सुलताने हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह0
मोहम्मद आरिफ नगरामी
सुलतानुलहिन्द हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह0 का 810वां सालाना उर्स अजमेर शरीफ में नेहायत शान व शौकत और अदब व एहतेराम के साथ मानाया जा रहा है। ख्वाजा साहब के सालाना उर्स मेें हमेशा की तरह हजारों नहीं बल्कि लाखों अकीदतमंद शिरकत कर रहे हैं। कोरोना महामारी के दौर मेें भी सुलतानुलहिन्द की चौकठ पर हाजिरी देने वालों की तादाद मेें कोई कमी नहीं आयी।
कुदरते इलाही के करिश्मेें भी अजीब है। हिकमते खुदावंदी कब किस चीज का फैसला फरमा दे कुछ नहंी कहा जा सकता। यह हिकबमते इलाही का करिश्मा नहीं तो और क्या है। सातवीं सदी हिजरी मेे खुरासान का एक शख्स हिन्दुस्तान पहुंचा और अपने उलूम और मआरिफ से पूरे हिन्दुस्तान को ऐसा मुसख्ख्र किया कि सदिया गुंजरजाने के बाद उनका नाम सिक्का राजुलवक्त की तरह चलता है। यह सिर्फ सरजमीने हिन्द पर अल्लाह तआला की नजरे इनायत का नतीजा था। कि एक तरफ शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी ने हिन्दुस्तान में हुकूमते इस्लामी को कायम किया तो दूसरी तरफ हजरत गरीबनवाज ने दावती जद्दोजेहद और इसलह व तरबियत के जरिये हिन्दुस्तान में रूहानी सलतनत की बुनियाद रखी।इसे भी हिकमते इलाही के सिवा कुंुछ नहीं कहा जा सकता । कि जिस जाते ग्रामी का नाम आइ सौ साल से ज्यादा मुतावातिर मुसलमानाने हिन्द और दूसरे अहले वतन के दिलों पर हुकूमत कर रहा है उसकी कोई मुस्तनद और मोतबर तारीख नहीं लिखी जा सकती। बहरहाल इस बात की सख्त जरूरत है कि ख्वाजा साहब के असल पैगाम को आम किया जाये। ख्वाजा साहब की जिन्दिगी का अहेम सबब जुर्रअत व हिम्मत है। ख्वाजा साहब की हिन्दुस्तान आमद और अजमेर ही केयाम का फैसला बताता है कि यह जलीलुल्कद्र हस्ती जुर्रअत हिम्मत, शुजाअत और बहादुरी का कोहेग्रां थी। क्यों कि जिस वक्त वह अजमेंरे में केयाम फरमा हुये उस वक्त् तक न सिर्फ यह कि शहाबुद्दीन गौरी ने हिन्दुस्तान पर हमला नहीं किया था बल्कि अजमेर राजपूत हुकूमत और हिन्दू मजहब का बहुत बडा मर्कज था। ख्वाजा साहब ने नाजुक कदम उठाया और पृथ्वीराज चौहान की हुकूमत मेें अपनी रूहानी हुकूमत की बुनियाद रखी। राजा की तरफ से मुखतलिफ मवाके पर सख्तियां भी हुयी लेकिन ख्वाजा साहब को वहां से न हटना था न हटे। ख्वाजा साहब की जिन्दिगी का दूसरा पैगाम रजाये इलाही के हौसले की कोशिश है। रजाये इलाही के हौसले के हुसूल की कोशिश ख्वाजा साहब की जिन्दिगी का उनसुर भी है। और सब से अहेम पैगाम भी। इस लिये उन्हानें ने नमाज रोजा हज और तिलावते कलामुल्लाह हर चीज परी मुद्दम रखने की तालीम दी। ख्वाजा साहब फरमाया करते थे कि नमाज रूकने दीन है, संुतून है और अगर सुतून कायम रहेगा तो घर खडा रहेगा। और जिसने नमाज में खलल डाल ली। उसने अपने दीन औरइस्लाम को ख्राब किया। उन्होंने यह भी कहा कि जब नमाज पढ रहे हों तो यह महसूस करों कि अन्वारे तजल्ली का मुशाहिदा कर रहे हो।
इन्सानी हमदर्दी, शरीयते मोहम्मदी का मेजाज भी हेै और सूफियाये केराम की बुनियादी तलीम भी। यही वह चीज है कि जिसने अल्लाह के बंदों को तंगहाल और तंगदस्त होने के बावजूद बडा उमरा व सलातीन से ज्यादा मकबूूलियत महबूबियत अता की। हिन्दुस्तान में मशायेख चिश्तिया के नाम होने की हैसियत से ,ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने भी इन्सान दोस्ती, हमदर्दी रहेमदिली, और बेगरज और बेलौस खिदमते खल्क के जरिये एक जहान को अपना मुरीद बना लिया। ख्वाजा साहब के जिन्दिगी की इस अहेम पैगाम को आज उससे कहीं ज्यादा अ,िख्तयार करने क्री जरूरत है। हिन्दुस्तान में और पूरी दुनिया में जहां जहां उनके मानने वाले और अकीदतमंद मौजूद है उन पर लाजिम है वह बगैर किसी माददी फायदे के खिदमते खल्क का फरीजा अन्जाम दें। शोशल वर्क के नेजाम के जरिये वह ना सिर्फ यह कि इस्लाम और मुसलमानों के बारे मेें फैलायी जाने वाली गलतफहमियों का इजाला कर सकेंगें बल्कि ख्वाजा गरीब नवाज की तरह इशअते इस्लाम की अजीम खिदमत भी बडी आसानी के साथ अन्जाम दे सकेंगे।
ख्वाजा साहब की जिन्दिगी का यक्सर फरामोशकर्दा पैगाम दावते इस्लामी भी है उनकी अवामी खिदमात नाम व नमूद, रिया किसी और मकसद की वजह से नहीं थीं बल्कि हर चीज का मकसद कलमये तौहीद की इशाअत और इस्लाम के पैगाम को आम करना होता था। यही वजह है कि लाखों अफराद ने उनके हाथ पर इस्लाम कुबूल किया। सिर्फ एक सफर मेें जब वह देहली से अजमेर शरीफ जा रहे थे तो 700 गैर मुस्लिमों ने उनके हाथों पर इस्लाम को कुबूल किया। जाहिर सी बात है कि मुसलमान होने वाले उन सात सौ अफराद में से कुछ सिर्फ उनके अखलाक को देख कर मुतअस्सिर हुये होंगेे। कुछ उनकी जबानी दावत से मुतअस्सिर हुये होंगेें । अहदे हाजिर मेें बिल्खुसूस हिन्दुस्तान के अन्दर ख्वाजा अजमेरी की जिन्दिगी इस नाकाबिले फरामोश पहलू को नजरअन्दाज नहंी किया जा सकता। हिन्दुंस्तानी मुसलमानों पर फर्ज है कि वह सही बुनियादों पर नाम व नमूद, शोहरत और प्रोपैगेंण्डा से बचते हुये सिर्फ अल्लाह के लिए दावते इस्लाम के लिए तैयार हों।