दिल्ली:
कर्नाटक की भाजपा सरकार ने 18वीं सदी में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान द्वारा शुरू की गई मंदिरों में ‘सलाम आरती’ को बदलने का फैसला किया है। इस सलाम आरती को ‘सलाम मंगल आरती’ या फिर ‘दीवतिगे सलाम’ जैसे नामों से भी जाना जाता है।

जानकारी के अनुसार बसवराज बोम्मई सरकार ने यह फैसला हिंदूवादी संगठनों की मांग पर लिया है। दरअसल कई संगठनों ने विचार व्यक्त किया था कि चूंकि मैसूर शासक टीपू सुल्तान इस्लाम धर्म को मानने वाले थे, इसलिए उनके द्वारा शुरू की गई सलाम आरती परंपरा को बंद कर दिया जाना चाहिए।

इस संबंध में मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिरों में होने वाली आरती का नामकरण सलाम आरती के तौर पर किया था। कथित तौर पर ऐसा माना जाता है कि टीपू सुल्तान की इच्छा थी कि मंदिर के पुजारी उसके ‘सम्मान’ में इस आरती को करें। सबसे पहले यह प्रथा कोल्लूर के मंदिरों में शरू की गई, उसके बाद मेलकोट मंदिर में हर शाम में ‘सलाम आरती की जाने लगी।

बताया जा रहा है कि कुछ हिंदू संगठनों इस सलाम आरती का विरोध करते हुए इसे बंद करने की मांग की, जिसके बाद कई मंदिरों ने सलाम आरती का नाम बदल दिया और इसे ‘आरती नमस्कार’ के नाम से कर रहे थे। इस विवाद में कर्नाटक धर्मिका परिषद के सदस्य कशेकोडि सूर्यनारायण भट ने कहा कि हिंदूओं की मांग एकदम सही है, सलाम हम हिंदूओं का नहीं बल्कि टीपू सुल्तान का दिया शब्द है और चूंकि वो मुस्लिम शासक थे, इसलिए हमें इस तरह की प्रथा को नहीं निभाना चाहिए।