यह हैं हमारे सियादतदां
मो. आरिफ नगरामी
उर्दू के आलमी शोहरतयाता शायर और मुशायरों के स्टेज के बेताज बादशाह, मरहूम डॉ0 राहत इन्दौरी साहब ने कई सालों कब्ल मुल्क के सियासी हालात को देखते हुये एक गजल कही थी। जिसको अवाम ने बहुत पसंद किया था और अक्सर मुशायरों में सामेईन इस गजल को सुनने की फरमाईश किया करते थे। खास बात यह है कि मुहतरम मरहूम राहत इन्दौरी साहब ने जिन लोगों के लिए वह शेअर कहा था वह खुद भी बहुत ही दिलचस्पी के साथ राहत इदौरी साहब का वह शेअर सुनते थे और सियासी महफिलों मेें सुनाते थे। डॉ0 राहत इन्दौरी की इस लाफानी गजल का शेअर मुल्क के सियासतदानों के लिए कुछ यूं था कि –
चोर उचक्कों की करो कद्र, कि मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा।
मोहतरम राहत इन्दौरी का मजकूराबाला शेअर आज कल की सियासत की भरपूर तर्जमानी करता है। एक जमाना था कि एलेक्शन में पहले तालीमयाफ्ता और मुअज़्ज़िज़ घरानों के लोग हिस्सा लिया करते थे और वह जीतने के बाद अवाम की खिदमत को अपना फर्जे ऐन मानते थे। मगर अब कि सियासत मेें शरीफों और बाइज्जत घराने के लोगों की कोई जगह नहीं है। आज कल की सियासत में वही अफराद रह सकते है जो माफिया हों। अनपढ़ जाहिल हों, उन पर कत्ल अगवा, अस्मतदरी, के मकदमात दर्ज हों । सियासी जमाअतेां को भी इसकी बिल्कुल फिक्र नहीं है कि उनकी पार्टी से जीत कर पार्लियामेंट या असेम्बली में पहुंचने वाला इन्सान कैसा है? उसका पसेमंजर क्या है? साथियों को तो अब सिर्फ और सिर्फ हुकूमतसाजी से मतलब है। जिसकी ताजातरीन मिसाल उतर प्रदेश में हुये जिला पंचायत अध्यक्ष ओैर ब्लाक प्रमुख के एलेक्शन में देखने को मिले। जिनमेें मर्दों को तो छोडिये ख्वातीन को भी नहीं बख्शा गया और सरे आम चौराहोें पर उनको बरहना करने की कोशिश की गयी। अभी कुछ दिनों कब्ल वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी ने अपने काबीना की तौसीअ की थी। मोदी सरकार की नयी वजारती कौंसिल के बारे में चौंका देने वाली रिपोर्ट सामने आयी है जिसमेें बताया गया है कि मोदी जी की नयी वेजारती काउन्सिल में 78 वजरा में से 42 फीसद वजरा ने अपने खिलाफ फौजदारी मुकदमात का एलान किया है। उनमें से चार का तअल्लुक एकदामें कत्ल से है। यह इन्केशाफ इन्तेखाबी इस्लाहात पर रिसर्च करने वाले एक वर्किंग ग्रुप एडीआर का कहना है कि तमाम वजरा में से 33 वजरा के खिलाफ फौजदारी मुकदमात दर्ज है। मोदी जी की वेजारती कौंसिल में शामिल 24 फीसद वजरा ने अपने खिलाफ संगीन फौजदारी मुकदमात दर्ज होने का एलान किया है जिनमें कत्ल, एकदामे कत्ल, डकैती वग़ैरह शामिल है। वजीरे ममलकत बराये दाखला बनने वाले कूच बिहार के हल्के के निशीत परमात ने अपने खिलाफ कत्ल से जुडे एक मुकदमा का एलान किया है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक काबीना के 78 वजरा में से 70 यानी 90 फीसद वजरा करोडपति है। इनकी औसतन जायदाद 17 करोड रूपये की है जब कि 4 वजरा ने अपने असासों की मालियत 50 करोड से ज्यादा की जाहिर की है। इनमें शहरी हवाबाजी के वजीर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और टैक्सटाईल के वजीर पीयूष गोयल, महाराष्ट्र के साबिक वजीरे आला नारायण राणे और राजू चन्द्र शेखर शामिल हैं। वहीं आठ वजरा ऐसे भी हैं जिन्होंने बताया कि उनके असासे एक करोड से भी कम है। एडीआर ने जो सबसे चौंकाने वाला इन्केशाफ किया है वह नये वजरा की तालीम के बारे में है जिनमें से 15 फीसद वजरा ने अपनी तालीमी लियाकत आठवीं से 12वीं पास, तो 82 फीसद वजरा ने अपनी तालीमी लियाकत ग्रेैजुएशन बताया है। जब कि दो वजरा डिप्लोमा किये हुये है। रिपोर्ट के मुताबिक दो वजीर आठवीं पास, तीन दसवीं पास, चार बारहवीं पास 15 ग्रेैजुएट, 21 पोस्ट ग्रैजुएट और 9 डाक्ट्रेट की डिग्री हासिल किये हुये है।
मरकजी काबीना में तौसीअ पर तब्सरे अभी जारी है ओर एतराज भी किये जा रहे हैं जिनमे से एक ऐतराज यह भी है कि ऐसे वक्त मेें जब कि कोरोना की दो लहरों ने अवाम की जिन्दिगी को गैरमामूली तौर पर मुतअस्सिर किया है और तीसरी लहेर का खतरा सर पर मंडला रहा है। तो ऐसे में वेजारती कौंसिल में तौसीअ की क्या जरूरत थी। मोदी वेजारत मेें तौसीअ से ज्यादा जरूरत इस बात की थी कि मुल्क को शदीद मआशी बोहरान के दलदल से कैसे निकाला जाये और किस तरह अवाम की परेशानियों को दूर किया जाये। मगर हुकूमत ने अवाम का ध्यान आसमान छूती हुयी मंहगाई की तरफ से हटाने के लिये अपने काबीना में वजरा की तादाद में इजाफा कर दिया और अवाम हुकूमत की इस अय्यारी के खेल में उलझ कर मंहगाई को भूल बैठे। काबीना में तौसीअ से कब्ल मुल्क के अवाम को मुंगेरी लाल के सुनहरे सपने कुछ इस तरह दिखाये गये कि जैसे नये वजरा के कुर्सी पर बैठते ही अवाम के सारे मसाएल का हल निकल आयेगा और सब कुछ बिल्कुल ठीक हो जायेगा। और साथ ही यह भी पैगाम अवाम तक पहुँचाया गया कि सारी खराबियों की जड़ हटाये जाने वाले साबिक वजीरों की वजह से थी वैसे अगर सही तरीके से सूरते हाल का जायजा लिया जाये। तो पता चलता है कि बेशतर अहेम वेजारतों पर जो सेक्रेट्री या उसके मसाली ओहदे पर फायेज आई ए एस अफसरान हैं, उनमें से बेशतर का तअल्लुक गुजरात से है। चाहे मरकजी हुकूमत हो या फिर मुल्क की रियासती हुकूमतें हों। इनमें से किसी हुकूमत को अवाम की परेशानियों या मुशकिलात से कोई मतलब या तअल्लुक नहीं है। सियासी जमाअतों का सिर्फ एक ही हदफ या निशाना है कि किस तरह एक्तेदार पर कब्जा किया जाये। मरकजी हुकूमत की निगाहें इस वक्त अवाम की मुशकिलात या कोरोना की तीसरी लहेर की तरफ से हट कर इन सेमीफाईनल एलेक्शन मैचों की तरफ है जो 2022 में खेले जायेंगें। उनमें पंजाब, उत्तर प्रदेश, ओर उत्तराखण्ड अहेमतरीन सूबे है। पंजाब जहां मोदी जी की किसान पालिसियों के सबब अकाली दल उनके महाज से बाहर आ गया है, दूसरा एलेक्शन मैच उत्तराखण्ड में होगा जहां चन्द रोज पहले ही वजीरे आला को तब्दील किया गया है। पांच साल की मुद्दत में इन तीन वजरा का बदलना इस बात की निशानदेही करता है कि उत्तराखण्ड बीजेपीें जबर्दस्त फूट का शिकार है। उत्तराखण्ड में ही इस मरतबा कुम्भ का मेला लगा था जिसका खमियाजा पूरे शुमाल भारत को भुगुंतना पडा था। तीसरा सबसे अहेम सेमी फाईनल एलेक्शन उत्तर प्रदेश में 2022 में होगा। उत्तर प्रदेश का एलेक्शन 2024 के पार्लियमानी एलेक्शन में मोदी की किस्मत का रूख तय करेगा अगर किसी तरह बीजेपी को एलेक्शन में कामयाबी हासिल हो गयी तो इस बात का पूरे इम्कान है कि मोदी जी फिर तीसरी बार सरकार बना सकते है। और अगर योगी जी एलेक्शन हार जाते हैं तो पूरे मुल्क से बीजेपी का ज़वाल शुरू हो जायेगा।
मुल्क में सब कुछ हो रहा है। एलेक्शन भी हो रहे है। मेम्बराने असेम्बली के अलावा अरकान पार्लियमेेंट अपने को फरोख्त कर रहे है और अपनी क़ीमत करोडों में लगा रहे है। मगर जिन अवाम का वोट हासिल करके वह वजीर बने है। उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मंहगाई अपनी पूरी चरम सीमा पर है। आम जनता परेशान है। मगर हुकूमत या हुकूमती नुमाईन्दों से क्या मतलब? उनको सिर्फ गद्दी चाहिये और वह मिल रही है।