उर्दू शायरी के एक सुनहरे अध्याय का अंत, राहत इंदौरी का निधन
दो गज़ सही लेकिन ये मेरी मिलकियत तो है..
ऐ मौत तूने मुझको ज़मींदार कर दिया
जी हाँ, ज़िन्दगी की असलियत की अक्कासी करने वाली इन बेहतरीन लाइनों को लिखने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा| मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन हो गया है. वह कोरोना वायरस से संक्रमित थे और आज ही उन्होंने अपने लाखों प्रशंसकों को ट्वीट कर कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर दी थी.
राहत इंदौरी ने ट्वीट किया था , ‘कोविड के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर कल मेरा कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। ऑरबिंदो हॉस्पिटल में एडमिट हूं, दुआ कीजिए जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं।’
आगे उन्होंने अपने ट्वीट में लोगों से अपील की थी कि उनके बारे में जानकारी के लिए बार-बार उन्हें या परिवार को फोन न करें, इसकी जानकारी ट्विटर और फेसबुक के माध्यम से मिलती रहेगी।
राहत साहब तो दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन पीछे अदब का वो विरासत छोड़ गए हैं जो हमेशा नई पीढ़ी के लिए किसी खजाने से कम नहीं होगी.
बड़ा शायर वो है जो शेर बतौर शायर नहीं बल्कि बतौर आशिक कहे. जब लोग राहत इंदौरी साहब को सुनते हैं या पढ़ते हैं तो उन्हें एक ऐसा शायर नज़र आता है जो अपना हर शेर बतौर आशिक कहता है. वह आशिक जिसे अपने अदब के दम पर आज के हिन्दुस्तान में अवाम की बेपनाह महबूबियत हासिल है. शायरी को लेकर ग़ालिब, मीर, ज़ौक, फैज़. इक़बाल आदि मुतालिए (अध्यन) के विषय हैं और हमेशा रहेंगे. इनके मुतालिए के बिना तो शेर शुद्ध लिखना और ग़ज़ल समझना भी दूर की बात है लेकिन ग़ालिब, मीर, ज़ौक, फैज़ और इक़बाल जैसे बड़े शोअराओं के अलावा आज हिन्दी-उर्दू का कैनवस इतना बड़ा सिर्फ इसलिए है क्योंकि अदब की मशाल राहत इंदौरी जैसे शायर ने इतने सालों तक अपने हाथ में थामें रखा.