शिया, सुन्नी इस्लाम के दो बाज़ू हैं : मौलाना अली फैसल
फहीम सिद्दीकी
फ़तेहपुर बाराबंकी। नौवीं मुहर्रम के मौक़े पर होने वाली अज़ादारी और ताज़ियादारी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। कसीर तादाद में मजालिस में मोमीनीन शिरकत कर रहे हैं और इमाम मेहदी अ0 को पुरसा पेश कर रहे हैं। दिन में होने वाली मजलिस में बड़े इमाम बाड़े मुतवल्ली सैय्यद हसन इब्राहीम काज़मी के बड़े फरज़न्द जनाब हसन तक़ी ने बेहतरीन अंदाज़ में मर्सियाख्वानी की और हजरत औज का लिखा मरसिया पढ़ा। मर्सिया सुनते ही अजादार ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। छोटे इमाम बाड़े की मजलिस में मौलाना अली फैसल ने अपने खिताब में कहा कि नबी के प्यारे सहाबा रजि0 हमारे सर के ताज हैं, हमें अहलेबैत की इज़्ज़त और ताज़ीम करनी चाहिए। मौलाना ने हज़रत इमाम मेहंदी के मनक़ीब व फ़ज़ायल बयान किये। मौलाना ने मज़ीद कहा कि शिया, सुन्नी इस्लाम के दो बाज़ू हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है सिर्फ इख़्तिलाफे-राय है जो दो सगे भाइयों में भी हो सकती। इसलिए सभी को आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए।