वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक सूद की ‘राइट टू प्रिवेसी: आर्गुइंग फार द पीपुल’ का सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा विमोचन
नई दिल्ली: वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक सूद द्वारा लिखित ‘राइट टू प्रिवेसी: आर्गुइंग फार द पीपुल’ का एक वर्चुअल कार्यक्रम के माध्यम से 6 अक्टूबर को पूरे देश में विमोचन किया गया। इस पुस्तक का विमोचन मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल, दिल्ली उच्च न्यायालय इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि थे। प्रमुख शिक्षाविद प्रोफेसर उपेंद्र बक्सी ने ‘निजता के अधिकार का अनुपालन और प्रवर्तन: एक कठिन कार्य?’ पर मुख्य भाषण दिया।
इस पुस्तक की प्रस्तावना लोकसभा सांसद शशि थरूर ने लिखी है। लेखक ने निजता का अधिकार- फरवरी, 2021 का विवादास्पद मध्यस्थ नियम, भाजपा और कांग्रेस के बीच टूलकिट विवाद, और सरकार पर पेगासस का दुरुपयोग करते हुए प्रमुख राजनीतिक हस्तियों, न्यायाधीशों, अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के बीच वरिष्ठ वकीलों के जीवन में झाँकने के आरोप के संबंध में 2021 के तीन प्रमुख विवादों को निडरता और स्पष्ट रूप से संबोधित किया है।
पुस्तक विमोचन के इस अवसर पर बोलते हुए लेखक विवेक सूद ने कहा, “मैंने अनुचितता और मनमानी के सिद्धांतों के आधार पर 2021 के मध्यस्थ नियमों की संवैधानिकता का परीक्षण किया है। क्या कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कुछ डिजिटल संदेशों के पहले प्रवर्तक को खोजने के लिए नागरिकों की गोपनीयता में घुसपैठ करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं? तब मैंने निजता के अधिकार को लागू करने के क्षेत्र में सुधार हेतु एक केस बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच टूलकिट विवाद को संबोधित किया है। मैंने विवादास्पद प्रश्न- क्या प्रमुख राजनीतिक हस्तियों, न्यायाधीशों, कार्यकर्ताओं और वकीलों के जीवन में ताकझांक करने के लिए पेगासस का उपयोग करने के आरोपों पर सरकार के खिलाफ निजता के अधिकार के उल्लंघन का केस बनाया गया है? का भी उत्तर दिया है।
यह पुस्तक पुट्टास्वामी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को मान्यता देने और भारतीय नागरिकों के जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में है। इसमें कानूनी शब्दजाल का उपयोग नहीं किया गया है और इसे सामान्य पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया है। लेखक ने इसमें आधार की गोपनीयता से संबंधित कमजोरियों, सूचनात्मक गोपनीयता का महत्व, सोशल मीडिया पर गोपनीयता के मुद्दे, निजी डोमेन में वयस्क मनोरंजन का अधिकार, व्यक्तिगत डेटा संरक्षण, एलजीबीटी अधिकार और कई अन्य विषयों को कवर किया है।
“गोपनीयता की अवधारणा में समय के साथ बहुत सारे बदलाव हुए हैं। जैसे-जैसे हम डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहे हैं और इंटरनेट आधारित सेवाओं पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहे हैं, हम निष्क्रिय और सक्रिय रूप से अत्यधिक गहरी डिजिटल छाप छोड़ रहे हैं।
सोशल मीडिया के आगमन के साथ, हमारे दैनिक जीवन का हर पहलू डिजिटल हो गया है, और प्रत्येक व्यक्ति को अब अपनी गोपनीयता के उल्लंघन का अधिक खतरा है। यह पुस्तक एक समझदार डेटा संरक्षण कानून की आवश्यकता और क्यों सभी गोपनीयता नीतियों और गैर-राज्य संस्थाओं की सेवाओं की शर्तों को सरकार द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञ निकायों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे गोपनीयता के अधिकार के उल्लंघन की अनुमति नहीं देते हैं और आनुपातिकता, उद्देश्य और आवश्यकता के सिद्धांतों का पालन करते हैं, पर प्रकाश डालती है”, लेखक विवेक सूद बताते हैं।
थॉमसन रॉयटर्स द्वारा छह अध्यायों में लिखी गई इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है।