ट्रिब्यूनल में जजों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी की है वह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत
- बेहतर होगा कि मदरसों के लोग एक साथ बैठें और संविधान को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला करें: एडवोकेट हाशमी
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आल इंडिया क़ौमी तंज़ीम के सदस्य और अधिवक्ता हकीम अयाजुद्दीन हाशमी ने आज मीडिया को दिए एक बयान में कहा है कि देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की ट्रिब्यूनल में जजों की नियुक्ति को लेकर जो टिप्पणी की है वह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है। आज भी हमारी अदालतों में ऐसे सम्मानित जज हैं जो देश के लोकतंत्र और उसके अस्तित्व के लिए चिंतित हैं.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता में आने के बाद देश के इतिहास में पहली बार जजों ने आगे आकर प्रेस कांफ्रेंस की और लोकतंत्र के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की. साथ ही उन्होंने कहा कि कई बार लोग अदालतों के फैसले से सहमत नहीं होते हैं, लेकिन यह हमारे देश का गुण है कि असहमति के बावजूद लोग संविधान के दायरे में अदालत के फैसलों और उनकी कमियों की आलोचना करते हैं। एडवोकेट हकीम अयाज हाशमी ने कहा कि जिस तरह से मोदी सरकार पर न्यायपालिका को लेकर लचर रहने की बात है, उस से यह संदेश जाता है कि हमारी सरकार न्यायपालिका के मामले में गंभीर नहीं है। निर्णय निराशाजनक हैं, जो हानिकारक हैं और यह लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है।
एडवोकेट हाशमी ने कहा कि लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के साथ-साथ अधिक वकालत की शिक्षा से लैस किया जाना चाहिए, क्योंकि AI अगले वर्षों में और भी महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह हमारे देश में कुछ शरारती तत्व कानून को अपने हाथ में लेते हैं और लिंचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं, ऐसे माहौल में जरूरी है कि हम कानून पर वर्कशॉप का आयोजन करें और मदरसों के लोगों से भी अपील की कि अपने बच्चों को और अधिक कानून के बारे में बताएं और सिखाएं,. यदि संभव हो तो उम्मा के रहनुमाओं को संविधान पर एक अध्याय तैयार करके इस के आवश्यक बिंदु पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए, ताकि बच्चों को भारत के संविधान के साथ-साथ धर्मशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी हो या पूरे संविधान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि कुछ वर्षों में बच्चों को कानून का पूरा ज्ञान हो सके।