इसे हारना नहीं, घुटने टेकना कहते हैं
तौक़ीर सिद्दीक़ी
हार तो वह होती है जिसमें लड़ाई होती है, जिसमें बिना लड़े ही हार मान लिया जाय उसे हार नहीं घुटने टेकना कहते हैं. कल एडिलेड में भारत हारा नहीं बल्कि घुटने टेके हैं, कह सकते हैं बटलर और एलेक्स हेल्स ने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। हम 2021 में भी पाकिस्तान के हाथों 10 विकेट से हारे थे लेकिन वह हार भी ऐसी नहीं थी जो इसबार मिली है, तब स्कोर भी थोड़ा छोटा था, 168 का स्कोर कोई मामूली स्कोर नहीं था लेकिन इंग्लिश ओपनर्स ने बौना बना दिया। 24 गेंदों पहले 169 का लक्ष्य पूरा कर लेने का मतलब आप कभी लड़ाई में थे ही नहीं, आपने 200 भी किया होता तो वह भी आसानी से बन जाता।
ऐसा कौन सा दबाव था रोहित शर्मा पर जो पूरे मैच के दौरान परेशान नज़र आये. इंग्लैंड को पहले भी हराया है और बुरी तरह हराया है, तो क्या नॉकआउट मैच का दबाव था, जो टीम इंडिया पर पिछले दस साल से हावी है, दरअसल दबाव में तो हम शुरू से थे, पहले मैच से. पाकिस्तान के खिलाफ हमें एक ऐतिहासिक जीत ज़रूर मिली लेकिन सच मानों तो वह मैच पाकिस्तान का था जिसे कोहली और पांड्या ने उनसे छीन लिया, उस मैच के अंतिम ओवर का ड्रामा सबको याद होगा। फिर साउथ अफ्रीका से हम हार गए, इसके बाद बांग्लादेश के खिलाफ भी किसी तर्ज जीत मिली। यानि सेमीफाइनल का सफर आसान नहीं रहा. तो आप ऐसा भी नहीं कह सकते कि कल भारत के लिए एक खराब दिन था, शायद इस खराब दिन की शुरुआत 23 नवंबर से शुरू हो चुकी थी.
रोहित ने इस शर्मनाक हार के बाद इस बात को माना कि टीम पर दबाव था, लेकिन किस बात का. मेरे हिसाब से टीम इंडिया पर इंग्लैंड से ज़्यादा पाकिस्तान के फाइनल में पहुँचने का दबाव था. दरअसल परिस्थितियां तब बदलने शुरू हो गयीं जब नीदरलैंड ने पाकिस्तान के लिए सेमीफाइनल का रास्ता खोल दिया। इसके बाद सेमीफाइनल में कीवी टीम को हराकर पाकिस्तान भारत से पहले फाइनल में पहुँच गयी. यह वह अदृश्य दबाव था जिसका एहसास सुनील गावस्कर को था और उन्होंने मैच की पूर्व संध्या पर इसका अंदेशा भी जताया था और साथ ही यह सलाह भी थी कि टीम इंडिया को सिर्फ सेमीफाइनल के लिए सोचना चाहिए, फाइनल के लिए नहीं। क्योंकि इस बात का एहसास था कि भारतीय खिलाडियों के मन में इस वक्त पाकिस्तान होगा, वह अप्रत्याशित रूप से फाइनल में पहले पहुँच गया है तो भारत का फाइनल में पहुंचना must हो जाता है और यही बात एडिलेड में दबाव के रूप में भारतीय खिलाडियों पर साफ़ नज़र आयी.
रोहित शर्मा ने 2021 में भारत की हार के बाद विराट से जब कप्तानी संभाली थी तब उन्होंने कहा था कि उनकी रणनीति में पावर प्ले सबसे अहम् है और वह पावर प्ले को पूरी तरह utilise करेंगे. यहाँ तक कि दो तीन विकेट गिरने के बावजूद भी पहले 6 ओवरों में अटैक करना नहीं छोड़ेंगे लेकिन पूरे विश्व कप के दौरान ऐसी कोशिश तो देखी ही नहीं गयी. सेमीफाइनल में सिर्फ एक विकेट गिरा मगर 6 ओवरों में रन सिर्फ 38 बने. यह कैसी आक्रमकता है, रोहित शर्मा खुद 28 गेंदें खेलकर 27 रन बनाकर आउट हुए, यानि run a ball से भी कम. पूरे विश्व कप में ऐसा एकभी मैच नहीं हुआ जिसमें टीम इंडिया ने पावर प्ले में बड़ा स्कोर किया हो. हाँ उनके खिलाफ ज़रूर स्कोर हुआ. बांग्लादेश ने भी 60 किये थे और इंग्लैंड ने भी 60+किया। कोहली ने 50 बनाये लेकिन 40 गेंदों पर, उनसे शायद इससे ज़्यादा की उम्मीद थी, हालाँकि वह एक शानदार कैच की वजह से आउट हुए. सूर्य कुमार जिनपर टीम इंडिया बहुत डिपेंड कर रही थी कल नाकाम हो गए, हालाँकि हार्दिक ने अंतिम तीन ओवरों में भारत को उस स्कोर तक ज़रूर पहुंचा दिया जहाँ पर कम से कम ऐसी शर्मनाक शिकस्त नहीं मिलनी चाहिए थी.
यह शायद दबाव का ही नतीजा था कि वह गेंदबाज़ जो अबतक बहुत प्रभावी प्रदर्शन कर रहे थे बिलकुल निष्प्रभावी से नज़र आये. किसी एक गेंदबाज़ को इसमें दोष नहीं दिया जा सकता। हर गेंदबाज़ ने निराश किया। भारत की पारी के दौरान इंग्लैंड के दो स्पिनर्स ने 42 गेंदों में सिर्फ 41 रन दिए वहीँ भारतीय स्पिनर्स ने 36 गेंदों में 57 रन्स लुटा दिए. जो टीम पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 42 डॉट बाल खेले उससे आप 180-190 के स्कोर की उम्मीद कैसे लगा सकते हैं. 42 गेंदों का मतलब 7 ओवर हुए. भारतीय बल्लेबाज़ों का यह एक अक्षम्य अपराध है. पूर्व क्रिकेटर अजय जडेजा भारत की हार से ज़्यादा इस बात से दुखी हैं कि भारतीय टीम में मैदान से ज़्यादा मैदान के बाहर खेल हो रहा है, उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि कुछ खिलाडियों को सिर्फ रेपुटेशन पर खिलाया जा रहा है. उसका इशारा साफ़ था कि अपनी रेपुटेशन पर कौन खरा नहीं उतरा। चहल को पूरे विश्व कप में क्यों टहलाया गया जबकि बाकी टीमों के रिस्ट स्पिनर्स अपनी टीम की जीत में अहम् किरदार निभा रहे थे, कहीं टीम इंडिया में भी तो liking और disliking का खेल तो नहीं चल रहा है. सवाल बहुत से हैं, आने वाले समय में क्या इनका जवाब मिलेगा या फिर दो चार दिन बहसबाज़ी के बाद सबकुछ शांत।