लखनऊ:
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने आज यहाँ यूपी स्टेट बी.एस.पी. के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों तथा प्रदेश के सभी 75 ज़िलों के पार्टी अध्यक्षों की एक विशेष बैठक में राज्य के ताज़ा हालात व राजनीतिक घटनाक्रमों आदि से उत्पन्न स्थिति की गहन समीक्षा करने के बाद कहा कि यूपी में दिन-प्रतिदिन की विकट समस्याओं से त्रस्त करोड़ों लोगों के जीवन में बेहतरी के लिए बी.एस.पी. ही एक मात्र आशा की किरण है और इसीलिए उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए पार्टी के लोगों को खासकर यहाँ शीघ्र ही होने वाले निकाय चुनाव में पूरे तन, मन धन से जुट जाना है ताकि आगे चलकर उनको थोड़ी राहत पहुँचानेे का काम किया जा सके और इसके लिए सबसे पहले यह बहुत ज़रूरी है कि पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी व अन्य ज़िम्मेवार लोग इस चुनाव में उम्मीद्वारों का चयन काफी सोच-समझकर करें तथा उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दें, जो निजी स्वार्थ लाभ में डूबे रहने के बजाय, अपने क्षेत्र के लोगों के हित व कल्याण तथा क्षेत्र के विकास में रूचि रखते हों ताकि उनके जीतने का लाभ आगे स्थानीय लोगों को मिलना सुनिश्चित हो सके।

इतना ही नहीे बल्कि इन चुनावों में आमतौर से सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग तथा विरोधी पार्टियों के साम, दाम, दण्ड, भेद आदि घिनौने हथकण्डों से भी खुद को बचने के साथ-साथ लोगों को भी इससे बचाने जैसी परिपक्वता के साथ चुनाव जीतने के लिए मुस्तैदी जरूरी है, ताकि ’वोट हमारा राज तुम्हारा’ का घिनौना चक्र का जारी रहना बंद हों। ऐसा करना खासकर बी.एस.पी के लिए बहुत जरूरी है कि क्योंकि बी.एस.पी. विशुद्ध रूप से गरीबों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों व अन्य मेहनतकश समाज तथा दलितों, शोषितों, पीड़ितों एवं सरकारी द्वेष/उपेक्षा के शिकार करोड़ों उपेक्षितों की पार्टी है जिनके लिए उनके मसीहा परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने उनको उन्हें एक समान मूल्य वाले कीमती वोट का बहुमूल्य संवैधानिक अधिकार दिया जो उनके जीवन व समाज में बेहतरी लाने का हमेशा ही सर्वोत्तम उपाय है। अच्छे नागरिक तो आप सभी लोग हैं ही, किन्तु जागरूक नागरिक की तरह अपने वोट डालने के हक का जरूर इस्तेमाल करना है।

मायावती ने इससे पहले पार्टी संगठन की मजबूती तथा प्रदेश के गाँव-गाँव में पार्टी के जनाधार को कैडर के आधार पर बढ़ाने के दिसम्बर के आखिर में दिए गए कार्यों की प्रगति रिपोर्ट ली तथा इस कार्य में आने वाली प्रगति पर थोड़ा संतोष व्यक्त करते हुए साथ ही समीक्षा के दौरान इनके कार्यों में आने वाली कमियों को दूर करने की हिदायत भी दी। साथ ही, यूपी में निकाय चुनाव को पूरी गंभीरता से लेकर और उस पर पूरा-पूरा ध्यान केन्द्रित करने का दिशा-निर्देश देते हुए उन्होंने पार्टी संगठन के इन कार्यों को निकाय चुनाव की समाप्ति तक स्थगित करने का निर्देश दिया।

इसके अलावा, केन्द्र व ख़ासकर देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भी जीवन को सर्वाधिक त्रस्त करती हुई महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल काननू-व्यवस्था तथा इससे उत्पन्न अराजकता आदि की विकट समस्याओं से निपटने को सरकार ंद्वारा समुचित ध्यान व उचित महत्त्व नहीं दिए जाने पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार के ऐसे कार्यकलापों से विकास के साथ-साथ जनहित व जनकल्याण के बाधित होने के अलावा देश की प्रतिष्ठा पर भी आँच आ रही है, जिस पर वोट व धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर देश व संविधान हित में जरूर ध्यान देना चाहिए।

जहाँ तक वोट को बंधक बनाकर रखने के स्वार्थ की खातिर शहखर्चीला ’’विकास’’ के इनके ढिंढोरा पीटते रहने का सवाल है तो अब इतने दिनों बाद इनके तमाम दावों की पोल लोगों के सामने खुल कर आ गई है। वैसे तो शहर ज्यादातर सुविधाविहीन हैं व इनकी दुदर्शा है, किन्तु कागजों पर, घोषणाओं व बयानबाजी आदि में वे ’स्मार्ट सिटी’ कहला रहे हैं तथा महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि के कारण गाँवों के हालात आमतौर से काफी खराब हैं। सरकार द्वारा हर कुछ ठेका-ठेका कर दिए जाने से इस ठेका प्रथा के कारण स्थाई नौकरी अब लोगों के लिए दूर का सपना बना कर रह गया है।

इतना ही नहीं बल्कि इस सरकार में वास्तविक विकास अगर किसी का हुआ है तो वह मुटठीभर सत्ताधारी लोगों का हुआ है, जो लोग कानून के ऊपर हैं तथा जिनके लिए कानून के राज जैसे अनुशासन का कोई मतलब नहीं है और यह सब जगजाहिर है। किन्तु इस दुःखद स्थिति को बदलना ज़रूरी है वरना आमजनहित की अनदेखी तथा विकास के खोखले दावे देश का अहित लगातार करते रहेंगे और करोड़ों लोग महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी व अराजकता आदि की चक्की में पिसते रहेंगे।

मायावती ने, इसके साथ ही, बैठक में ख़ास तौर से याद दिलाया कि यूपी में बी.एस.पी. को कमजोर करने के साथ-साथ दलितों को गुमराह करके उन्हें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकरवादी बी.एस.पी. मूवमेन्ट से अलग करने की साजिश व षडयंत्र के मामले में विरोधी पार्टियाँ किस प्रकार से हमेशा एकजुट रहती हैं तथा मीडिया के माध्यम से दलित वोट बैंक में दरार पड़ने आदि की विषैली व घिनौनी खबरें प्रचारित व प्रसारित करती रहती हैं, हालाँकि इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं होती है तथा बहुजन समाज में से खासकर दलित समाज मजबूत चट्टान की तरह पार्टी व मूवमेन्ट के साथ हमेशा खड़ा रहा है, जबकि सपा जैसी दूसरी पार्टियों के वोट बैंक खिसकते रहे हैं तथा जिससे बीजेपी यहाँ यूपी में भी मजबूत हुई है। इसीलिए बहुजन समाज में से खासकर दलित समाज को विरोधी पार्टियों के ऐसे दुष्प्रचार व इसी प्रकार के अन्य हथकण्डों आदि से स्वंय भी सजग रहना है तथा दूसरों को भी सावधान करते रहना है।

इसी क्रम में अब जबकि यूपी में निकाय चुनाव में खासकर ओबीसी वर्ग के हित, कल्याण तथा इनके आरक्षण, बेरोजगारी तथा खेती संकट आदि को लेकर भाजपा व इनकी सरकार पूरी तरह से कठघरे में है तथा इनकी हालत काफी डाँवाडोल है, वहीं समाजवादी पार्टी भी दलित, अति पिछड़े व मुस्लिम समाज के हित व जान-माल की सुरक्षा के मामले में ढुलमुल नीति व छलावापूर्ण रवैये के कारण पूरी तरह से बैकफुट पर है।

ऐसे में अब इन्होने कांशीराम जी के नाम को भुनाने की नई राजनीतिक पैतंरेबाजी शुरू कर दी है, जबकि सपा का दलितों, अति पिछड़ी जातियों तथा इनके मसीहा परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर और साथ ही स्वंय मान्यवर श्री कांशीराम जी के प्रति एहसान फरामोशी व इनका राजनीतिक द्वेष एवं जातिवादी विद्वेष का लम्बा इतिहास पूरी तरह से लोगों के सामने है, जिस कारण ही अन्ततः यहाँ सन् 1995 में गेस्ट हाऊस काण्ड हुआ तथा दोनों पार्टियों का गठबंधन टूटा। स्वाभाविक तोर पर सपा अगर मान्यवर श्री कांशीराम की मिशनरी सोच के हिसाब यूपी में गठबंधन सरकार चलाती रहती तो यह गठबंधन में कभी दरार नहीं पड़ती बल्कि यह गठबंधन देश पर राज कर रहा होता, किन्तु सपा की दलित व अति पिछड़ा विरेाधी संकीर्ण राजनीति तथा मुस्लिम समाज के प्रति छलावे वाले रवैयों के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका, जिसका ही लाभ आज भाजपा उठा रही है, फिर भी सपा भाजपा से लड़़ने के बजाय बी.एस.पी. को ही कमजोर करने का घोर बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर विरोधी काम करने से बाज़ नहीं आ रही है।

वैसे तो सपा का दलित विरोधी चाल, चरित्र व चेहरा किसी से भी छिपा हुआ नहीं है, जिस कारण ही इन्होंने संसंद में प्रमोशन में आरक्षण का विधेयक फाड़ डाला था तथा इस दलित विरोधी व्यवस्था को यहाँ यूपी में बिना उचित सोच-विचार के लागू करके सरकारी कर्मचारियों को अघात पहुँचाया और साथ ही जिस प्रकार से सपा के शासनकाल में महान दलित संतों, गुरुओं व महापुरुषों विरोधी कार्य जातिगत द्वेष के कारण किए गए यह किसी से छिपा नहीं हैं, जिसके लिए उस पार्टी को कभी भी माफ नहीं किया जा सकता है।