(व्यंग्य : विष्णु नागर) महामानव जी, देश की और हम-सब की, आपसे जितनी तरह से और भी जितनी बार ऐसी-तैसी हो सके, करना ; बस एक काम करना, ‘विकसित भारत’ बनाने का
(व्यंग्य : विष्णु नागर) अपने पीएम जी ने अभी भी दिल्ली की भाषा में फट्टे मारना नहीं छोड़ा है। दस साल तक फट्टे मारने का नतीजा अच्छी तरह भुगत चुके हैं, पर
(व्यंग्य : विष्णु नागर) अपने मोदी जी को लगने लगा है कि वे देवदूत हैं। इन्हें ऐसी अनुभूति होने लगी है कि इन्हें इनकी मां ने जन्म नहीं दिया है। इन्होंने बायोलाजिकली