लव जिहाद कानून की आड़ में एक ही समुदाय को बनाया जा रहा है निशानाः मौलाना अरशद मदनी
गिरफ्तारियों के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद की याचिका सुप्रीमकोर्ट के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी दाखिल
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के सीतापुर शहर से लव जिहाद के नाम पर गिरफ्तार दस आरोपियों, जिसमें दो महिलाएं भी शामिल हैं, को मुक़दमे से डिस्चार्ज यानी उनके खिलाफ दायर मुक़दमा समाप्त करके उन्हें जेल से फौरन रिहा किए जाने की याचिका जमीअत उलमा-ए-हिंद की क़ानूनी इमदाद कमेटी की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच में दाखिल कर दी गई है, जिसमें कहा गया है कि सरकारें लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को भयभीत कर रही हैं और संविधान द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों का सत्ता बल के माध्यम से उल्लंघन कर रही हैं। सरकारों के इस भेदभावपूर्ण और अत्याचारी व्यवहार के विरुध अब जमीअत उलमा-ए-हिंद ने भी अपना क़ानूनी संघर्ष शुरू कर दिया है। इस याचिका पर अगले चंद दिनों में सुनवाई संभव है। यह सूचना मुंबई से जमीअत उलमा महाराष्ट्र की क़ानूनी इमदाद कमेटी के अध्यक्ष गुलजार आजमी ने दी है। उन्होंने मामले का विवरण देते हुए बताया कि आरोपियों के परिवार वालों ने मौलाना वकील अहमद क़ासमी (जिला जनरल सेक्रेट्री जमीअत उलमा सीतापुर) के माध्यम से अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी से क़ानूनी सहायता मांगी थी जिसे स्वीकार करते हुए आरोपियों की रिहाई के लिए हाईकोर्ट गए और आरोपियों की रिहाई के लिए याचिका दाखिल कर दी गई है। एडवोकेट आरिफ अली, एडवोकेट मुजाहिद अहमद और एडवोकेट फुरकान खान द्वारा दाखिल याचिका में लिखा गया है कि यू.पी. सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए मुसलमानों को लव जिहाद के नाम पर भयभीत कर रही है और उन्हें संविधान द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों से वंचित कर रही है। याचिका में यह भी कहा गया है कि लव जिहाद को असंवैधानिक करार देने वाले कानून का सहारा लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस मुसलमानों को परेशान कर रही है और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे धकेला जा रहा है जिसका एक सबे बुरा उदाहरण यह मुक़दमा है जिसमें मुस्लिम लड़के के माता-पिता और क़रीबी रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि उनका इस मामले से कोई लेना देना नहीं है। मुस्लिम लड़का और हिंदू लड़की ने अपनी इच्छा से विवाह किया है और दोनों अब कहां हैं यह भी किसी को नहीं मालूम लेकिन लड़की के माता-पिता की शिकायत पर स्थानीय पुलिस ने दो महिलाओं समेत दस लोगों को गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद से पूरे क्षेत्र में भय की स्थिति है। याचिका में यह भी लिखा गया है कि महिलाओं की गिरफ्तारी से छोटे-छोटे मासूम बच्चे असहाय जीन गुज़ारने पर विवश हैं इसके बावजूद पुलिस वाले उन्हें छोड़ नहीं रहे हैं हालांकि अभी तक पुलिस ने इस मामले में आरोप पत्र भी दाखिल नहीं किया है। याचिका में यह भी लिखा गया है कि आरोपियों पर 19 वर्षीय हिन्दू लड़की को अगवा करने का इल्जाम है जबकि पुलिस ने बाद में आरोपियों पर लव जिहाद कानून की धारा भी लगा दी।
ध्यानयोग्य है कि इस मामले में 29 नवंबर को पहली गिरफ्तारी हुई थी जिसके बाद पुलिस ने और दस लोगेां को गिरफ्तार किया है जबकि कई लोगों को फरार करार दिया है। गिरफ्तार होने वालों में शमशाद अहमद, रफीक इस्माईल, जुनैद शाकिर अली, मुहम्मद अकील मंसूरी, इस्राईल इब्राहीम, मुईनुद्दीन इब्राहीम, मीकाईल इब्राहीम, जन्नतुल्ला इब्राहीम, अफ्सरी बानो, इस्राईल उसमान बकरीदी शामिल हैं। याचिका में यह भी लिखा गया है कि इन लोगों को बिना किसी सबूत के गिरफ्तार कर लिया गया जबकि यह मामला केवल लड़का और लड़की के बीच का है इसलिये सभी लोगों के खिलाफ दायर मुक़दमे तुरंत समाप्त किये जाएं और उन्हें जेल से फौरन रिहा किया जाये। गुलजार आज़मी ने यह भी कहा कि लखनऊ हाईकोर्ट में सुनवाई के समय सीनीयर वकीलों की सेवाएं प्राप्त की जाएंगी, क्योंकि हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बालिग लड़का-लड़की को अपनी पसंद की शादी और धर्म अपनाने का संवैधानी अधिकार है इसके बावजूद लव जिहाद के नाम पर यूपी सरकार मुसलमानों को लगातार निशाना बना कर भयभीत कर रही है।
जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कुछ राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से तथाकथित लव जिहाद की आड़ में लाए गए कानून पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह का कानून संविधान के दिशा-निर्देश के खिलाफ है और यह कानून नागरिकों की स्वतंत्रता एवं अधिकारों पर हमला है जबकि संविधान में देश के हर नागरिक को न केवल पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है बल्कि उसे अपनी पसंद और नापसंद व्यक्त करने का भी पूरा अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा कि क़ानून बनाते समय दावा किया गया था कि यह सब पर समान रूप से लागू होगा और किसी समुदाय के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य में इस संविधान विरोधी कानून का धड़ल्ले से एक विशेष समुदाय के खिलाफ प्रयोग हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में इसी प्रकार के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जो हलफनामा दाखिल किया गया है वह इस दुखद सच्चाई का आईना है, हलफनामे में दिये गए विवरण के अनुसार अब तक जिन 85 लोगों के खिलाफ इस कानून के तहत मुक़दमे दायर किये गए हैं उनमें 79 मुसलमान हैं जबकि अन्य ईसाई धर्म से संबंध रखते हैं। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि अखबारों में प्रकाशित होने वाली रिपोर्टें बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में विशेषकर इस प्रकार के मामलों में अगर लड़का हिंदू है तो पुलिस लड़की के घर वालों की हर संभव प्रयास के बावजूद शिकायत तक दर्ज नहीं करती, उल्टे ऐसे जोड़ों को पुलिस सुरक्षा भी प्रदान करती है। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार की घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि इस कानून का प्रयोग अल्पसंख्यकों और विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ ही हो रहा है, सीतापुर की घटना इसका उदाहरण है जिसमें घर की महिलाओं को भी गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया है जबकि उनका कोई जुर्म नहीं है। मौलाना मदनी ने अंत में कहा कि यह अन्याय और मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है इसलिये जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इसके खिलाफ क़ानूनी मदद करने का फैसला किया है। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट में इस कानून को चैलेंज करने वाली जो अन्य याचिका दाखिल है, जमीअत उलमा-ए-हिंद उसमें हस्तक्षेपर्ता बन चुकी है।