उर्दू का आशिक और गंगा जमुनी तहजीब का अमीन दिलीप कुमार
मोहम्मद आरिफ नगरामी
हिन्दी फिल्म इण्डस्ट्री पर छः दहाईयों से ज्यादा अरसे तक अवाम ख्वास के दिलों पर हुकूमत करने वाले यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार का इस दुनिया से रूख्सत होना सिर्फ हिन्दी फिल्म इण्डस्ट्री ही का नहीं बल्कि पूरे मुल्क का नुकसाने अजीम है क्योंकि दिलीम कुमार ख्वाह उनकी अदाकारी का कितना ही डंका बजता रहा हो सिर्फ अदाकार नहीं थे वह दर्द मंद दिल रखने वले बहुत ही शान्दार और नफीस इन्सान थे जिन्होंने गरीबोें और पसमान्दा तब्कात के दुख दर्द को समझा। मुल्की मसाएल में दिलचस्पी ली और उन मसाएल के हल में जिस कदर शिरकत मुमकिन हो सकती थी उसे मुमकिन बनाया।
दिलीप कमार अपनी यादगार फिल्म ‘‘मुगले आजम‘‘ के बाद लीजेंड हो गये थे और इस बात से आज तक किसी ने एख्तेलाफ नहीं किया। ट्रेजेडी किंग, कोहिनूर पर अदाकारी का ताज महल और शहेन्शाहे जज्बात जैसे बेशुमार खिताबात और अल्काबात से उन्हें नवाजा जाता रहा है। और किसी लकब या खिताब पर एख्तेलाफ करना तो दूर इन की गैर मामूली अदाकाराना सलाहियत और फनकाराना परफार्मेेंंस के लिये उन तकरीबों को कम ही समझा गया और यह भी एक नाकाबिले तरदीद हकीकत है कि मुगले आजम के बाद फिल्म इण्डस्ट्री में कदम रखने वाले हर नये अदाकार ने बेहिचक ओैर खुल्लम खुल्ला दिलीप कुमार की नकल की या नकल करने की कोशिश की। मनोज कुमार से लेकर शाह रूख खान तक कोई बडा कामयाब हीरो ऐसा नहीं मिलेगा जिस ने दिलीप कुमार के फन को अपनाने की बिला तअम्मुल कोशश न की हो। मनोज कमार का असली नाम हरि किशन गोस्वामी था। वह दिलीप कुमार के इस हद तक मद्दाह थे कि जब उन्होंने मुम्बई आकर फिल्मों में काम करने का फैसला किया तो अपना फिल्मी नाम मनोज कुमार रखा क्योंकि फिल्म शबनम मेें दिलीप का भी नाम था। मरहूम दिलीप कुमार को उर्दू जबान से इश्क था उनकी उर्दूदानी का यह आलम था कि अल्फाज की अदायेगी पूरे फखरज के साथ करते क्लासिकी शोअरा के अशआर से अपनी नश्र को मुजैयन करते। खूबसूरत अल्फाज का इन्तेखाब करते और हमावक्त अपने साथ पूरी उर्दू तहजीब को साथ रखते थे। उर्दू क्या दिलीप कुमार साहब फारसी जबान से भी आशना थे। यही वजह है कि जब बोलते थे तो ऐसा लगता था कि जैसे कानों मेें शहद घुल रहा हो। आजादी से पहले के अदाकारों और खास तौर पर पंजाबी अदाकारों में उर्दू से वाबस्तगी पायी जाती थी। उस वक्त फिल्मों मेें काम करने के लिये उर्दू को बडी अहमियत दी जाती थी। फिल्मसाज व हेदायतकार मुशायरों में शिरकत किया करते थे वहां से अच्छे शोयरा को चुनते थे बाद में उन से अपनी फिल्मों के गीत लिखवाया करते थे। दिलीप कुमार भी उर्दूनवाज और उर्दू के परस्तार थे लेकिन उर्दू की खिदमत वह तशहीर के लिये नहीं करते थे वह बहुत ही जौक और शौक के साथ मुशायरों में शिरकत किया करते थे और खुद शोयराये केराम भी दिलीप साहब को सुनना पसन्द करते थे क्योकि यह बताने की जरूरत बिल्कुल नहीं है कि साहबे आलम की उर्दू बहुत अच्छी थी और वह लफजों को अदा करने का तरीका बदरजये अतम जानते थे। सच तो यह है कि इनके जुमलों की अदायगी से लफजों की असरपजीरी बढ जाती थी। दिलीप कुमार की उर्दू से वाबस्तगी मुशायरों में शिरकत की हद तक ही नहीं थी। आज महाराष्ट्र मेें इकरा एजूकेशन सोसायटी के जेरे इन्तेजाम जो तालीमी एदारे सरगर्में अमल हैं यह सब दिलीप साहब की करिश्माई शख्सियत की करमफरमाई है। उर्दू के सबसे पुराने अदबी रिसाले शायर के मुदीर जिनका अभी कुछ दिनों पहले ही इन्तेकाल हुआ है, उन्होंने एक जगह तहरीर फरमाया है कि एक बार मैं पाकिस्तान के एक मुशायरे मेें शिरकत के बाद समझौता एक्सप्रेस से अपने वतन हिन्दुस्तान लौट रहा था मेरे सामने की बर्थ पर एक नवजवान बैठा हुआ था वह नवजवान पाकिस्तान का शहरी था। बात चीत के दौरान उस नवजवान ने बताया कि मै पहली बार भारत जा रहा हॅॅू और मुझे ताज महल और दिलीप कुमार को देखने की बडी ख्वाहिश है। उसने पूछा कि यह बताईये कि पहले मैं क्या देखूं? तो इस्तेखारे इमाम ने बरजस्ता जवाब दिया कि दिलीप कुमार को देखिये। वह जिन्दा ताज महल हैं। दिलीप कुमार कोई आम अदाकार नहीं थे। वह अदाकारों के अदाकार थे। फिल्म इण्डस्ट्री के बडे बडे और मशहूर अदाकार उनके परस्तार थे जो दिलीप कुमार को अदाकारी स्कूल की तरह मानते थे। उनके साथ काम अपने लिये एक बहुत बडे एजाज मानते थे। दिलीप कुमार के परस्तारों मेें उनके जिगरी दोस्त राज कपूर भी शामिल थे। वह उन्हें अपने सगे भाई की तरह मानते थे।
दिलीप कुमार ने फिल्मेें कम कीं। एक ही तरह का किरदार बार बार करने से गुरेज किया। मुख्तलिफ तरह के किरदार किये। जो किरदार अदा किया वही किरदार बन जाने की कोशिश की। इसी लिये अंदाज के दिलीप, दीदार के श्यामू, देवदास के देवदास, पैगाम के रतन लाल, मुगले आजम के शहजादा सलीम, गंगा जमुना के गंगा राम उर्फ गंगा, आदमी के राजेश, मशाल के विनोद कुमार, कर्मा के जेलर विश्वनाथ प्रताप सिंह, और सौदागर के ठाकुर वीर सिंह के किरदारों मेें उनको देखते हुये ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि यह दिलीप कुमार है क्योंकि उनके किरदारों के जबान लेहजा, मुकालमे की अदायगी का अन्दाज, चलने का स्टाईल, सबमें उनके पसेमंजर की झलक नजर आती है। और यही दिलीप कुमार का कमाल था। अगर उनके एक एक किरदार पर लिखा जाये तो अखबार के सफहात कम पड जायेंगेें। असल में दिलीप कुमार ने हुस्ने अदाकारी को जज्बात व एहसासात के इजहार का एक वसीला समझा और किरदारों के तवस्सुत से समाजी पैगाम देने की कोशिश की। मआशरे की दिशा और दशा बदलने की कोशिश की।
मरहूम यूसुफ खान साहब की वाबस्तगी बडी हद तक कांग्रेस से रही। मगर उनके तअल्लुकात सभी पार्टियों से, अहेम लीडरों से हमेशा रही। हिन्दुस्तान के पहले वजीरे आजम पं0 जवाहर लाल नेहरू यूसुफ साहब को बहुत मानते थे। बाल साहब ठाकरे और शरद पवार, उनके दोस्तों में से थे। मुल्क के साबिक और आंजहानी वजीरे आजम, अटल बिहारी बाजपेयी से उनके घरेलू और मुअद्दिबाना मुरासिम थे। बाजपेयी जी जब मुम्बई जाते थे तो दिलीप कुमार साहब से मिलने उनके घर जरूर जाते थे। मौजूदा वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी जी दिलीप कुमार साहब का बडा एहतेराम और इज्जत करते थे। जिस दिन यूसुफ साहब का इन्तेकाल हुआ तो सबसे पहले यूसुफ साहब की अहेलिया, सायरा बानो के पास मोदी जी का फोन गया और उन्होंने फोन पर सायरा बानों को दिलासा दिलाते हुये हर तरह की मदद की पेशकश की। यूसुफ साहब के इन्तेकाल के बाद उनके घर वाके पाली हिल में सबसे पहले पहुंचने वालों में महराष्ट्र के वजीरे आला ऊद्धव ठाकरे और शरद पवार थे।
दिलीप कुंमार ने अपनी जिन्दिगी मेें 54 फिल्में कीं जिनमेें से आठ फिल्मों मेें बेहतरीन अदाकारी के लिये इनको फिल्म फेयर एवार्ड से नवाजा गया। 1991 में उनको पदम भूषण से और 2015 में पद्म विभूषण से और 1998 में ंदिलीप साहब को पाकिस्तान के सबसे बडे इनाम ‘‘निशानये इम्तियाज‘‘ से सरफराज किया गया। 1994 में यूसुफ खान साहब को हिन्दुस्तानी फिल्मी सनअत का सबसे बडा और बावेकार दादा साहब फाल्के एवार्ड दिया गया। दिलीप साहब मुल्क के वाहिद ऐसे अदाकार है जिन्हें मुसलसल तीन सालों तक बेहतरीन ऐक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड मिला। यह बात भी काबिले जिक्र है कि दिलीप कुुमार और शाह रूख खानं को सबसे ज्यादा आठ आठ फिल्म फेयर एवार्ड मिले हैं।
सायरा बानों से दिलीप कुमार की शादी 11 अक्तूबर 1966 में हुयी। उस वक्त सायरा बानों की उम्र 22 साल की थी। युसुफ खान 44 साल तक उनका साथ देकर सायरा बानों ने यह बता दिया कि रिश्ता निभाने मेें फिल्म वाले किसी से पीछे नहीं है। अल्बत्ता 7 जुलाई, 2021 को यूसुफ खान के इन्तेकाल के बाद वह तनहा हो गयी है। दिलीप कुमार की मगफिरत के साथ सायरा बानों के सब्र के लिये भी हम सबको दुआ करनी चाहिये। दिलीप साहब आप हमेशा दिलों में रहेंगे ।