‘मीठी’ गोलियों ने दिलाई ‘कड़वे’ अनुभव से मुक्ति: विश्व होम्योपैथी दिवस पर विशेष
हमीरपुर
कोरोना संक्रमण काल के बावजूद होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों का विश्वास पहले से और बढ़ा है। पिछले तीन सालों में इस पद्धति के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीज भी इससे ठीक हुए हैं।
साल दर साल बढ़ता होम्योपैथी से लाभ लेने वालों का कुनबा
जिला होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी डॉ.मनीष चौधरी ने बताया कि जिला अस्पताल सहित जनपद में होम्योपैथी के 21 अस्पताल हैं। एक को छोड़कर सभी जगह पर्याप्त स्टाफ है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में जनपद में कुल 91180 लोगों ने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पर भरोसा जताते हुए अस्पतालों में अपना पंजीकरण कराया था। इसके बाद कोरोना संक्रमण का दौर शुरू हुआ और अस्पतालों की जनरल ओपीडी बंद कर दी गई। इसके बावजूद वर्ष 2020-21 में 74412 मरीजों ने होम्योपैथी अस्पतालों में उपचार कराया। जैसे ही कोरोना से स्थिति सामान्य हुई वैसे ही मरीजों का रुख फिर से होम्योपैथी अस्पतालों की ओर हो गया। वर्ष 2021 से फरवरी 2022 तक जनपद में रिकार्ड 1.87 लाख मरीजों ने उपचार कराया। जिसमें नए मरीजों की संख्या 99856 है। आंकड़ों की नजर से देखें तो होम्योपैथी के प्रति लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है।
गंभीर बीमारियों में भी रामबाण होम्योपैथी
होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी डॉ.राहुल अस्थाना ने बताया कि महामारी में होम्योपैथिक दवाई न केवल उपचार करती है बल्कि रोग से बचाव में भी सहायक सिद्ध होती हैं। वह स्वयं बच्चेदानी की गांठ, गुर्दे की पथरी, पित्ते की पथरी, ट्यूमर, प्रोस्टेट जैसे कई मरीजों का उपचार कर उन्हें ठीक कर चुके हैं। इस तरह के तमाम मरीज प्रतिदिन अस्पताल आते हैं। इसके साथ ही महिलाओं और बच्चों को देखते हुए यह पद्धति कहीं अधिक सौम्य व सुरक्षित है।
नशे से होने वाली विकृतियों में कारगर
डॉ.अस्थाना कहते हैं कि शराब, सिगरेट, तंबाकू की लत जैसी मादक पदार्थो के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली विकृतियों एवं समस्याओं के समाधान में होम्योपैथिक पूरी तरह से कारगर है।
साइटिका के दर्द से थे बेहाल, अब जाकर मिला आराम
पड़ोसी जनपद फतेहपुर के मवईधाम गांव निवासी 72 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रघुराज साइटिका बीमारी से ग्रसित थे। पैर में असहानीय दर्द होता था। तमाम इलाज के बावजूद फायदा नहीं हुआ तो एक साथी ने होम्योपैथी में इलाज कराने की सलाह दी। जिसके बाद उन्होंने होम्योपैथी पद्धति पर विश्वास करते हुए इलाज शुरू किया। दवाओं ने धीरे-धीरे असर दिखाना शुरू किया। आज तीन साल हो चुके हैं, रघुराज को उस असहानीय दर्द से मुक्ति मिल चुकी है। आज भी वह नियमि तौर पर डॉक्टरों को दिखाने और परामर्श लेना नहीं भूलते हैं। गौरव शिवहरे बताते हैं कि उनके घर-परिवार में कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित होता है तो वह सीधे होम्योपैथी अस्पताल का रुख करते हैं। इस पद्धति से उपचार कराने में किसी किस्म का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और आराम भी जड़ से मिल जाता है। इसी तरह रमेड़ी मोहल्ले की अंजनी द्विवेदी पेट की बीमारी से ग्रसित है। काफी इलाज के बाद भी जब उन्हें आराम नहीं मिला तो उन्होंने भी होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को अपनाया और आज पूरी तरह से ठीक हैं।
क्यों मनाते हैं होम्योपैथी दिवस
होम्योपैथी के जन्मदाता जर्मन मूल के फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन के जन्म दिन 10 अप्रैल को हर साल विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस पैथी में लोगों का इलाज उन पदार्थों से होता है जो पीड़ा के सामान प्रभाव पैदा करते हैं। इस पद्धति में किसी एक बीमारी नहीं बल्कि रोगी के सभी लक्षणों को ध्यान में रखकर उस व्यक्ति के सभी रोगों का इलाज किया जाता है।