लखनऊ
हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव सैय्यद हसन नसरुल्लाह की शहादत की याद में दरगाह हज़रत अब्बास रूसतम नगर लखनऊ में लखनऊ के मोमेनीन की ओर से ताज़ियती और एहतेजाजी जलसे का आयोजन हुआ जिसमे बड़ी संख्या में उलेमा और अवाम ने शिरकत की। प्रदर्शनकारियों ने अमरीकी और इज़राइली आतंकवाद के खिलाफ नारे बाज़ी करते हुए गोदी मीडिया के बयानात की भी निंदा की जिसमे उन्होंने सैय्यद हसन नसरुल्लाह को आतंकवादी कहा है। इस मौके पर युवाओं ने कैंडल मार्च भी निकाले गए जो दरगाह हज़रत अब्बास पर आकर जलसे में शामिल हो गए। इस मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति और इजरायली प्रधानमंत्री के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे भी लगाए गए।

मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने शहादत और शहीद की अज़मत को बयान किया और ‘गोदी मीडिया’ की निंदा करते हुए कहा कि यह मीडिया वाले नहीं है बल्कि अमेरिका और इजराइल के पालतू है जो भौंक रहे हैं। आख़िर हमारा राष्ट्रीय मीडिया अमरिकी और इज़रायली मीडिया की तरह सैय्यद हसन नसरुल्लाह को आतंकवादी क्यों कह रहा है? इसकी वजह ये है कि ये मीडिया अमरीका और इज़राइल के हाथो बिका हुआ है। उनके पास अपना कुछ नहीं है जो उधर से आता है उसी को दोहराते हैं मौलाना ने कहा क्या ज़ालिम से टकराने वाला आतंकवादी होता है? अगर ऐसा है तो फिर हमारे जिन मुजाहिदों ने अंग्रेजों से लोहा लेकर हमें आज़ादी दिलवाई उन्हें क्या कहोगे? मौलाना ने कहा कि हसन नसरुल्लाह को वही लोग आतंकवादी कह रहे हैं जो गांधी जी और भगत सिंह की विचारधारा के विरोधी हैं। मौलाना ने कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि वो मीडिया पर लगाम लगाए और उन पर नियंत्रण रखे।

मौलाना ने कहा कि आतंकवादी वो होता है जो निर्दोष लोगों को मारता है। अब देख लो कौन निर्दोष लोगों को मार रहा है। क्या हिज़्बुल्लाह ने अब तक एक भी निर्दोष व्यक्ति की हत्या की है? क्या उन्होंने आवासीय भवनों पर हमला किया? बिल्कुल नहीं! इस्लाम में इसकी इजाज़त नहीं है। लेकिन इज़रायली और अमेरिकी सेना ने निर्दोष लोगों को मारा है। आवासीय भवनों पर बम बरसाए है, महिलाओं और बच्चो को मारा हैं। इसलिए मीडिया को असली आतंकवादियों को पहचानना चाहिए। लेबनान में पेजर धमके हुए उनमें निर्दोष लोग मारे गए क्या अब भी इजराइल को आतंकवादी नहीं कहो गे? जो लोग अपनी आज़ादी और अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं उन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है, यह निंदनीय है। उन्होंने कहा कि शहीदों के खून की जितनी बूंदें जमीन पर गिरेंगी उतने ही सुलेमानी और नसरुल्लाह पैदा होंगे।

मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी ने कहा कि सैय्यद हसन नसरुल्लाह की शहादत के बाद औपनिवेशिक ताकतों को ये यक़ीन हो गया है कि वह मोमिनों के दिलों पर राज करते थे। सैय्यद हसन नसरुल्लाह ने कहा था कि अगर तुम ये समझते हो कि हमें शहीद करके ख़त्म कर सकते हो तो फिर हम कर्बला में ही ख़त्म हो गए होते। मगर शहादत हमें नया जज़्बा और हौसला अता करती है।

मौलाना सईद-उल-हसन नक़वी ने ‘गोदी मीडिया’ की निंदा करते हुए कहा कि गोदी मीडिया को सैय्यद हसन नसरुल्लाह की शख्सियत के बारे में मालूम ही नहीं है। सैय्यद हसन नसरुल्लाह मज़लूमो और कमज़ोरो की ताक़तवर आवाज़ थे। जिन्हे तुम आतंकवादी कह रहे हो वो मुजाहिद थे। जिस तरह अंग्रेज़ों ने अपने दुश्मनों और विरोधियों को गद्दार कहा उसी तरह गोदी मीडिया के लोग अमेरिका और इजराइल की पैरवी करते हुए उन्हें आतंकवादी कह रहे हैं जो अमरीका और इज़राइल से लोहा ले रहे हैं। हमारा देश वैचारिक एवं बौद्धिक गुलामी की ओर बढ़ रहा है इसलिए हमें जागरूक रहना होगा।

मौलाना रज़ा हुसैन रिज़वी ने कहा कि क़ुरान ने एलान किया है कि शहीद कभी मरता नहीं, वो हमेशा ज़िंदा रहता है। इसलिए सैय्यद हसन नसरुल्लाह मरे नहीं नहीं है बल्कि उनका किरदार और नज़रिया हमेशा ज़िंदा रहेगा।

मौलाना मंज़र सादिक ज़ैदी ने हिज़्बुल्लाह के साहस और उपलब्धियों को बयान करते हुए कहा कि सैय्यद हसन नसरुल्लाह ने सीरिया और इराक में अइम्मा-ए-मासूमीन (अ.स) के रौज़ों की हिफाज़त की। दाइश (ISIS) को हराया। बेगुनाहो को क़त्लेआम से मेहफ़ूज़ रखा। मौलाना ने कहा कि शहीद कभी नहीं मरता बल्कि वो अपनी शहादत से इस्लाम को अनगिनत फायदे पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि दुश्मन हमारी सफ़ों को मुंतशिर करना चाहता है इसलिए जागरूक रहिये।

मौलाना तसनीम मेहदी ज़ैदपुरी ने शोहदाए इस्लाम को अशआर के ज़रिये श्रद्धांजलि अर्पित की। जलसे का संचालन आदिल फराज़ ने किया जलसे में भारी भीड़ थी। सड़कें जाम थीं। दरगाह के चारों ओर मर्द और औरतें मौजूद थे। हर तरफ अमेरिका, इजराइल, नेतन्याहू, जो बाइडन और गोदी मीडिया के खिलाफ नारे लग रहे थे और मांग की जा रही थी कि हमारा राष्ट्रीय मीडिया अमेरिकी और इजराइली मीडिया की ग़ुलामी ना करे।

ताज़ियती जलसे में मौलाना सैय्यद हैदर अब्बास रिज़वी, मौलाना सरताज हैदर ज़ैदी, मौलाना सलीम अब्बास ज़ैदी, मौलाना मुहम्मद मुस्लिम, मौलाना शहनवाज़ हैदर, मौलाना हसन जाफर, मौलाना तफसीर हुसैन, मौलाना मुहम्मद सक़लैन बाक़री, मौलाना क़मरुमहसन, मौलाना फ़िरोज़ हुसैन ज़ैदी, मौलाना ज़व्वार हुसैन, मौलाना वासिक़ रज़ा, मौलाना एज़ाज़ हैदर, डॉ. हैदर मेहदी, मौलाना फ़ैज़ अब्बास मशहदी और अन्य उलेमा ने भाग लिया।