माहे शाबान की फ़जी़लत और ख़ैर व बरकत
मोहम्मद आरिफ नगरामी
अल्लाह ताला ने उम्मते मोहम्मदिया को ऐसे फजाएल व शर्फ से नवाजा है जो दूसरी उम्मतों को नही हासिल थे अल्लाह ताला अपने महबूब मोहम्मद स.अ. पर दुरूर भेजता है फरिश्ते दूरूद भेजते हैं। इसलिए मोमिन बंदों को भी अपने महबूब पर दुरूदसलाम भेजने का हुक्म देता है अल्लाह ताला ने अपने महबूब (मो. स.अ.) को सारे नबियों का सरदार बनाया है इसलिए अपने महबूब स.अ. की उम्मत को भी ऐसे शर्फ व फजाएल से नवाजा है जिनसे दूसरी उम्मतों को नहीं नवाजा आप (स.अ.) का उम्मती जब मस्जिद की तरफ चलता है तो उसके हर कदम पर एक गुनाह झड़ता और एक मर्तबा बुलंद होता है। यह एक रोज मर्रा की पांच वक्त की फजीलत का जिक्र है अल्लाह ताला अपने हबीब (स.अ.) की उम्मत को बहुत मामूली अमल पर पड़े पड़े अज्र से नवाजता है हद यह है कि वह तहज्जुद की नियत करके सोये तो पूरी रात नमाज में शुमार होती है इन्हीं फजाएल व नवाजशात में से शाबानु मोअज्जम के खैर व बरकत हंै माहे रमजानुल मुबारक की आमद आमद है इससे पहले अल्लाह ताला ने शाबानुल मोअज्जम को ऐसे फजाएल व बरकात से भर दिया है जो माहे मुबारक के रोजों का हक अदा करने की कूवत व ताकत और शौक व जजबा पैदा करे।
इसलिए अल्लाह के महबूब हजरत मोहम्मद स.अ. इस महीने में भी कसरत से रोजे रखते थे खुसूसन इस माह की पन्द्रवी रात को बड़ा एहतिमाम फरमाते थे कि खैर खैरात और नवाफिल के एहतेमाम के साथ कबिस्तान की तशरीफ ले जाते और अहले कुबूर के लिए दुआ भी फरमाते।
आप (स.अ.) 15वीं रात का तो इतना एहतेमाम फरमाते थे कि उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिददीका फरमाती है कि उस रात आप (स.अ.) मुझको बताकर नमाज पढ़ना शुरू फरमाया उसमें इतना लंबा सजदा फरमाया कि मुझे आप (स.अ.) की मौत का खतरा मालूम हुआ। मैं आप (स.अ.) के पास गयी आप (स.अ.) के तलवे पर हाथ रखा, जब उसमें हरकत नही हुई तो इतमिनान हुआ और बहुत खुश हुई। खुसूसन शाबान की पन्द्रवी रात को नमाज पढ़ना और दिन में रोजा रखना मसनून है। एक हदीस में आता है कि अल्लाह ताला इस रात आसमान दुनिया पर गुरूब आफताब से सुबह सादिक तक तजल्ली फरमाता है और इरशाद होता है जो शख्स अपने गुनाहों को बख्शवाना चाहे बख्श दूंगा। जो रोजी हासिल करना चाहे उसको रोजी दूंगा और जो किसी मुसीबत में हो उस की मुसीबत को दूर कर दूंगा। लेहाजा इस रात नवाफिल पढ़ने और तौबा व इस्तगफार का एहतेमाम करना चाहिए।
जो कुछ अर्ज किया गया इससे हमें माहे शाबान की अजमत व फजीलत और खैर व बरकत का अन्दाजा होता है लेहाजा इस की पुरनूर और बाबरकत घड़ियों से पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहिए ताकि रमजानुल मुबारक का हक अदा करने की भी कूवत व ताकत हासिल हो यह कितने अफसोस और नुकसान की बात होगी कि हम रात नवाफिल व इबादत में गुजारने के बजाय पूरी रात पटाखे छुड़ाने और तफरीह व चिरागां करने में गुजार दें जो आखरत से गाफिल करने वाला अमल और खुदा की मुनकर कौमो का शआर है
इस मुबारक रात में जो रूपये इस फुजूल खजी में लगाये जाते है अगर यही गरीबों यतीमों और बेवाओं पर खर्च किये जायें तो कितना सवाब मिलेगा। अल्लाह ताला की रहमत कितनी मुतवज्जह होगी। हदीस शरीफ में आता है कि सदका अल्लाह ताला के गुस्से को दूर करता है एक और हदीस में है जहन्नम की आग से बचो चाहे खजूर के एक टुकड़ा ही के जरिये क्यों न हो।
सूरा ना के पहले ही रूकु में सदका न देने के तालुक से कुरआन मजीद ने कितना सबक आमोज वाकिया बयान किया है अल्लाह ताला ने एक शख्स को खेती और बागात दे रखे थे जब फल तोड़े जाते और खेती तैयार होती और गल्ला निपटाया जाता तो गरीब जरूरत मंद लोग आ जाते। वह उन गरीबों की भी दे दिया करता था जब उसका इन्तेकाल हो गया तो लड़कों ने आपस में मशविरा किया कि हम उन गरीबों को बेकार देते है अब न दिया जाये और इसकी तरकीब सोची कि जब खेती तैयार हो तो रातों रात गल्ला निपटा लिया जाये और घर में रख दिया जाये इस तरह फकीरों को देने से बच जायेंगे। चुनाचे ऐसा ही किया और फसल तैयार होने पर रातो रात खेतों पर पहुंचें तो क्या देखते है कि खेती तबाह व बरबाद हो चुकी है। ऐसी कि जगह भी नही पहुचानी जा रही है। अव्वलन तो उन्होने कह हम जगह भूल गये फिर इधर उधर की अलामात को देखा तो मालूम हुआ कि नहीं यह हमारे ही खेत है। अजाब खुदावंदी ने इसको बरबाद कर दिया है। अफसोस किया बसने तौबा इस्तगफार किया और अल्लाह ताला से माफी मांगी। इस कुरआनी वाकिये की रोशनी में हमें अपना जायजा लेना चाहिए। हम गौर करें देखें कि हमारा क्या हाल हम सदके के बजाये चिरागा करने पटाखों और फुलझड़ियां छुड़ाने में यह रकम खर्च करते है ओैर जिक्र व तिलावत तहज्जुद नवाफिल के बजाय तफरीह में इतनी कीमती खिड़कियां गुजार देते है।
हम चैबीस घंटे की अपनी जिन्दगी का हिसाब लगायें देखे कि हमारा कितना वक्त आखरत से गफलत और खुदा को नाराज करने वाले कामों में गुजरता है फिर इस की कितनी सख्त जरूरत है कि सदके के जरिये अल्लाह ताला के गुस्से को दूर करें। मगर यह न करके हम को हसरत व निदामत के सिवा कुछ और हाथ न लगे जहां तलाफी की भी मोहलत न मिलेगी। इस वक्त मुसलमान आलमी पैमाने पर कैसी जिल्लत व ख्वारी और मजलूमियत के हालात से गुजर रहे है इस हालात में भी मुबारक घड़ियों में दुआ व इस्तगफर रोने और गिड़गिड़ाने के बजाये खेल व तमाशे फुलझड़ियां और पटाखे में रूपये बरबाद करें यह खुदा को कैसे पसंद आ सकता है। और सारी फजीलतों के बावजूद यह उम्मत खुदा की पकड़ और अजाब से कैसे बच सकती है? कहने वाले ने यह तो कहा कि,
बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलमानों पर मगर इस पर गौर नहीं किया जाता कि मुसलमान अपने मालिक के हुक्मों और इसके महबूब रसूल (स.अ.) की सुन्नतों को छोड़कर खुद ही बिजलियों के कौंधने और बर्क के गिरने का सामान कर रहे है।
शाबानुल मोअज्जम की उन बाबरकत घड़ियों और शबेबरातकी इस तजल्ली रब के वक्त भी जब वह फरमा रहा है। जो शख्स अपने गुनाहों को बख्शवाना चाहे बख्श दूंगा। जो रोजी हासिल करना चाहे उसको रोजी दूंगा। और जो किसी मुसीबत में हो उस की मुसीबत को दूर कर दूंगा। और हमारा हाल यह है कि हम गफलत में रहें बल्कि खेल तमाशे पटाखे और धुएं में माल उड़ायें तो इसकी रहमत व नुसरत हम पर कैसे नाजिल हो सकती है। इसमें शक नही कि अल्लाह ताला के बहुत से बातौफीक व खुश नसीब बन्दें और मुबारक घड़ियों की काबिले रशक कदर करते है लेकिन इस उम्मत का अमूमी हाल वह है जो जिक्र किया गया।