शीश महल बनाम स्वर्ण कुटी
राजेंद्र शर्मा का व्यंग्य
भाई मानना पड़ेगा, मोदी जी की फकीरी को। करोड़ों लोगों के सिर पर पक्की छत का इंतजाम करने में लगे हुए हैं। इसी सब के लिए अठारह-अठारह घंटे काम कर रहे हैं। पर अपने लिए एक पक्का तो क्या, कच्चा घर तक नहीं बनवाया है। सिर पर पक्की छत की बात तो भूल ही जाएं, अगले ने अपने लिए न खपरैल की न फूस की, न तिरपाल की, किसी तरह की छत का इंतजाम ही नहीं कराया है। मोदी जी ने जब से दिल्ली में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार शुरू करते हुए अपनी इस फकीरी की याद दिलायी है, बेचारे दिल्ली वासियों को बड़ा गिल्ट-सा महसूस हो रहा है। उनमें से ज्यादातर के सिर पर तो फिर भी पक्की नहीं तो कच्ची, अपनी नहीं, तो किराए की या झुग्गी की ही कम-से-कम छत तो है, जबकि देश का प्रधानमंत्री बेचारा खुले आसमान के नीचे रातें गुजार रहा है ; सर्दियों में ठिठुर-ठिठुर कर, गर्मियों में झुलस-झुलस कर और बारिश में भीग-भीग कर। इसके बाद भी विरोधी हैं कि मोदी जी के खुद को देश का प्रथम सेवक बताने पर, उनके हवाई जहाजों के दाम के ताने मारते हैं। इसका भी ख्याल नहीं करते कि वे दो हवाई जहाज, वे छ:-छ: करोड़ की गाड़ियां, वगैरह सब कुछ तो देश के प्रधानमंत्री की ऑफीशियल सुविधा के लिए है, नरेंद्र दामोदर दास मोदी के निजी उपयोग के लिए थोड़े ही है!
ऐसा ठंड में ठिठुर-ठिठुर कर रातें गुजारने वाला प्रधानमंत्री अगर दिल्ली वाले अरविंद केजरीवाल के शीश महल को गलत कहे, तो क्या गलत है? कहां केजरीवाल, जो एक राज्य का मामूली मुख्यमंत्री है, वह भी केंद्र शासित क्षेत्र यानी आधे-अधूरे राज्य का, उसके ऊपर से मोदी के राज में आधे-अधूरे राज का यानी लैफ्टीनेंट गवर्नर के पौने राज्य के अंगूठे तले, तिहाई-चौथाई राज्य का नाम के वास्ते पूर्व-मुख्यमंत्री और कहां अखंड भारत का यशस्वी प्रधानमंत्री। फिर भी देख लीजिए, छोटे सरकार के नाम शीश महल और बड़े सरकार के नाम सिर्फ हवा महल, बिना छत और बिना दरो-दीवार! उस पर दिलजले के मुंह से एक आह भी निकल जाए, तो विरोधी जान के पीछे पड़ जाएं कि इतनी ऊंची गद्दी पर बैठकर, इतनी छोटी बात मुंह से कैसे निकाल दी!
उल्टे विरोधी अब तो इल्जाम लगा रहे हैं कि मोदी जी के सिर के ऊपर छत ही न होने के दावे झूठे हैं। केजरीवाल ने शीश महल बनवाया, बुरा किया, नहीं बनवाना चाहिए था। फिर भी शीश महल हो या जो भी कुछ हो, था तो सरकारी। तभी तो केजरीवाल के सीएम की कुर्सी छोडऩे की देर थी, शीश महल खुद-ब-खुद छूट गया। लेकिन, इतना ही सरकारी चांदी का महल तो मोदी जी के पास भी है। दस साल में उसके नवीनीकरण के खर्चों का हिसाब-किताब भी तो मोदी जी को देना चाहिए या उसे भी अपनी डिग्री की तरह राष्ट्रहित में गोपनीय ही बनाए रखेंगे। और मोदी जी जो साढ़े चार सौ करोड़ से ज्यादा में अपना सोने का महल, नये सेंट्रल विस्टा के हिस्से के तौर पर बनवा रहे हैं, उसका क्या? सुनते हैं कि मोदी जी के नये महल में तो शाही जमानों की तरह निजी गुप्त सुरंगें भी होंगी, दफ्तर से सीधे बैड रूम तक जाने वाली। मोदी जी उसका नाम भले ही स्वर्ण कुटी रखवा दें, पर होगा तो वह शीश महल से दसियों गुना बढक़र ही। खैर जो भी हो, मोदी जी पर शीशे के महल में बैठकर, दूसरों के घर पर पत्थर फैंकने का इल्जाम कोई नहीं लगा सकता है। मोदी जी ने पहले ही पूरी सावधानी बरती है, चांदी के महल में बैठकर, शीशे के महल वालों पर पत्थर फैंक रहे हैं!