सूर्य और चंद्रमा ग्रहण अल्लाह की दो अहम निशानियाँ
डॉ0 मुहम्मद नजीब क़ासमी संभली
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार, 25 अक्टूबर, 2022 को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा। खगोलशास्त्री की तहक़ीक़ के अनुसार सूर्य ग्रहण कई प्रकार के होते हैं: पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण, मिश्रित सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण। हर क्षेत्र में हर बार सूर्य ग्रहण नहीं देखा जा सकता है। जब भी पृथ्वी के किसी क्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है, तो उसके चारों ओर आंशिक ग्रहण होता है। भारत के कुछ हिस्सों में इस बार आंशिक सूर्य ग्रहण शाम 4:29 बजे से शुरू होकर सूर्यास्त तक रहेगा। यह सऊदी अरब में दोपहर 1:33 से दोपहर 3:40 बजे तक और पाकिस्तान में दोपहर 3:57 बजे से सूर्यास्त तक चलेगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण दुनिया भर में चार घंटे चार मिनट तक चलेगा। इस बार कहीं भी पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं दिखेगा। इस बार अधिकतम आंशिक सूर्य ग्रहण (80%) रूस में दिखाई देगा। भारत में आम तौर पर 20% से 40% का आंशिक सूर्य ग्रहण है, केवल कुछ क्षेत्रों में 50% से थोड़ा अधिक है।
सूरज या चाँदग्रहण क्यूँ होता है? इसके विभिन्न कारण बताए जाते हैं, वैज्ञानिक तौर से कहा जाता है कि चाँद पृथ्वी (ज़मीन) के चारों ओर घूमता है और चाँद पृथ्वी की तरह काला है, वह सूरज से रौशनी प्राप्त करता है, जब वह सूरज के चारों ओर घूमते हुए सूरज और पृथ्वी के बीच में आ जाता है, तो सूरज की रौशनी पृथ्वी पर पहुँचने से रुक जाती है जिससे सूरज ग्रहण होता है और जब ज़मीन बीच में आ जाती है और वह चाँद पर रौशनी नहीं पड़ने देती तो चाँद ग्रहण होता है, ज़मानाए-जाहिलियत में समझा जाता था कि किसी व्यक्ति की मौत या किसी बड़ी घटना पर सूरज या चाँद ग्रहण होता है, उपमहाद्वीप में लोगों का विचार है कि इस अवसर पर गर्भवती महिलाएँ छुरी आदि का उपयोग न करें, क्यूंकि सूरज या चाँद ग्रहण होने के कारण उनके पेट (गर्भ) में मौजूद बच्चे का होंट वगैरह कट जाता है, ह़ालांकि हक़ीक़त से इसका कोई भी संबंध नहीं है, न शरई ऐतबार से, न वैज्ञानिक तौर से, यह केवल लोगों का अनुमान है और जहिलाना बात है, हमारा यह ईमान व अक़ीदा (मानना) है कि शरीयत-ए-इस्लामिया में ज़िंदगी गुज़ारने का पूरा तरीक़ा बयान किया गया है, वाक़ई (वास्तव में) इस अवसर पर गर्भवती महिलाओं के लिए छुरी आदि का उपयोग करना हानिकारक होता तो पूरी दुनिया के नबी ह़ज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम, अल्लाह के आदेश (ह़ुक्म) से इसके बारे में अह़काम (आदेश) ज़रूर बयान फ़रमाते, एक बार आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के मुबारक जीवन में जब सूरज ग्रहण हुआ, उसी दिन आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लड़के (साहबज़ादे) ह़ज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहुअन्हु की मौत हो गई और कुछ लोग यह कहने लगे थे कि ग्रहण इनकी मौत के कारण हुआ है, तो आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इसका खंडन करके बयान किया कि सूरज और चाँद अल्लाह तआला की निशानियों में से दो निशानियाँ हैं, किसी की मौत के कारण यह ग्रहण नहीं होते, नबी-ए-अकरमसल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इस अवसर पर लंबी नमाज़ पढ़ी, नबी-ए-अकरमसल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की शिक्षाओं के अनुसार आजतक पूरी उम्मत-ए-मुस्लिमा का यही आदर्श (परिचित) रहा है कि इस अवसर पर नमाज़ पढ़ी जाए, अल्लाह का ज़िक्र किया जाए और दुआ की जाए।
दुनिया में ऐसा महान (शानदार) निज़ाम है कि समय पर सूरज का निकलना, छुपना, चाँद और करोड़ों सितारों का ख़ला में मौजूद होना, हवाओं का चलना, सूरज और चाँद से रोशनी का मिलना, ज़मीन के अंदर अनगिनत ख़ज़ानों का उपलब्ध (मौजूद) होना, बादलों से बारिश का होना, ज़मीन के अंदर पैदावार की क्षमता (सलाहियत) का होना, फलों में विभिन्न प्रकार के स्वाद (मज़े) का पैदा होना, पानी और आग की उपस्थिति (मौजूद होना), इसी तरह पशु, प्राणी (दरिन्दे) और पक्षिओं की अनगिनत जीवों (मख़लूक़ात) की उपस्थिति (मौजूद होना) सब इस बात की रोशन दलील है कि इनको पैदा करने वाला कोई है, अन्यथा (वरना) यह सारा निज़ाम कैसे और क्यों क़ायम (उत्पन्न) हो गया? आज हम एक छोटा से काम भी करते हैं तो उसका कोई न कोई उद्देश्य (मक़स़द) होता है और फिर वह एक दिन समाप्त (ख़त्म) भी हो जाता है, बड़ी बड़ी सरकारों के चौधरी एक गज़ ज़मीन (पृथ्वी) में दफ़न कर दिए गए, मज़बूत क़िले (मह़ल) खंडहर में बदल गए, और ह़वेलीयाँ (कोठियाँ) उजड़ (सुनसान) गईं, यक़ीनन (निश्चित रूप से) वह अल्लाह तआला ही की ज़ात है जो न केवल इंसानों और जिन्नातों का ख़ालिक़ (पैदा करने वाला) है, बल्कि पूरी काएनात को पैदा करने वाला है और केवल वह ही इस पूरी काएनात के निज़ाम (प्रणाली) को चलाने वाला है, हम सब उसके बन्दे हैं, दुनिया की अनगिनत चीज़ें न समझने के बावजूद हम मान लेते हैं, इसी तरह बात समझ में आए या नहीं हमारा यह ईमान व अक़ीदा (मानना) है कि इतनी बड़ी काएनात ख़ुद-बख़ुद (अपने आप) नहीं बन सकती और इतना बड़ा निज़ाम (प्रणाली) ख़ुद-बख़ुद (अपने आप) नहीं रह सकता, सूरज और चाँद का कैसा अजीब व ग़रीब (अनोखा) निज़ाम (प्रणाली) है कि हज़ारों साल गुज़रने के बावजूद एक सेकंड (पल) भी फ़र्क़ नहीं आया, जिस तरह अस्थायी रूप (अचानक) से सूरज या चाँद को ग्रहण लगता है, एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा की यह सूरज अल्लाह के ह़ुक्म (आदेश) से पूर्व के बजाय पश्चिम से उगेगा जैसा कि वैज्ञानिकों ने भी इसके इमकान को मान लिया है, ह़ालांकि शरियत-ए-इस्लामिया ने 1400 साल पहले ही इसको बता दिया था, इसके बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया ख़त्म हो जाएगी, और फिर दुनिया के अस्तित्व (प्राणी, जीवन) से लेकर तमाम इंसानों को उनके किए हुए अअमाल (कार्यों, गतिविधियों) पर बदला या सज़ा दी जाएगी,बहरह़ाल सूरज या चाँद के ग्रहण लगने में किसी जीव (प्राणी) का न दख़ल (ख़लल) है, और न ही पूरी दुनिया मिलकर सूरज या चाँद के ग्रहण को रोक सकती हैं, इसलिए सूरज या चाँद के ग्रहण के समय केवल अल्लाह तआला ही की पनाह मांगी जाए, उसी के सामने झुका जाए, और उसी के दर (दरवाज़े) पर जाकर माथा टेका जाए, क्यूंकि वह ही इस काएनात का ख़ालिक़ (पैदा करने वाला) भी है, और मालिक व राज़िक़ (रिज़्क़ देने वाला) भी, नबी-ए-अकरमसल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम सूरज ग्रहण लगने पर मस्जिद जाकर नमाज़ पढ़ने में लग जाते थे, इसलिए अगर ऐसे मौक़े (अवसर) पर बाहर निकलने से बचा जाए और सीधे तौर पर सूरज को न देखा जाए तो यह अमल (कार्य) सावधानी पर आधारित होगा, क्यूंकि वैज्ञानिक तौर पर भी इस तरह की सावधानी की आवश्यकता (ज़रूरत) है, परंतु घबराने की ज़रूरत नही, क्यूंकि हमारा तो ईमान है कि जो परेशानी या आसानी अल्लाह तआला की तरफ़ से मुक़द्दर में है वह मिलकर रहेगी, ह़ालांकि तकलीफ़ से बचने और आसानी के प्राप्त (हुसूल) करने के उपायों और कारणों को ज़रूर अपनाना चाहिए।
जब भी सूरज ग्रहण हो जाए तो मुसलमानों को चाहिए कि ख़ालिक़-ए-काएनात (अल्लाह तआला) की तरफ़ रुख़ करें, दो रकात नमाज़ अज़ान और इक़ामत (तकबीर) के बग़ैर जमात के साथ अदा करें, और अल्लाह तआला से ख़ूब दुआएँ मांगे, कुछ उलमा हज़रात की राय यह कि दो रकात से ज़्यादा भी पढ़ सकते हैं, क़िरात (पढ़ना) धीरे से करनी चाहिए, ह़ालांकि कुछ उलमा की राय में ऊँची आवाज़ के साथ भी पढ़ सकते हैं, चाँद के ग्रहण के मौक़े पर अकेले नमाज़ पढ़नी चाहिए, जबकि कुछ उलमा की राय के अनुसार जमात के साथ भी पढ़ने की गुंजाइश (क्षमता) है, उन समयों में यह नमाज़ नहीं पढ़नी चाहिए, जिन समयों में नमाज़ पढ़ना मना है, जबकि कुछ उलमा की राय है कि मकरूह समयों में भी पढ़ सकते हैं, सूरज ग्रहण(Solar Eclipse) के मौक़े पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ को “स़लातुल कुसूफ़”, जबकि चाँद के ग्रहण (Lunar Eclipse) के मौक़े पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ को “स़लातुल ख़ुसूफ़” कहते हैं, इस नमाज़ में क़िरात (पढ़ना), रुकूअ और सजदा आदि को इतना लंबा करना चाहिए कि नमाज़ पढ़ते पढ़ते ही ग्रहण ख़त्म (समाप्त) हो जाए, क्यूंकि नबी-ए-अकरमसल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम से इसी तरह से स़ाबित है, जिस तरह से दो रकात नमाज़ पढ़ी जाती है, उसी तरह से यह नमाज़ पढ़ी जाएगी, जबकि कुछ उलमा का विचार यह है कि हर रकात में दो रुकूअ किये जाएँ, सारांश (ख़ुलासा-ए-कलाम) यह है कि उलैमा-ए-अह़नाफ़ की राय यह है कि इस मौक़े (अवसर) पर दो रकात आम नमाज़ की तरह पढ़ी जाए, और सूरज ग्रहण के मौक़े पर जमात के साथ लेकिन धीमी क़िरात (पढ़ना) से, जबकि चाँद के ग्रहण के मौक़े पर अकेले नमाज़ पढ़ी जाए, हाँ! यदि किसी जगह जैसे कि सऊदी अरब में जमात के साथ अदा हो रही हो तो इसमें शरीक हो (मिल) सकते हैं, इन दोनों नमाज़ों में क़ियाम (खड़े होना), रुकू और सजदे लंबे किए जाएँ, अल्लाह तआला का ज़िक्र (वर्णन) भी किया जाए और ख़ूब दुआएँ मांगी जाएँ।
ह़ज़रत अबुबकरा रज़ियल्लाहुअन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज़माने (समय) में सूरज ग्रहण हुआ, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम अपनी चादर घसीटते हुए (तेज़ी से) मस्जिद पहुँचे, स़ह़ाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहुअन्हुम) आपके पास जमा (इकट्ठे) हो गए, आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने उन्हें दो रकात नमाज़ पढ़ाई और ग्रहण भी ख़त्म (समाप्त) हो गया, इसके बाद आप सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “सूरज और चाँद अल्लाह तआला की निशानियों में से दो निशानियाँ हैं, किसी की मौत की वजह से यह ग्रहण नहीं होते, (बल्कि ज़मीन और आसमान की दूसरी मख़लूक़ात की तरह इन पर भी अल्लाह तआला का ह़ुक्म (आदेश) चलता है और इनकी रोशनी (चमक) और अंधेरा अल्लाह तआला के हाथ में है) तो जब सूरज और चाँद ग्रहण हो तो उस समय नमाज़ और दुआ में व्यस्त रहो, जब तक इनका ग्रहण ख़त्म न हो जाए, चूँकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के लड़के ह़ज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहुअन्हु की मौत इसी दिन हुई थी और कुछ लोग यह कहने लगे थे कि ग्रहण इनकी मौत की वजह से हुआ है, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लमने यह बात इरशाद फ़रमाई”, (बुख़ारी: बबुस्सलाती फ़ी कुसूफ़िल क़मर)।
ह़ज़रत आयशा रज़ियल्लाहुअन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के ज़माने में सूरज ग्रहण हुआ, नमाज़ से फ़ारिग़ होकर आप सल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “सूरज और चाँद अल्लाह तआला की दो निशानियाँ हैं, यह दोनों किसी की मौत या पैदा होने से ग्रहण नहीं होते, ऐ लोगो! जब तुम्हारे सामने यह मौक़ा आए तो अल्लाह के ज़िक्र में व्यस्त हो जाओ, दुआ मांगों, तकबीर व तहलील करो, नमाज़ पढ़ो और सदक़ा व ख़ैरात अदा करो”, (मुस्लिम: बाबु सलातिल कुसूफ़ी),
ह़ज़रत नौमान बिन बशीर रज़ियल्लाहुअन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जब सूरज या चाँद ग्रहण हो जाए तो उसी तरह नमाज़ पढ़ो जिस तरह तुमने यह आख़िरी (अंतिम) नमाज़ पढ़ी है, (नमाज़ की तरह)”, (नसाई: बाबु सलातिल कुसूफ़ी), ह़ज़रत क़ुबैसा रज़ियल्लाहुअन्हु फ़रमाते हैं कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के साथ मदीना मुनव्वरा में थे कि सूरज ग्रहण हो गया, आप (सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम) घबराकर बाहर निकले अपने कपड़े को खीचते हुए और दो रकात ख़ूब लंबी पढ़ी, (नसाई: बाबु सलातिल कुसूफ़ी)।