“अल्जाइमर दिवस” पर इरम यूनानी मेडिकल कॉलेज में सेमीनार
लखनऊ:
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 21 सितंबर को “अल्जाइमर दिवस” ”नेवर टू अर्ली, नेवर टू लेट” की थीम पर पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। “अल्जाइमर रोग” के विषय में सर्वप्रथम विश्व प्रसिद्ध जर्मन मनोचिकित्सक डॉo एलोइस अल्ज़ाइमर ने वर्ष 1906 में दुनिया को अवगत कराया, चिकित्सकीय अनुसंधान और प्रयोगों से अभी तक इस रोग का कोई उपचारात्मक उपचार नहीं खोजा जा सका है, किंतु जितनी जल्दी हो सके इसका पता लगाने के पश्चात, प्रभावित रोगी की समस्या एवं चिंता को कम करने और उसके जीवन को बेहतर बनाने में कुछ सफलता प्राप्त हुई है, इसी संदर्भ में इरम यूनानी मेडिकल कॉलेज के हकीम मुहम्मद अजमल खां सेमिनार हॉल में प्रातः 11 बजे कॉलेज के प्राचार्य प्रोफ़ेसर अब्दुल हलीम क़ासमी की अध्यक्षता में मोआलजात संकाय के तत्वाधान एवं संकायाध्यक्ष प्रोo मोहम्मद आरिफ़ इस्लाही के मार्गदर्शन में बीयूएमएस बैच 2017 (अंतिम वर्ष) के छात्र-छात्राओं द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विभाग के प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही के अलावा कॉलेज के सभी शिक्षक, बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एवं अन्य कर्मचारीयों ने भाग लिया। कार्यक्रम में उक्त बैच के छात्रों के अतिरिक्त प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही, प्रोफ़ेसर सैयद मुफ़ीद अहमद (अध्यक्ष कुल्लियात संकाय) ने संयुक्त रूप से बीमारी “अल्जाइमर” के संबंध में चर्चा की, जो वैश्विक स्तर पर मानव जाति के जीवन और स्वास्थ्य के लिए खतरा है। उन्होंने प्राचीन एवं आधुनिक चिकित्सा सिद्धांतों के प्रकाश में बचाव, उपचार तथा इसके बारे में जन जागरूकता की योजना पर बहुत महत्वपूर्ण और विस्तृत जानकारी दी तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि चिकित्सा के क्षेत्र से हमारे संबंध के कारण हमें अल्ज़ाइमर के बारे में चिंतित होना चाहिए, हमें जनमानस में जागरूकता पैदा करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
प्राचार्य प्रोफ़ेसर अब्दुल हलीम क़ासमी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में चिकित्सा विज्ञान की ओर से उक्त बीमारी का उपचार खोजने हेतु चल रहे निरंतर प्रयासों की सराहना की, उन्हों ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि चूंकि अब तक इस बीमारी का निदान नहीं खोजा जा सका है, इसलिए इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु लोगों में जागरूकता पैदा करना, सुरक्षात्मक उपायों को बढ़ावा देना एवं संयमित जीवनशैली अपनाने हेतु प्रेरित करना ही एक मात्र उपाय है। कार्यक्रम का समापन प्रोफ़ेसर मुहम्मद आरिफ़ इस्लाही के शोधात्मक एवं प्रयोगात्मक टिप्पणियों के साथ हुआ।