तौक़ीर सिद्दीक़ी


पहले क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज़ आउट होता था या नॉट आउट लेकिन जब यह अम्पायर्स कॉल का नियम आया है तबसे आउट और नॉट आउट के बीच का एक फैसला होने लगा है, मतलब कुछ फैसलों में यह पूरी तरह से अंपायर पर निर्भर है कि वह आउट देता है या नॉट आउट.

अजीब सी सिचुएशन होती है, एक ही जैसा फैसला, एक में बल्लेबाज़ आउट और एक में नॉट आउट. मतलब आधी से कम गेंद ने अगर स्टंप्स को छुआ है तो अगर अपमायर ने आउट दिया है तो आउट और अगर नॉट आउट दिया है तो नॉट आउट. एक मज़ाक जैसा लगता यह सब. यह एक ऐसा नियम है जिसे लोग पसंद भी करते हैं और नापसंद भी. वैसा तो देखा जाय तो नापसंद करने वालों की संख्या ज़्यादा है. विराट कोहली कई बार खुलकर इस नियम पर अपना विरोध जाता चुके हैं.

एक ज़माना था जब अम्पायरों पर अपनी टीम को फेवर करने के आरोप लगते थे यहाँ तक कि कुछ अम्पायरों को तो बेईमान भी कहा जाता था. तब होम सीरीज़ में घरेलू अम्पायर ही अम्पायरिंग करते थे. उस कालखंड में अम्पायरिंग को लेकर कई विवाद भी हुए. पाकिस्तान के अम्पायर शकूर राणा और इंग्लैंड के माइक गैटिंग के बीच हुआ विवाद आज भी याद किया जाता है. 1984 में ऑस्ट्रेलिया के जियोफ लासन दो बार हिट विकेट हुए मगर दोनों बार अम्पायरों ने आउट नहीं दिया।

इसके बाद 1986 में पाकिस्तान-वेस्टइंडीज श्रंखला से न्यूट्रल अम्पायरिंग की शुरुआत हुई. इस ऐतिहासिक बदलाव का श्रेय पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान खान को जाता है. इस सीरीज़ के लिए भारतीय अम्पायरों को बुलाकर इमरान खान ने एक नयी परंपरा डाली। इमरान ने इसके बाद 1989-90 में भारत के खिलाफ होम सीरीज़ के लिए इंग्लैंड के अम्पायरों को दावत दी. इसके बाद ICC ने भी इस बात को स्वीकारा और 1992 से टेस्ट मैचों एक बाहरी अम्पायर की नियुक्ति शुरू की. बाद में दोनों अम्पायर न्यूट्रल हो गए. हालाँकि इसके बाद भी कॉन्ट्रोवर्शियल अम्पायरिंग की घटनाएं होती रहीं मगर कम से कम बेईमानी या फेवर वाली बातें बंद हो गयीं।

इस बीच ICC द्वारा नियमों को लेकर तमाम प्रयोग होते रहे जो अधिकतर विवादस्पद ही रहे. डकवर्थ लुइस नियम भी उनमें से एक है जो आजतक किसी को समझ में ही नहीं आया. लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है तो मैं अम्पायर्स कॉल को ICC का सबसे बकवास नियम मानता हूँ. अब जबकि कोरोना महामारी से बदले माहौल में अधिकांश मैचों में दोनों घरेलू अम्पायरों या एक घरेलू अम्पायर की नियुक्ति हो रही है तो उसके पास यह पूरा मौका बनता है कि वह उन मौकों पर क्या फैसला देता है जिनपर अम्पायर्स काल हो सकता है. अगर आप पिछले कई महीनों में हुए मैचों को देखेंगे तो पाएंगे कि अम्पायर्स कॉल वाले फैसलों का ज़्यादा मौकों पर घरेलु टीम को ही फायदा पहुंचा है. मैं किसी पर पक्षपात का आरोप नहीं लगा रहा लेकिन यह नियम पक्षपात का पूरा मौका ज़रूर देता है।

ऐसा ही “imapact इन लाइन” के बारे में कहा जा सकता है. गेंद भले ही मिडिल स्टंप्स से टकरा रही हो मगर बल्लेबाज़ के पैड पर जब वो लगी तो उसका इम्पैक्ट स्टंप्स के बाहर था यानी पैड पर गेंद टकराने के समय बल्लेबाज़ का पैर ऑफ स्टंप्स के बाहर था. यह भी गेंदबाज़ के साथ बहुत बड़ा मज़ाक है. लेग स्टंप्स के बाहर गेंद पिच करने वाले नियम का खामियाज़ा वह पहले से ही भुगत रहा है और अब उसे अगर पगबाधा आउट करना है तो गेंद भी स्टंप्स से टकरानी चाहिए और बल्लेबाज़ का पैर भी स्टंप्स की लाइन में होना चाहिए। मतलब पगबाधा के लिए लेग और ऑफ दोनों तरफ से उसके हाथ बांध दिए गए.

ICC को इस मामले में गंभीरता से सोचना चाहिए। बल्लेबाज़ को अम्पायर आउट दे या फिर नॉट आउट दे. गेंद विकेट पर आधी लगे, आधी से कम लगे या फिर पूरी लगे, गेंद अगर स्टंप्स पर लग रही है तो इसका मतलब आउट होना चाहिए। अम्पायरिंग अच्छी-बुरी हो सकती है, उसे सुधारने के लिए ICC को लगातार प्रयास करने चाहिए मगर ऐसा कोई भी नियम नहीं होना चाहिए जिसमें पक्षपात करने की थोड़ी सी भी गुंजाईश हो।