‘‘यौमे सर सैयद‘‘
मोहम्मद आरिफ नगरामी
अक्तूबर 17 तारीख मुसलमानाने हिन्द के लिये बहुत ही अहेम और तारीखी है क्योंकि यह वह तारीख है जिस दिन अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बानी मुसलेह कौम, माहिरे तालीम और मुसलमानों के मुहसिन सर सैयद अहमद खां पैदा हुये थे। 17 अक्तूबर को सारी दुनिया की अलीग बिरादरी ‘‘ सर सैयद डे‘‘ या यौमे सर सैयद बहुत अहम अकीदत और एहतेराम के साथ मनाती है। सर सैय अहमद खां की यौमे पनैदाईश पर अलीग बिरादरी जलसों, सेमिनारों का एहतेमाम करती है जिस मेें सर सैयद के कारनामों पर तकारीर होती हैं उनके शानदार तालीमी और समाजी खिदमात पर उन को खेराजे अकीदत पेश किया जता है और यह अहेद किया जाता है कि सर सैयद के तालीमी मिशन को और ज्यादा मजबूती के साथ आगे बढाया जायेगा। ‘‘सर सैयद डे‘‘ के मौके पर ‘‘सर सैयद डे डिनर का भी एहतेमाम किया जाता है और यह बहुत शानदार और कदीम रवायत है जिसको अलीग बिरादरी के लोग तसलसुल और पाबंदी के साथ निभा रहे हैं। इस बार सर सैयद का यौमे पैदाईश एक ऐसे वक्त मेें आया है जब कि सारी दुनिया कोरोना वायरस की लपेट मेें है। जलसे, जुलूसों पर पाबंदी आयेद है। इसलिये सर सैयद डे बहुत ही सादगी के साथ आन लाईन मनाने का एलान किया गया है। सर सैयद अहमद खां हमारी कौमी तारीख मेें एक कहकशां के मानिन्द हैं जिस में अनगिनत चांद सितारे रोशन है। उनकी जिन्दिगी अमली जद्दोजेहद से इबारत थी। अलीगढ मुेस्लिम यूनिवर्सिटी के केयाम के सिलसिले मेें जो कारहाये नुमाया उन्होंने अन्जाम दिये वह फकीकुलमिसाल हैं। कुदरत ने उन्हें न सिर्फ बलन्द हौसला और पुख्ता अज्म से सरफराज किया था बल्कि जबर्दस्त कुव्वते एरादी भी अता की थीं। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सर सैयद की बेपनाह सई व काविश की गवाह है।े हकीकत यह है कि अगर खुदा न ख्वास्ता अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का केयाम अमल में न आता तो लाखों मुस्लिम अफराद मुल्क में छोटी छोटी मुलाजमतों और कारोबार मेें सर खपाते होते। आजादी से पहले और आजादी के बाद जो हालात रूनुमा हुये वह बडी आजमाईशों से भरे हुये थे, सर सैयद अहमद खां की दूरअन्देशी ने हाल और मुस्तकबिल के सियाक व सबाक को बहुत अच्छी तरह समो लिया था। गुलामी के दौर मेें मादूदे चन्द लोगों को छोड कर मुसलमानों की पस्ती का दौर था। अहले वतन अंगेजी तालीम से आरास्ता होकर एक बा वेकार जिन्दिगी तलाश मेें थे मगर मुसलमान अंग्रेजी तालीम हासिल करने को गुनाह समझते थे इस नजरिये को फरोग देने मेें हमारा एक मजहबी तब्का भी पेश पेश था गरज कि बडी जबूंहाली का माहौल हमारे इर्द गिर्द मौजूद था। सर सैयद तनो तनहा एक इन्तेहाई मुश्किल काज के लिये सरगर्म जेहाद हो गये। फिर कुदरत ने उन्हें बाद में ऐसे रूफका भी दिये जो एक बा मकसद कारवां की शक्ल अख्तियार कर गये। सन् 1857 ई0 की जंगे आजादी और उसके अन्जाम कार पूरे मुल्क पर फिरंगियों का तसल्लुत हुआ जो हाकिम थे महकूम हो गये। जो आजाद थे पाबंद दारो सलासिल कर दिये गये।े ऐसे में हालात कौम से जदीद तालीम की तरफ बढने का इशारा कर रही थी मगर कौम अंग्रेजती तमलीम हासिल करने से आंखें चुरा रही थी। ऐसे हालात में मर्दे मुजाहिद सर सैयद अहमद खां ने सूरते हालात बदलने का अज्म किया और मोहमडन कालेज की बुनियाद पड गयी चट्टानों का सफर थ धूप कडी थी, पावों के आबले पक कर फूटने की तरफ माएल थे मगर हिम्मत व हौसला वाला शख्स जिसकी बलंद व कुशादह पेशानी एकबालमंदी की शहादत दे रही थी वह अपने अज्म व एरादे से बढता रहा, जख्म खाता रहा और जवाब मेें मोहोब्बत के फूल बरसाता रहा और आज मसलहे कौम हम ख्वाब की ताबीर रोजे रौशन की तरह जगमगा रही है और अलीग बिरादरी पूरी दुनिया में सलाहियत व इस्तेदाद से तामीर व तरक्की के तमाम गोशो को मुनव्वर कर रही है।मुस्लिम यूनिवर्सिटी से फरागज हासिल करने वाले तलबा जहां भी है 17 अक्तूबर को ‘‘सर सैयद डे‘‘ मनाते है। यह कोई रसमी तारीफ नहीं । बल्कि बानीये अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की जद्दो जेहद से इबारत इन खिदमाते जलीला के तईं इजहारे अकीदत के साथ इस रास्ते पर चलते रहने के अहेद को ताजा करने वाली हो।े आज का दौर पहले से ज्यादा पुरआशोब है। सर सैयद की रूह आज पहले से ज्यादा मुज्तरिब हो रही है। इन्सानी जिन्दिगी ने इरतेका की तरफ बहुत लम्बी छलांग लगा दी है। जदीद तालीम की जरूरत व अहमियत बेहद बढ गयी है इसलिये अजीमुश्शन तालीमी व सनअती एदारों का फैलाव हम सब का फरीजा है।
आज के दौर में हम स र सैयद की इन मुश्किलात और दिक्कतों का अन्दाजा नहंी लगा सकते जो उन्होंने यूनिवर्सिटी के कब्ल उठायी थीं और न ही उनकी अजमत का इदैराक कर सकते है।।े वह वाकई रोशनी का तारा थे जिसकी चमक आज भी मौजूद है।े सर सैयद के एहसानात को कौम किसी भी सूरत में सुबुकदोश नहंी हो सकती है । हमारा फरीजा है कि हम सर सैयद के नकूशे कदम पर चल कर उनके मिशन को आगे बढायें , इनकी दी हुयी रोशनी को ज्यादा से ज्यादा फैलाने की जरूरत है। सर सैयद ने तालीम के मैदान मेें जो उसूल वाजा किये थे उनको आगे बढाने की कोशिश की जाये ताकि मौजूदा और आने वाली नस्लें तालीम की खातिर ख्वाह नताएज से इस्तेफादह हासिल करे भरपूर सलाहियत हासिल करें जो सर सैयद खां का नस्बुलऐन था।