीपतियों के हितों को साधने से अधिक कुछ नहीं है। उनके मुताबिक, एनपीएस के तहत कुल 31 जुलाई 2024 तक देश के कुल 99,77,165 कर्मचारियों की 10 लाख 53 हजार 850 करोड़ रुपये के पेंशन फंड को Asset under Management (AUM) के तहत डाला गया है।
दसियों लाख करोड़ रुपये की रकम को पिछले 20 वर्षों के दौरान शेयर बाजार में बढ़कर 8-10 गुना तो हो ही जाना चाहिए था। हमारा शेयर बाजार तो कोविड-19 के बाद से कई गुना बढ़ चुका है, लेकिन एनपीएस के तहत सरकारी बाबुओं को 1200 रुपये से लेकर 5000 रुपये मासिक पेंशन से तो यही समझ आता है कि शेयर बाजार में पैसा डालकर करोड़ों आम भारतीयों की रकम बड़ी पूंजी के हित में डुबाने का ही काम हो रहा है।
पेंशन फंड को विभिन्न फंड्स में डालने का काम सरकार द्वारा नियुक्त नियामक संस्था द्वारा ही किया जाता है, फिर भी दिन प्रतिदिन रिकॉर्ड तोड़ते सेंसेक्स से जब कर्मचारियों को इतनी बुरी तरह से छला गया, तो वे ओपीएस के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ होते जा रहे थे, जिसे रोकने के लिए अब जिस नई स्कीम को एक बार फिर से भाजपा के द्वारा ही लांच किया जा रहा है, वह तो और भी ज्यादा भयावह और क्रोनी-लूट को अंजाम देने वाला है।
(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)