यूपी चुनाव और प्रियंका की प्रतिज्ञाएं
ज़ीनत शम्स
प्रतिज्ञाओं का आदिकाल से बड़ा महत्त्व रहा है, अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लोग अपना सबकुछ लुटाने के लिए तैयार रहते थे बल्कि कई बार लुट भी जाते थे मगर यहाँ हम बात राजनीतिक प्रतिज्ञाओं की कर रहे हैं जो इन दिनों यूपी की राजनीति में चर्चा का विषय बनी हुई हैं. यह प्रतिज्ञाएं आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी या फिर ऐसे भी कह सकते हैं कि कांग्रेस महासचिव और यूपी की इंचार्ज प्रियंका गाँधी कर रही हैं.
प्रतिज्ञाओं की शुरुआत तो उन्होंने 19 अक्टूबर से कर दी थी जब उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट देने का एलान कर विपक्षी पार्टियों के लिए एक एजेंडा सेट किया था, दूसरे ही दिन उन्होंने सरकार बनने पर बेटियों को स्मार्टफोन और स्कूटी देने की घोषणा करके एक और बड़ा दांव खेला था और आज उन्होंने बाराबंकी में प्रतिज्ञा यात्राओं को हरी झंडी दिखाने से पहले जो अन्य प्रतिज्ञाएं कीं वह सब आज के ज्वलंत मुद्दों से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं.
किसानों का मुद्दा इस समय बर्निंग टॉपिक है, प्रियंका ने उनके लिए पूरा कर्ज़ा माफ़ करने का एलान कर दूसरी पार्टियों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी, अब इसका क्या तोड़ लेकर आएँगी विरोधी पार्टियां. पूरे देश में सबसे मंहगी बिजली यूपी में है, यह मुद्दा सीधे रूप से आम आदमी से जुड़ा है, बिजली बिल हाफ और कोरोना काल का बिल माफ़ की घोषणा यक़ीनन आम आदमी के लिए बहुत बड़ी राहत होगी, विरोधियों को अब इससे आगे सोचना होगा.
किसानों को फसल की सही और पूरी कीमत नहीं मिलना भी विवादित तीन कृषि कानूनों की तरह एक बड़ी समस्या है, प्रियंका ने इस मुद्दे को भी अपनी प्रतिज्ञा के रूप में शामिल कर राजनीतिक परिपक्वता का सबूत दिया है. गेहूं-धान का MSP 2500 रूपये और गन्ने की खरीद 400 रूपये में किसानों को लुभाने के लिए बड़ा अच्छा दांव है.
गरीब मज़दूरों को 25 हज़ार की आर्थिक मदद का एलान उनके जीवन पर लॉकडाउन के दौरान लगे घावों पर एक मरहम है, वहीँ युवाओं की ज्वलंत समस्या बेरोज़गारी पर भी प्रियंका की प्रतिज्ञा का चुनाव में प्रभाव ज़रूर पड़ेगा, बीस लाख बेरोज़गारों को नौकरी और संविदा कर्मियों का नियमितीकरण का दांव गेम चेंजर साबित हो सकता है. प्रियंका की इन प्रतिज्ञाओं में हर उस क्षेत्र को चुना गया है जो वोट में तब्दील हो सकता है. महिलाओं में बढ़ती प्रियंका की लोकप्रियता और बेरोज़गारों में बढ़ते क्रेज़ में यह प्रतिज्ञाएं और जान फूंकेंगी।
प्रियंका गाँधी बड़े सोचे समझे तरीके से पार्टी को चुनाव के लिए मज़बूती से आगे बढ़ा रही हैं, भक्ताई के इस दौर में भी बिकाऊ मीडिया प्रियंका गाँधी को कवर करने पर मजबूर हो रहा है. जो पार्टी कुछ महीने पहले अपनी ज़मीन तलाशते हुए दिख रही थी वह आज सत्तारूढ़ पार्टी हो या अन्य विपक्षी पार्टियां उनके लिए एजेंडा सेट कर रही है, इससे बड़ी कामयाबी कांग्रेस पार्टी के लिए और क्या हो सकती है. प्रियंका गाँधी के तेवरों से तो अभी यही लग रहा कि उनके पिटारे से अभी बहुत कुछ निकलना बाकी है, शायद पश्चिमी उत्तर प्रदेश से? इसके बारे में आगे फिर कभी.