बरेली के सेशन जज के फैसले की भाषा लोकतंत्र विरोधी, सुप्रीम कोर्ट करे कार्रवाई: शाहनवाज़ आलम
अगर जज खुलेआम मुख्यमन्त्री का गुणगान करेंगे तो न्यायपालिका पर भरोसा खत्म हो जाएगा
लखनऊ:
जजों की भाषा में लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्य दिखने चाहिएं। अगर कोई जज राजशाही और सामंती दौर की भाषा और मुहावरे इस्तेमाल करता है तो उसे न्यायपालिका में काम करने के लिए मानसिक तौर पर अयोग्य माना जाना चाहिए। बरेली के सेशन जज रवि कुमार दिवाकर के अपने हाल के विवादित फैसले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गुणगान करना उन्हें पद से हटाए जाने का का उपयुक्त आधार है।
ये बातें अल्पस्यंखक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 136 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बरेली हिंसा पर सुनवाई करते हुए बरेली जिला जज रवि कुमार दिवाकर का यह कहना कि योगी आदित्यनाथ प्लेटो के दार्शनिक राजा के सिद्धांत को पूरा करते हैं न सिर्फ़ आपत्तिजनक है बल्कि उनके सरकार के पक्ष में झुकाव को दिखाता है। ऐसे में उनमे सरकार के खिलाफ़ किसी भी मुकदमें में उनसे निष्पक्ष फैसला सुना पाने की संभावना नहीं बचती है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को स्वतः उनके फैसले की आपत्तिजनक भाषा को संज्ञान में लेकर उनके खिलाफ़ कार्यवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह उन्होंने ज्ञानवापी मामले पर अपने पूर्व के फैसले पर टिप्पणी की है उससे उनका वह निर्णय भी संदेह के दायरे में आ जाता है। अगर जज खुलेआम मुख्यमन्त्री या प्रधानमन्त्री का गुणगान करेंगे तो न्यायपालिका की विश्वस्नियता ही खत्म हो जाएगी। न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि को बचाए रखने के लिए भी रवि कुमार दिवाकर जी के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाई ज़रूरी है।