रोशनी का मीनार हाजी वारिस अली शाह
मोहम्मद आरिफ़ नगरामी
मुसलमान अपने दौरे फुतुहात में जहां कहीं भी गये अपने साथ इल्म तहज़ीब व तमददुन की रोशनी भी ले गये क्योंकि तारीख के इस राज को वह जान गये थे कि मुल्की फुतुहात इल्मी, अदबी, रूहानी और दीनी फुतुहात के बगैर कोई गहरा और पायदार असर नहीं छोड़ सकती हैं मिसाल के तौर पर मगरिब में स्पेन को और मशरिक में हिन्दुस्तान को अब मुसलमानों ने तहजीब व तमद्दुन की तारीख का एक दरख्शां बाब बना दिया।
हलाको चंगेज खान फुतुहात पर गौर कीजिए उनका सिलसिला किस कद्र वसी व अरीज था लेकिन इन फुतुहात का तारीख के सफहात पर बरबादी व तबाही व हलाकत के अलावा और कुछ भी नहीं है। हिन्दुस्तान इस लिहाज से खुश किस्मत था कि जब मुसलमानों ने फतेह किया तो महमूद गजनवी जिस वक्त मुल्की फुतुहात में मसरूफ था तो अलबैरूनी साथ ही साथ इल्मी फुतुहात में मशगूल था।
शहाबुद्दीन गौरी के कदम जिस वक्त हिन्दुस्तान में जम रहे थे, तो दूसरी तरफ शेख मुईनद्दीन चिश्ती रह. अपने बातिनी फुयूज व बरकात से जुल्मतकदा हिन्द को मुनव्वर रोशन फरमा रहे थे। सुल्तान शम्सुददीन एल्तमश के साथ साथ ख्वाजा बख्यिार काकी की सलतनत भी कायम थी खलीजों का दरबार सुल्तानुल मशाइख निजामुद्दीन औलिया के दरबार के सामने मांद था।
सुलतान मोहममद तुगलक हजरत फरीदुददीन गंज शकर के पोते हजरत अलाउददीन का मुरीद था, सुलतान फिरोज शाह तुगलक शेख अलाउददीन अजोधनी के हलका इरादत में दाखिल तैमूरी बादशाहों में हिमायूं हजरत गौस गवालियारी के हलकए असर में था। अकबर को शेख सलीम चिश्ती से जो अकीदत थी वह रोजे रोशन की तरह अयां थी, जहांगीर शेख सलीम चिश्ती के साया आतिफत में पला था और बाद में हजरत मुजददिद अलफे सानी का अकीदतमंद बना।
शाह जहां बचपन ही से मुजददिद साहब के हलकए इरादत में दाखिल था। आलमगीर ने सुलूक व तरीकत की तालम हजरत मुजददिद साहब के साहबजादे हजरत मो मासूम से पाई थी।
अलगरज हिन्दुस्तान की तारीख का मुताला अगर इस ढंग से किया जाये तो ये बात साफ और रोशन हो जाती है कि उलमा व मशाइख, दीनी पेशवा सलतन्तों और हुकूमतों के असल मेयार थे, उनकी दुरवेशी में शहनशाही और कलन्दरी में शान सिकन्दरी थी, मशाइख की खानकाहें, उलमा की दर्सगाहें, मुसन्निफीन की किताबें और इल्मी कोशिशें इन सलतनतों के लिए दिल का काम करती हैं, और ये बादशाह और सलातीन अपनी सलतनत की बका और इस्तेहकाम के लिए इन बोरिया नशीन उलमा व सुलहा समझते रहे, क्योंकि वह ये समझते थे कि यु नुफूस कुदसिया शबनम बन कर जिगर लाला में ठंडक पैदा कर सकते हैं तो तुफान बन कर दिलों को हिला भी सकते हैं। इन्हीं उलमा के बदौलत बहुत से शहर कसबे आबाद हुए मदरसे मस्जिदें और खानकाहें तामीर हुईं और कदीम शहरों को नई जिन्दगी बख्शी गयी।
उन्हीें जवात कुदसिया में पूरी दुनिया में इंसानी इत्तेहाद व यकजहती अमन व आशती का पैगाम देने वाले सूफी दुरवेश हाजी वारिस अली शाह का नाम भी बहुत ही अकीदत व एहतेराम के सााि लिया जाता है। हाजी वारिस अली शाह की कमाल रूहानियत और बुजुर्गी के न सिर्फ अपने बल्कि गैर भी मोतरफ हैं और आज भी लाखों की तादाद में जायरीन देवा शरीफ के आस्ताने पर हाजिरी को अपने तस्कीन और बरकत का जरिये तसव्वुर करते हैं। और इसी मुनासिबत से हाजी वारिस अली शाह का आस्ताना हर मुशहब व मिल्लत के लोगों के लिए मरजा खलाइक बना हुआ है लोग हजारों की तादाद में आते हैं और अपने गौहर मकसूद को पा लेते हैं।
हजरत वारिस अली शाह का खानदानी ताल्लुक हजरत हुसैन रजि की नस्ल से था आपके अजदाद में हजरत मूसा काजिम, और हजरत जाफर सादिक का नाम लिया जा सकता है हजरत वारिस अली शाह बचपन से ही जहीन थे उसी ने बहुत ही कम उमरी में ही कुरान पाक को हिफ्ज कर लिया था हजरत वारिस अली शाह ने हिन्दुस्तान में तबलीग व हकानियत इस्लाम की ऐसी शमा रोशन की जो ता अब्द रोशन रहेगी, आपने अखलाक व किरदार का ऐसा नमूना पेश किया जिससे लाखों भटके हुए लोगों को सिराते मुस्तकीम पर चलने की हिदायत दिया और लोगों के दिलों को मुसख्खर किया जिसकी वजह से मुस्लिम हजरात आपके हुस्न अखलाक से मुतास्सिर होकर मुशर्रफ बा इस्लाम हुए। हजरत वारिस अली शाह एक वली थे और वली होना आसान नहीं ये वह लोग होते हैं रातो को जिनके पहलू बिस्तर पर नहीं लगते, तकवा उनका लिबास, तवक्कुल उनकी तस्बीह, और सब्र उनका मुसल्ला होता है ये अल्लाह के खास और चीदा बंदे होते हैं। हजरत वारिस अली शाह में मजकूरा बाला तमाम सिफात में बदरजा अतम मौजूद थीं हजरत वारिस अली शाह ऐसे बोरिया नशीन फकीर और दुरवेश थे जिनकी खानकाह में बादशाह वक्त से अल्लाह हाजतमंदों की झोलियां मुरादों से भर देता था।
हजरत वारिस अली शाह ने इशाअत दीन और तबलीग इस्लाम के लिए पूरी दुनिया का सफर किया अस्फार के दौरान हजरत ने एक दरजन से जायद बार फरीजए हज की अदायगी की सआदत हासिल की अपनों ने मुहब्बत इंसानियत सच्चाई ईमानदारी और फिरकावाराना हमआहंगी का पैगाम दुनिया के कोने कोने में फैलाकर तबलीग इस्लाम का फरीजा भी अदा किया और यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में उनके मोतकीदीन ओर चाहने वाले मौजूद हैं और जब हजरत वारिस अली शाह का उर्स होता है तो वह दीवानावार देवा शरीफ का रूख करते हैं आज पूरी दुनिया में मौजूद हजरत वारिस अली शाह के मुरीदीन उनकी तालीमात को अपनी जिन्दगी का एक अहेम जुज़ मानकर और वारसी मसलक को इख्तेयार करके उनको आज तक जिन्दा रखे हुए हैं।