इस्लामी तक़वीम का दूसरा महीना सफरूल मुज़फ़्फ़र
मोहम्मद आरिफ नगरामी
इस्लामी तकवीम का आगाज मोहर्रमुल हराम से होता है जिसका दूसरा महीना सफरूल मुजफ्फर है। मुसलमानों की कुछ तादाद इस महीने को मनहूस समझती है और बहुत सारी तकरीबात से बचती है। आइए इस्लामी तालीमात का जायजा लिया जाए और अपने अकीदे को दुरूस्त किया जाए। तौहीद का अकीदा जो इस्लामी तालीमात का सरचश्मा है जिसका वाजेह मफहूम यह है कि अल्लाह तआला को उस जात व सिफात, रबूबियत और उलूहियत में एक जाना और माना जाए, उसी के सामने हाथ फैलाया जाए, उसीसे फरियाद की जाए, उसी से दुआ मांगी जाए और उसी से सिर्फ उसकी को नफा और नुक्सान का मालिक समझा जाए। तौहीद के अकीदे में जब-जब कमी आई तो मखलूक का रिश्ता अपने खालिक से कमजोर पड़ने लगता है। बंदा अपने मालिक से दूर होता चला जाता है और इसी के साथ बदशगुनी, बदफाली और नहूसत जनम लेने लगती हैं और इंसान भटक जाता है।
बदशगुनी और बदफाली की यह रिवायत कदीम जमाने से चली आ रही है। जाहिलियत के दिनों की यह रिवायत उम्मते मुस्लेमा के अंदर भी पैदा हो गई है। जैसा कि अम्बिया के दुश्मनों ने हक व हिदायत को रद्द करने केे लिए इसी हथियार का इस्तेमाल किया और बदशगुनी ली कि अगर उनकी दावत को कुबूल किया गया तो हम पर मुसीबतें और आफतें नाजिल होंगी। दौरे जिहालत में मुशरिकीन जब कोई काम करना चाहते या सफर का इरादा करते तो सुबह सवेरे घोंसलों के पास जाकर उसे उड़ाते। अगर परिंदा दाएं जानिब उड़ता तो नेक फाल तसव्वुर करते और अगर परिंदा बाएं जानिब उड़ता तो बदाश्गुनी लेते और अपने काम को मुल्तवी कर देते। जब शिर्क और बुतपरस्ती की जगह तौहीद के अकीदे का चिराग जला, जब इस्लाम ने तौहीद की तालीम दी तो उनके अंदर से खुद ब खुद इस तरह की तमाम बदशगुनियां खत्म हो गईं। लेकिन आज इस दौरे तरक्की व उरूज में उम्मते मुस्लेमा इस्लामी तालीम से दूर होती गई और बदशगुनी और बदफाली के जाहिली तसव्वुरात दीगर खराबियों की तरह पैदा हुईं जो दरहकीकत बर्रेसगीर में हिन्दू मआशरत के असरात का नतीजा है। आज मुसलमान भी समझते हैं कि बिल्ली रास्ता काट दे तो उसे मनहूस ख्याल करते हुए आगे सफर मुल्तवी कर देते हैं, उल्लू बोलना नहूसत की अलामत तसव्वुर करते हैं। सुसराल में किसी लड़की के आने के बाद अगर किसी का इंतकाल हो जाए तो बहू को मनहूस ख्याल करते हैं, नए घर की तामीर के मौके पर नारियल फोड़ने का अकीदा भी और नई गाड़ी खरीदने के बाद चंद नींबू लटकाए जाते हैं, एक बच्चे की मौत के बाद अगर दूसरा बच्चा पैदा हुआ तो उसके नाक में सुराख कर देते हैं कि कहीं या भी न मर जाए, आज के इस तरक्कीयाफ्ता दौर में बाज अफ्रीकी मुल्कों में यह रस्म कबीह अभी तक जारी है कि बच्चे की विलादत के बाद चेहरे को दागदार कर देते हैं बाज लोग तो दिनों और महीनों को मनहूस समझते हैं। कुछ लोग बुध के दिन को मनहूस ख्याल करते हैं। बहुत से लोग माहे सफर से बदफाली लेते हैं और इस महीने में शादी-व्याह करना मनहूस तसव्वुर करते हैं और बहुत से लोग मोहर्रम और सफर इन दो महीनों में निकाह और दीगर तकरीबात से बचते हैं। दिनों और महीनों में साद और नहस के कायल हैं कि यह दिन और फलां महीना साद है या नहस है गरज कि इस तरह की बेशुमार जाहिली रिवायात और गैर शरई तसव्वुरात हैं जो आज गैर कौमों की मआशरत अख्तियार करने के नतीजे में मुस्लिम मआशरे का एक हिस्सा बन चुकी हैं।
जाहिलियत के दौर में शादी-व्याह की तकरीबात शव्वाल महीने में भी मनहूस समझा जाता था। उनका तसव्वुर था कि इस महीने मंे जो शादियां होती हैं मियां बीवी के ताल्लुकात में असर पड़ता है और आपसी मोहब्बत व उल्फत पैदा नहीं होती। इस सिलसिले में हजरत आयशा सिद्दीका (रजि0) फरमाती हैं कि नबी करीम (सल0) ने मुझ से शव्वाल में शादी की और शव्वाल ही में मेरी रूखसती हुई। अब जरा बताओ नेक बीवियों में आप (सल0) के नजदीक मुझ से ज्यादा करीब कौन थीं? हजरत आयशा सिद्दीका (रजि0) की ख्वाहिश होती थी कि उनके घर की लड़कियां शव्वाल महीने में व्याही जाएं।
बदफाली इंसान के दीन और दुनिया दोनों के लिए मोहलिक और खतरनाक है। यह इंसान पर खतरात के मुख्तलिफ दरवाजे खोल देती है जिसकी वजह से वह हर चीज से खायफ हो जाता है। हर छोटी बड़ी चीज उसके लिए डरावनी बन जाती है। यहां तक कि वह अपने साए से भी खौफ खाने लगता है। ऐसा शख्स यह समझता है कि पुरसुकून जिंदगी दूसरों के लिए है और सारी बदबख्ती मेरे लिए है और दूसरों को तौहुम की निगाह से देखने लगता है और वहम का शिकार हो जाता है। ऐसे ही लोगों से कहा गया है कि जान लो कि बदशगुनी से ज्यादा फिक्र को नुक्सान पहुचाने वाली और तदबीर को बिगाड़ने वाली कोई चीज नहीं है।
बदफाली और बदशगुनी के नुक्सानात तौहीद के अकीदे पर पड़ते हैं कि आदमी का एतमाद अल्लाह से उठ जाता है और दूसरों को नफा और नुक्सान का मालिक समझने लगता है। इसीलिए बदफाली को कबीरा गुनाह कहा गया है और यह एक अजीम गुनाह है बल्कि शिर्क है। अबू दाऊद और तिरमिजी की रिवायत है कि नबी करीम (सल0) ने फरमाया-मबदफाली शिर्क है। और दूसरी जगह इरशाद फरमाया-मजिसने बदशगुन लिया या जिस के लिए बदशगुन लिया गया वह हम में से नहीं है। बाज दफा हालात के एतबार से उसपर हुक्म का इंतिबाक होगा, बदफाली के ख्याल आने पर इसकी परवा किए बगैर अपना काम कर गुजरा तो ऐसी सूरत में बदफाली का कोई नुक्सान नहीं क्योंकि इस तरह के ख्यालात का पैदा होना आम बात है। हजरत इब्ने मसूद (रजि0) ने फरमाया हममे से कोई ऐसा नहीं हे जिसे ऐसा वहम न गुजरता हो लेकिन अल्लाह तआला तवक्कुल से उसे दफा कर देता है। (रवाहे दाऊद व तिरमिजी) दूसरी सूरत यह बताई गई कि बदफाली का ख्याल आने पर इसकी कोई परवा न की और अपना काम कर गुजरा अलबत्ता एक तरह की बेचौनी दिल में पैदा हुई कि कहीं इसका असर जाहिर हो जाए तो यह मकरूह है, शिर्क के जुमरे में नहीं आता। तीसरी सूरत यह कि कोई काम करने का इरादा किया और बदफाली के ख्याल आते ही उस काम से रूक गया तो यह सरासर शिर्क है। नबी करीम (सल0) ने इरशाद फरमाया-मजिसे बदफाली अपने काम से रोक दे उसने शिर्क किया।फ (अहमद) गरज कि बदशगुनी इंसान की इंफिरादी और इज्तिमाई जिंदगी के लिए अकीदा ए तौहीद के लिए नासूर की हैसियत रखती है जिसकी वजह से बदशगुनी और बदफाली की सख्ती से मजम्मत फरमाई गई है और इससे बचने की ताकीद की गई है।
हजरत अकरमा कहते हैं एक दिन हम लोग हजरत इब्ने अब्बास के पास बैठै थे हमारे पास से एक चिड़िया चहचहाती हुई गुजरी। मजलिस के हाजिरीन में से किसी ने कहा खैर ही होगा। आपने फौरन नकीर फरमाई और कहा न खैर होगा न शर होगा यानी एक परिंदा चहचहाते हुए उड़ रहा है तो इसमें खैर व शर की क्या बात है।
ताऊस अपने किसी साथी के हमराह सफर में थे उनके साथी ने कौआ की आवाज सुनी तो कहा खैर होगा। यह सुनते ही आपके चेहरे पर नागवारी के आसार जाहिर हो गए। आपने फरमाया मआखिर इसमें खैर की कौन सी बात है। मेरे साथ मत जाओ।फ दूसरे खलीफा राशिद हजरत उमर फारूक (रजि0) के दौरे खिलाफत में दरिया ए नील हर साल खुश्क हो जाया करता था, जिहालत की बुनियाद पर लोग बदशगुन लेते कि समन्दर को जान की तलब है। मिस्र के गवर्नर अमर बिन आस ने सूरतेहाल की नजाकत से अमीरूल मोमिनीन को बाखबर किया-मआपने दरिया ए नील के नाम एक खत लिखा और ताकीद की कि उसे दरिया में डाल दिया जाए। आपने लिखा था-मऐ दरिया! अगर तू अल्लाह के हुक्म से जारी है तो तुझे हुक्म देता हंू कि तू जारी हो जाए, और अगर अल्लाह के हुक्म से जारी नहीं तो हमंे तुम्हारी जरूरत नहीं।फ कासिद खत लाया और उसे दरिया में डाल दिया फिर क्या था देखते ही देखते दरिया पानी से भर गया और आज तक यह दरिया जारी व सारी है। अल्लाह के रसूल की एक और हदीस जो मुत्तफिक अलैह हदीस है गौर कीजिए। आप (सल0) ने इरशाद फरमाया-मएक की बीमारी दूसरे को नहीं लगती और न बदफाली कोई चीज है, न उल्लू का बोलना कोई असर रखता है और न सफर की कोई हकीकत है। इस हदीस शरीफ से कई बातें सामने आती हैं। डाक्टरों ने बाज बीमारियों केे छुआछूत होने का सुबूत दिया है जबकि कोई बीमारी खुद बखुद छुआछूत नहीं होती बल्कि अल्लाह की मर्जी के ताबे होती है। इस हदीस में बीमारी के छुआछूत होने का इंकार नहीं बल्कि जाहिली दौर के उस तसव्वुर की नफी है और उस अकीदे का इंकार है कि इसमें अल्लाह की मुसबत का कोई दखल नहीं होता।
बदशगुनी और बदफाली से निजात पाने का शरई तरीका यह है कि इस बात पर पुख्ता यकीन हो कि हर काम अल्लाह की तरफ से होता है वह चाहे तो होगा और न चाहे तो नहीं हो सकता। नफा और नुक्सान का मालिक भी वही है। वही अता और महरूम करने वाला है। उस जात के अलावा कोई हमारी मुश्किलात का हल करने वाला नहीं। जब किसी बात को सुनकर या किसी काम को देखकर दिल में बदशगुनी के ख्यालात पैदा होे रहे हों तो बदफाली लेने के बजाए नेकफाल लें और हुस्ने जन पर महमूल करें। अल्लाह के नबी (सल0) को नेक फाल पसंद था। बुखारी व मुस्लिम की रिवायत है कि हजरत अनस (रजि0) का बयान है कि नबी करीम (सल0) ने फरमाया यानी एक की बीमारी दूसरों को नहीं लगती न बदफाली कोई चीज है। अलबत्ता नेक फाल मुझे पंसद है। लोगों ने दरयाफ्त किया नेकफाल क्या चीज है? आप (सल0) ने फरमाया-मउम्दा लफ्ज जो इंसान दूसरे से सुनता है मसलन एक बीमार शख्स को मसही सालिमफ या मसेहत व तनदुस्तफ की दुआ दी जाए तो वह अपनी बीमारी से शिफायाबी का ख्याल करता है। किसी शख्स को उसके काम के लिए आसानी और कामयाबी की दुआ दी जाए तो ऐसा करना मतलूब है और यह अल्लाह तआला से हुस्ने जन की अलामत है। जबकि इसके बरअक्स ख्याल किया जाए तो अल्लाह तआला से बुरागुमान की अलामत है। नेक फाल से दिलों में सुकून पैदा होता है और दिल को तमानियत हासिल होती है और उम्मीद व यकीन के दरवाजे खुलते हैं। अल्लाह से दुआ है कि हम सबको बदफाली से दूर रखे और बदशगुनी के असरात से पनाह मंें रखे हर दिन अल्लाह तआला का है हर महीना और अवकात अल्लाह का ही पैदा कर्दा है। किसी दिन और महीने को मनहूस न समझा जाए।