रुपाणी का जाना भूपेंद्र का आना, भाजपा में जारी है सीएम बदलने की परंपरा
मोहम्मद आरिफ नगरामी
कई महीनों के गौर व फिक्र व सोच व विचार के बाद आखिरकार गुजरात के वजीरे आला, विजय रूपानी ने बीजेपी हाई कमान की हिदायत पर अपना इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह पर भूपेन्द्र पटेल को वजीरे आला नियुक्त कर दिया गया और आज उन्होने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली है। सहपाठ ग्रहण समारोह में गृह मंत्री अमित शाह ने बतौरे खास शिरकत की। कई महीनों से खबरें गर्म थीं कि बीजेपी आला कमान विजय रूपानी के काम से खुश नहीं थी, साथ ही गुजरात के लोग भी रूपानी से नाखुश थी और गुजरात के आई ए एस, और आई पी एस अफसरान विजय रूपानी के आदेशों पर अमल नहीं करते थे जिसकी वजह से गुजरात हुकूमत में अफरा तफरी का माहौल बन गया था।
कहा जाता है कि कोरोना काल में बहुत ज्यादा मौतें गुजरात में हुयीं, कोरोना के निपटने के लिए विजय रूपानी ने कोई प्रभावी रणनीति नहीं बनाई, जिसकी वजह से शहरियों को कोरोना काल में सही इलाज, दवा, अस्पताल वगैरा, उपलब्ध नहीं करा सकी जिसकी वजह से गुजरात के लोगों में बीजेपी के खिलाफ गम व गुस्सा की लहर थी। बीजेपी ने अभी कुछ दिनों पहले गुजरात में जो अन्दुरूनी सर्वे करया था उसमें बीजेपी की पराजय साफ तौर पर दिखाई पड रही थी जिससे खौफजदह और परेशान होकर बीजेपी आला कमान ने विजय रूपानी को हटाने का फैसला कर लिया और उनकी जगह पर पहली मरतबा एमएलए, बने भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
भूपेन्द्र पटेल की नियुक्ति से बीजेपी के कई उन बडे लीडरों में नाराजगी पैदा हो गयी है जो खुद को इस कुर्सी पर देखना चाहते थे। नाराज लीडरों में केंद्रीय मंत्री मनसुख मान्डविया , उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सी0 आर0 पाटिल के नाम शामिल हैं. लेकिन जब मुख्यमंत्री के नाम का एलान हुआ तो लोग हैरान रह गये, चॅूंकि भूपेन्द्र पटेल पहली बार एमएलए बने थे, उनके पास न तो कोई ओहदा था और न ही हुकूमत चलाने का तजुर्बा। अगर कोई सबसे बड़ी योग्यता थी तो वह यह कि भूपेन्द्र पटेल की गृह मंत्री अमित शाह से नज़दीकी जिसने उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचाने में मदद की।
गुजरात में अगले साल दिसम्बर में असेम्बली का एलेक्शन होने वाला है, ओर बीजेपी नहीं चाहती थी कि वह एक नाकाम मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ एलेक्शन के मैदान में उतरे, इसलिये उन्होंने विजय रूपानी को ओहदे से हटा दिया। असेम्बली चुनाव से पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री को तब्दील करने का फैसला पहली बार नहीं किया, बल्कि बीते 6 महीनों में पार्टी ने 4 राज्यों में पांच चेहरे बदले हैं। गुजरात में विजय रूपानी, कर्नाटक में बी0एस येदुरूप्पा, और उत्तराखण्ड मेें त्रिवेन्द्र सिंह रावत, और तीरथ सिंह रावत को बदला गया व आसाम में स्वरूपानन्द्र सोनवाल के बजाये इलेक्शन के बाद बिसवा सरमा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया। जहां तक गुजरात का सवाल है तो वहां नरेन्द्र मोदी के अलावा, हर बार एलेक्शन के पहले वजीरे आला तब्दील किया गया है। साथ ही यह बात भी बहुत ही अहेम और खास है कि नरेन्द्र मोदी के अलावा, किसी भी वजीरे आला ने अपनी पांच साल की मुद्दत पूरी नही की।
गुजरात मेें बीजेपी ने 1995 में पहली बार हुकूमत बनाई थी, तब मिस्टर केशू भाई पटेल पहली बार बीजेपी के वजीरे आला बनाये गये थे, लेकिन केशू भाई के खिलाफ नाराज़गी की वजह से पार्टी को अपना मुख्यमंत्री तब्दील करना पडा और फिर 221 दिनों के बाद सुरेश मेहता ने सत्ता संभाली । उस वक्त शंकर सिंह वाघेला गुट वाघेला को मुखयमंत्री बनाने का मुतालबा कर रहा था, लेकिन पार्टी ने उनके बजाये मिस्टर मेहता को यह जिम्मेदारी सौंपी और पार्टी से नाराज हो कर वाघेला ने बीजेपी को अल्विदा कह दिया और बीजेपी की हुकूमत गिर गयी। कुछ दिनों के बाद वाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री बन गये, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही उनकी हुकूमत का भी खात्मा हो गया। 1998 में एलेक्शन हुये तो बीजेपी को फतेह हासिल हुयी और केशू भाई पटेल को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाया गया मगर केशू भाई पटेल एक बार फिर आला कमान की उम्मीदों पर पूरे नहीं उतर सके, तो नरेन्द्र मोदी को 7 अक्तूबर 2001 को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया, इसके बाद 2002, और 2007 और 2012 के असेम्बली एलेक्शन मोदी के नेतृत्व में लडे गये और फिर 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनन्दी बेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन उन्हें भी अगला एलेक्शन लडने का मौका नहीं मिला और 2017 के असेम्बली एलेक्शन के पहले आनंदी बेन पटेल की जगह पर विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। 2017 का चुनाव विजय रूपानी के नेतृत्व में लडा गया जिसमें बीजेपी को सिर्फ 99 ही सीटें मिली, रियासत के 122 सीटों वाली असेम्बली में बीजेपी की यह सबसे कमजोर कारकर्दगी थी और अब जब कि अगले साल गुजरात असेम्बली के लिये एलेक्शन होने वाले हैं, बीजेपी की आला केयादत में एक बार फिर विजय रूपानी को तब्दील करके चुनाव से पहले वजीरे आला बदलने की पुराणी परंपरा को बरकरार रखा है।
दरअसल बीजेपी हो या कांग्रेस या दूसरी अपोजीशन पार्टियां सब 2024 के लोकसभा चुनाव की मन्सूबा बंदी और तैयारियों में व्यस्त हैं, कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहती है, जहां राज्य के नेतृत्व में तब्दीली की जरूरत है, वहां इसमें तब्दीली की जा रही है और जहां मुख्यमंत्री को बदलने की जरूरत है, मुख्यमंत्री को बदला जा रहा है जैसे जैसे पार्टी को फीडबैक मिल रहा है। आला कमान कदम उठा रहा है।
विजय रूपानी का ओहदे से हटाया जाना जितना हैरतअंगेज है, उतना ही भूपेन्द्र पटेल की नियुक्ति है। 12वीं पास सिविल डिप्लोमा होल्डर, भूपेन्द्र पहली मरतबा मेम्बर असेम्बली बने हैं, इससे पहले उनके पास न सरकार में और न ही पार्टी मेें कोई जिम्मेदारी थी। वह गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्रीऔर उत्तर प्रदेश की मौजूदा गवर्नर आनंन्दी बेन पटेल के बेहद करीबी है और उनकी ही वजह से वह मेम्बर असेम्बली बने हैं, इसलिये कहा जा रहा है कि उनका इन्तेखाब किसी करिश्मे से कम नहीं हैं।