उम्मुल मोमिनीन बीवी उम्मे सलमा रज़ि.
मोहम्मद आरिफ़ नगरामी
हिन्दा नाम, सलमा रजि. कीनत अरब के एक मशहूर सरदार और बहादुर व शजाअत शख्स अबी उम्मा की बेटी थी उनकी मां का नमा आतका था। आतका एक कनानी की बेटी थीं और अबी उम्मे खानदान कुरैश में से था इसलिए बीबी उम्मा सलम्मह रजि. आप की तरफ से कुरैश और मां की तरफ से कनानी थीं।
सरवरे कायनात का सन् मुबारक 31 साल था था जब यह पैदा हुई यानी नबूवत से नव साल कब्ल 13 बरस की उमर में उनका अकदान के चचाजाद भाई अब्दुल्लाह अल असद के लड़के अबू सलमा से हुआ बीबी उम्मे सलमह रजि. के इस्लाम कुबूल करने का वाकिया अजीब व गरीब है यानी पहले यह मुसलमान हुई और फिर शौहर। जिस वक्त सरवरे दो आलम स.अ. इस्लामी की दावत दे रहे थे और कुरैश पूरी तरह मदावत पर कमरबस्ता थे तो बाज नेक तबियत लोग ऐसे भी थे जो आप का वजा संजीदगी से सुनते थे और इमान ले आते थे उन लोगों में जिन्होने महेज अपनी तबियत की सलाहियत से इस्लाम कुबूल किया था बीबी उम्मे सलमह को मुसलमान किया और उनके मुसलमान होते ही जब तकलीफो का दौर शुरू हुआ तो दोनो मियां बीवी वहां से जशा चले गये वहीं उनके एक बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम अबू सलमा रखा गया और जिस की वजह से मां का नाम उम्म सल्लमा रजि. और बाप का नमा अबू सलमा पड़ा सलमा के बाद उकने तीन बच्चे और भी पैदा हुए। एक लड़का और दो लड़किया। बेटे का नाम उमर रजि. ताला अन्हा बेटियों का नाम जैनब और दर्रा था।
उम्मुल मोमिनी बीबी सलमह रजि. के हालात में उनकी हिजरत का बयान खास तौर पर काबिले जिक्र है सल्लमा की पैदाईश के बाद जब उन मुसलमानों ने जो जैश चले गये थे यह सुना कि अब मक्का मुअज्जमा में इस्लाम बहुत तरक्की कर रहा है और मुसलमानों को तकलीफ भी नही पहुच पाती। क्योकि हजरत अमीर हमजा रजि. और हजरत उमर मुसलमान हो गये है। तो उन लोगो ने वापस आने का इरादा किया और आ गये। लेकिन यहां आकर देखा तो वही मुर्ग की ए टांग कुरैश हर तरह फसाद पर कमरबस्ता और जंग पर आमादा जब मौका मिले और जहां मिले अपनी तरफ से अजीयत पहुचाने में हरगिज नही चूकते तो मजबूरन फिर जाने का इरादा किया लेकिन इस मर्तबा की हिजरत जैश की नही मदीने तैयबा की थी क्योंकि रसूले खुदा अभी तशरीफ ले जा रहे थे।
सुबह का वक्त था और नव मुस्लिमों का एक छोटा सा काफिला हिजरत के लिए तैयार हुआथा इसमें बीबी उम्म सलमा रजि. उनके शौहर अबू सल्लमह भी थे बीबी सलमा को खुदा की मोहब्बत और रसूल के इरशाद पर सरे तसलीम खम कर चुकी थी और उस ख्याल से कि मदीना पहुंच कर अमान मिल जायेगी। और यह हर वक्त के खटके जाते रहेंगे। मुतमईन थी मगर फिर भी औरत थी और फितरी तौर पर उनका दिल मक्का वगैरा की जुदाई से मुतासिर था। इफलास की यह सूरत थी कि जादे राह और नाश्ता तो दरकिनार तीन आदमियों में सवारी के लिए सिर्फ एक ऊंट था। यानी मियां बीवी और बच्चा और कुछ पुराना धरना बिछौना वगैरा। फरमताी है आखिर उस के सिवा कोई सूरत न थी अबू सलमा रजि. ने कजादा किस असबाब लादा मुझको ऊपर बैठया। बच्चा मेरेी गोद में दे दिया आप नकेल पकड़ कर आग आगे हो लिए मेरे मैके के आदमी यानी बनो मोगेरा जो खासी तादाद में थे यह खबर सुनते ही मौजूद हुए और आते ही अबू सलमा को बुरा भला कहना शुरू किया और कहा कि तू हमारी बच्ची को कहां लिए जाता है। मुसलमान हुआ है तो आप जहां जी चाहे मारा मारा फिर हमारी बच्ची को इस तरह ले जाने का तुझे क्या हक हासिल है। कि जंगल बियाबान में औरत जात तेरे साथ हैरान व परेशान भूकी प्यासी रवाना हो जाये यह अजीब नाजुक वक्त था। अबू सलमा की हालत मुझसे न देखी जाती थी। वह हालत पास में कभी उन लोगो केा देखते और कभी मुझको लेकिन मेरे मैके वाले ऐसे संग दिल कि इन्हे मुझ पर मेरे बच्चे पर या शौहर पर किसी पर रहम नही आया और अबू सलमा का हाथ झिटक नकेल छीन अपने घर की तरफ मुझको और मेरे बच्चे को लेकर चलते बने मै। क्या बताऊ कि मुझ पर क्या गुजरी मेरे गरीब शैाहर की टकटकी मेरे बच्चे के चेहरे पर बंधी हुई थी और मैं जा तो इस तरह रही थी मगर गर्दन शौहर की तरफ थी और आंख से जारकतार आंसुओ की लड़ियां बहर रही थीं। मेरे दिल की इस वक्त अजीब कैफियत थी कि देखती क्या हूं सामने से मेरी सुसराल वाले बनो अब्दुल असद आ रहे है। न मालूम उनको यह खबर किस तरह पहुंची। यह लोग भी मेरे मैके वालो से कम न थें उन्होने दूर ही से डांटा और कहा कि ठहर जाओं मुझे उनके आने से बहुत खुशी हुई और मैं ने खुदा का शुक्र अदा किया। कि अब यह लोग मुझकों उनसे झुड़ा लेंगें लेकिन उन्होने यह कहा कि तुम अगर अपनी लड़की पर कब्जा करते हो और इस कदर हकदार हो तुम, तो अपने बच्चे के हकदार हम है। यह कह कर उन्होने ऊंट बैठा कर जबर्दस्ती मेरी गोद से बच्चे को छीन लिया। मेरी आंख में दुनिया अंधरी हो गयी। और ऐसा मालूम होता था कि कयामत आ गयी अबू सलमा रजि. की मफारफत का सदमा तो पहले ही से था। सलमा रजि. की जुदाई ने मेरे रहे सहे होश हवास बिगाड़ दिये और जो समदा उस वक्त मुझको हुआ उसका दसवां हिस्सा भी मुश्किल से बयान कर सकती हूं।
अबू सलमा रजि. इधर जा रहे थे सलमा को उसके दधियाल वाले ले जा रहे थे और मैं अपने मैके वालो के कब्जे में ऊंट पर बैठी जा रही थी कभी अबू सलमह रजि. का ख्याल आता था कभी शौहर को निगाह दौड़कर देखती थी कभी बच्चे को मगर मेरी हालते जार पर सुसराल वालोक को मुतालिक रहम न आया। अबू सलमा रजि. को हिजरत मदीने थे उनकी निगाह में यह सब दुनिया के इशारे थे वह मुझको और बच्चे को खुदा पर छोड़कर मदीना पहुंचे मैं यहां आयी तो जिस घर में उतरी वह एक वसी और कुशादा घर था। मगर दूर से मुझे कांटने को दौड़ा। सारी रात मैंने इस जेल खाने में तड़प तड़प कर बसर की सलमा की जुदाई से कलेजा मुंह को आ रहा था। और जब इस मासूम का ख्याल आता तो बेसाख्ता मुंह से आह निकल जाती थी अबू सलमा की जुदाई से तड़पती थी और जब उनकी तकलीफ पर गौर करती थी तो बिला तामिल आंसू गिर पड़ते थे। महाजिरीन की खुश किस्मती पर खुशी हुई थी और जब अपनी महरूमी किस्मत का ख्याला आता था तो बिलबिला जाती थी। सुबह किसी तरह न हो रही थी सारा घर मजे की नींद सो रहा था और मैं उनही ख्यालों में तड़पती रहती थी। अल गर्ज जिस तरह हुआ रात काटी और खुदा खुदा करके सुबह नमूदार हुई तो मैं रोती पीटती घर से निकल कर जंगल में पहुंची और एक मैदान में ऊंचे टीले पर जा बैठी कि शायद किसी को मुझ पर रहम आ ाजये मगर जिन लोगों से पाला पड़ा था वह रहम करने वाले न थे। इस रोज से यही मामूल रहा कि रोज सुबह उठती और टीले पर जा बैठती। शाम तक उसी इन्तेजार में बैठी रहती मगर किसी तरफ से ख्ुाशी की आवाज कान में न आती दिल का गुबार आंखों के जरिये से निकलता रात भर घर में दिन भर जंगल में रोती बेहतर चाहती कि जब्त करों खुदा मुसब्बब अल असबाब है। जल्द इस मुसीबत से रिहाई देगा। मगर किसी तरह दिन न मानता था। हर वक्त आंसुओं की लड़ियां आंखों से बहती। साल भर के करीब इसी तरह से गुजरा कहने को तो यह एक ही साल था। मगर मेरा दिल ही जानता है कि वह मेरे लिए कितना तवील जमाना था। और मैने किस तरह काटा। आखिर बनो मोगेरा में से एक शख्स जो मेरे चचा जाद भाई होता था। इत्तेफाक से मुझसे मिलने आया। मेरी हालत देखकर उसका दिल कुढ़ा उसने मुझे समझाया बुझाया कि बहुत तस्कीन दी और वादा किया कि इन्शाह अल्लाह मेरे वास्ते कोई न कोई सूरत निकालेगा और मेरी दास्तान मुसीबत उन सबको सुनायेगा मुझसे यह कह कर चला गया मैं किस तरह बताऊं कि अब मेरी क्या कैफियत थी मगर उम्मीद की झलक अब नाउम्मीदी में नजर आकर दिल कभी कभी बाग बाग कर देती थी और ऐसा मालूम होता था कि मेरा मासूल लाल मेरे कलेजे से चिमटा हुआ है। उस शख्स ने तमाम कबीले को जमा किया और उनको गैरत दिलाई कि तुम संग दिल हो उम्म सलमा जैसी मिसकीन दुखियारी पर इतना जुल्म कर रखा है। तुम अगर उस बदनसीब से हमदर्दी नही है जो शौहर और बच्चे दोनो से छूट गयी तो कम अज कम उसके बच्चे ही को उससे मिला दो कि बिछड़ी हुई मां का कलेजा ठंडा हो जायें। और आंखे ठंडी हों अगर तुम इसको छोड़ दोगें तो तुम्हारा एहसान होगा ओर यह बच्चे से मिल जायेगी और शौहर तक भी पहुंच सकती है। इस तकरीर में न जाने किस गजब का असर था कि कारगर हो गयी और मुझको मैके वालों ने छोड़ दिया तो मैं सीधी मदीने को चली ताकि सबसे पहले खुदा के सच्चे रसूल स.अ. के चेहरे अकदस जियारत कर लूं और हुक्म की तामील में शरीक हेा जाओं खुदा की इनायत का किस मुंह से शुक्रिया अदा करूं जिस वक्त मैने यह कसद किया तो सुसराल वालो ने भी मुझ पर तरस खाया और मेरे बच्चे को मेरे पास भेज दिया। मैने अपने बच्चे को देखते ही खुदा का शुक्र अदा किया। और उसको कलेजे से लगाया और गोद में लेकर ऊंट पर सवार हो गयी अब सिर्फ खुदा के रसूल स.अ. की जियारत का शौक दिल में औरत जात रास्ते से नावाकिफ तकलीफ से ना अशाना खुदा का नाम लेकर चल पड़ी मुझे कुछ खबर न थी कि मंजिल क्या होती है और कहां कयाम करना है ख्ुादा के सिवा मेरा कोई वाली वारिस न था इसी को याद करती और भरोसा रखती चली जाती थी कि क्या देखती हूं अबू तलहा का पोता तलहा का बेटा उस्मान रजि. चला आ रहा है। उसने मुझे पहचान लिया अैर तन तन्हा देखकर हक्का बक्का रह गया। करीब आकर और घबराकर पूछा अबी उमैया की बेटी तू कहा जाती है मैने कह अपने शौहर अबू सलमा रजि. के पास रसूल अल्लाह की खिदमत में वह कहने लगा तेरे साथ कौन है मैने कहा मेरे सर पर खुदा और गोद में बच्चा उन दोनो के सिवा मेरा कोई तीसरा नही है। इतना सुनते ही उसने मुंह मोड़ लिया और ऊंट की महारत पकड़कर रवाना हुआ। जैसी उस्मान ने मेरी इस सफर में मदद की है उसका शुक्र में अदा नही कर सकती। मैने अपनी तमाम उमर में उस्मान जैसा शरीफ व रहम दिल आदमी नही देखा। जब मैने पड़ाव पर पहुंचती तो ऊंट को बैठाकर अलग जा ठहरता था और मेरे बच्चे को लिए हुए उतर जाती जब चलने का वक्त आता तो वह खामोशी से मुंह फेर कर पास खड़ा होता और आहेस्ता से हम दोनो को सवार कर देता और आगे आगे चलता कई दिन और कई रात हम इसी तरह चलते रहे और उस्मान हमारे साथ रहा यहां तक कि हम मदीने पहुंचे जब उसकी नजर उमर व बिन औफ की बस्ती पर पड़ी तो कहने लगा लो तुम अपने शौहर को तलाश करो वह यहां रहता है अैार मैं मक्का जाता हूं मैं उतर पड़ी और अबू सलमा को तलाश किया जब अबू सलमा मिल गये तो उस्मान मक्का चला आया। बीबी उम्म सलमा रजि. अन्हा अकसर फरमाया करती थी कि इस्लाम के वास्ते जो मुसीबत अबू सलमा रजि. को हुई और उम्मा सलमा ने झेली वह महाजिरीन में किसी और ने नही झेली मैने उमर में कभी किसी साथी और रफीक को उस्मान से ज्यादा रहीम और सच्चा मुईन नही देखा खुदा उस पर रहम करें और जन्नत में जगह दें।
दो साल गुजर हुए होंगे कि बदर का एक जबर्दस्त मार्का मुसलमानों को पेश आया। मैने अबू सलमा रजि. और पैगम्बरे इस्लाम की हिमायत में शहीद हुए शौहर के शहीद होते ही बीबी उम्म सलमा के वास्ते एक नई मुसीबत की इब्तेदा हुई और वह उस वक्त हामला थी ऊपर बयान हो चुका है कि अबू सलमा से उनके यहां तीन बच्चे सलमा रजि. अन्हा उमर रजि. और एक लड़की दर्रा रजि. रखा गया। वजा हमल के बाद बाबी उम्म सलमा रजि. की आंखों में दुनिया अंधेरी थी उन्होने इस्लाम की खातिर जो कुछ मुसीबतें उठायी उसका सिला यही हो सकता है कि रसूल करीम स.अ. की जौजियत का शर्फ इन्हे हासिल होता चुनाचे ऐसा ही हुआ शौहर की शहादत के बाद सदमे की यह कैफियत थी कि आंखो से आंसू न थमता था बहुत से लोगों ने उनको पैगाम निकाह दिया। मगर उन्होने इन्कार कर दिया। और कहा कि मैं अपने बच्चो की परवरिश करूंगी। बाला आखिर हजरत अबू बकर सिददीक रजि. ने जो हमेशा नवमुस्लिमों गरीबों और दर्दमंदों की तकाफलीफ पर रहम करते थे और इनके काम आते थे निकाह का पैगाम भेजा बीबी उम्म सलमा ने उसको मुस्तरद कर दिया तो अनहजरत स.अ. ने हजरत उमर रजि. के हाथ पैगाम भेजा बीबी उम्म सलमा रजि. ने जवाब दिया कि हजरत उमर रजि. गैरत मंद औरत हों, अलावा अजी मुझको बच्चो की परवरिश करनी है। हजरत उमर रजि. ने यही अल्फाज आकर अर्ज कर दिये आप स.अ. फरमाया कि कह दों कि मैं खुदा से दुआ करूंगा कि तुम्हारी बेजा गैरत रफा हो और बच्चों की परवरिश का जिम्मेदार मैं हूं यह सुनकर उम्मा सलमा रजि. हो गयीं और उकने बेटे सलमा रजि. ने अपनी विलायत से उनका निकाह सरवरे दो आलम स.अ. से कर दिया।
निकाह 4 हिजरी में हुआ नबी अकरम स.अ. की रिहलत के बाद वह हमेशा मगमूम और अफसरदा रहें 84 बरस की उमर में इन्तेकाल हुआ उनके इन्तेकाल से चन्द रोज पहले वाकिया कर्बला पेश आया और उन्होने इसी जोर यानी 10 मोहर्रम अलहराम को यह कह दिया था कि मैने हुजूर स.अ. को ख्वाब में देखा कि आप स.अ. परेशान है। दरयाफ्त किया तो मालूम हुआ कि आप स.अ. मुकतल हुसैन रजि. से आ रहे है महारत उम्मुल मोमिनीन रजि. में सबसे आखिर में उन्होने ही इन्तेकाल फरमाया और बकिया में दफन हुई।