सामाजिक परिवर्तन की बुलंद इमारत का नाम ही मान्यवर कांशीराम साहब है : लक्ष्य
लखनऊ
सामाजिक परिवर्तन के योद्धा बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब की 88 वीं जयंती के अवसर पर लक्ष्य की महिला कमांडरों ने लखनऊ में स्थित मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल पर पहुंचकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए और रैली के रूप में उनके सम्मान में जोशीले नारे लगाए l
इस अवसर पर लक्ष्य की कमांडरों ने उनके संघर्ष को याद किया तथा सभी कमांडरों ने उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने की एक स्वर में शपथ ली l लक्ष्य कमांडरों ने बताया कि लक्ष्य के कमांडर पिछले 23 वर्षों से सामाजिक तौर पर मान्यवर साहब के कारवां को आगे बढ़ाने में दिन रात जुटे हुए हैं। इसीलिए लक्ष्य संगठन का नारा भी हैं कि “लक्ष्य कमांडर्स समाज में समाज के लिए 365 दिन”
बदलाव चाहिए तो संघर्ष करो और संघर्ष को समझना है तो कांशीराम साहब को समझो जिन्होंने बहुजन समाज को वास्तविक रूप से बहुजन बनाया l वे बिना थके, बिना रुके और भूख-प्यास की परवाह किए बिना निरंतर चलते गए और एक-एक व्यक्ति को जगाते चले गए, वे जीवन भर समाज के बीच में आंदोलन की चर्चा करते दिखाई दिए, समाज के बीच में ये परिवर्तन की चर्चाएं ही उनकी खुराक थी l
मिला तो खा लिया नही मिला तो आगे चल दिए ऐसी सादगी की मूर्ति थे कांशीराम साहब । वे कैडरों के माध्यम से अपने कमांडरों को सीख देते रहते थे और कहा करते थे कि जो सहारा देगा वो इशारा भी करेगा अर्थात् जो सहयोग करेगा तो वह ज्यादा वसूली भी करेगा। इसलिए दूषित मानसिकता वालों से कोई सहारा नही लेना चाहिए तथा उन्होंने समाज को अपने छोटे-मोटे संसाधनों के साथ संघर्ष करना सिखाया और वे समाज में तरह-तरह के प्रयोग भी करते थे जैसे संसद चलो अपने पैरो पर चलो इसका अर्थ यह है कि आपके पास खाने लिए भी नहीं हो तो भी चलो और आपके पास वाहन नहीं है तो भी चलो लेकिन संसद पहुंचो यानि कि कैसे भी करके अपने बलबूते हुक्मरान बनो l
क्योंकि हुक्मरान कौम का कभी भी शोषण नही होता है देश की धनधरती पर उनका ही कब्जा होता है इसलिए वो कहा करते थे कि नालायक समाज में लायक नेतृत्व पैदा करके ही उसको हुक्मरान बनाया जा सकता है l उन्होंने समाज की खातिर शादी नही की, घर परिवार यानि कि मां बाप भाई भतीजों को छोड़ दिया, मोह माया का त्याग कर दिया, बड़े पैमाने पर धन इकट्ठा नही किया अर्थात् आंदोलन में रोड़ा बनने वाले सारे कारणों को दूर कर दिया, समाज के सच्चे सिपाही थे वो l वो समाज के लिए जिए और समाज के लिए ही मरे l
उन्होंने बहुजन के लोगों में सामाजिक परिवर्तन व राजनीति की ऐसी अलख जला दी कि वो अलख कभी बुझने वाली नही है, हां वह कम ज्यादा जरूर हो सकती है l उन्होंने दबे कुचले समाज को जिसका हजारों वर्षों से शोषण हो रहा था उसी के हाथ में देश की कमान सौंप दी अर्थात् अंतिम पायदान पर बैठे भूखे प्यासे लाचार समाज को देश का हुक्मरान बना दिया। असंभव को संभव कर दिखाया, यह विश्व की सबसे कठोरतम क्रांति थी वो जानते थे कि आंदोलन का रास्ता ही संसद व विधान सभाओं की ओर जाता है, इसीलिए वे निरंतर सड़कों पर बने रहे l
सामाजिक परिवर्तन की बुलंद इमारत का नाम ही मान्यवर कांशीराम साहब है l उनकी इस इमारत की जीजान से हिफाजत करेंगे और उनके द्वारा सामाजिक परिवर्तन की अलख को किसी भी कीमत पर बुझने नही देंगे चाहे हमें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यह बात लक्ष्य कमांडरों ने अपनी चर्चा में कही l
इस अवसर पर लक्ष्य की कमांडरों का जोश उनकी आवाज और उनके चहरे पर साफ दिखाई दे रहा था जो कह रहा था कि साहब ये आपकी शेरनियां किसी भी सूरत में आपके आंदोलन को पीछे नहीं जाने देंगी l