पुरूस्कार नमक या नमक पुरस्कार!
(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
थैंक यू मोदी जी। भारत रत्न की लाइन में आडवाणी जी का भी नंबर आखिरकार आपने लगवा ही दिया। वर्ना लोगों ने तो कहना भी शुरू कर दिया था कि आडवाणी जी का नंबर अब नहीं आएगा। जब पीएम इन वेटिंग की लाइन में लगे-लगे ही रिटायर्ड हो गए, पर पीएम बनने का नंबर नहीं आने दिया। उल्टे बेचारों को मार्गदर्शक मंडल में पहुंचा दिया, ऊपर बैठकर सिर्फ तमाशा देखते रहने के लिए। फिर मोदी जी उनको भारत रत्न कैसे मिल जाने देेंगे? अटल जी को भारत रत्न दिलवा दिया। मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिलवा दिया। नानाजी देशमुख को भारत रत्न दिलवा दिया। और तो और पहले प्रणव मुखर्जी को भी और अभी पिछले ही दिनों मौका देखकर कर्पूरी ठाकुर तक को भारत रत्न बनवा दिया। पर आडवाणी जी का नंबर नहीं आया। जब अब तक नंबर नहीं आया, तो अब नंबर क्या आएगा।
पर देख लीजिए, अभी नंबर आ गया। जब लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि अब आडवाणी जी का नंबर नहीं आएगा, तभी मोदी जी ने आडवाणी जी का नंबर लगा दिया। न किसी जन्म दिन वगैरह का इंतजार किया, न किसी और खास मौके का, बस नंबर लगा दिया। पहले नंबर लगता तो लोगों को लग भी सकता था कि आडवानी जी का नंबर अपने आप आ गया है, अटल जी के बाद; जैसे हमेशा आता था। पर अब किसी भ्रम की गुंजाइश नहीं है, साफ-साफ नजर आ रहा है कि आडवाणी जी का नंबर खुद आया नहीं है। आडवाणी जी का नंबर तो मोदी जी द्वारा लाया गया है। थैंक यू मोदी जी, सातवें नंबर पर ही सही, पर आडवानी जी का भी नंबर लगवाने के लिए।
विघ्र संतोषी फिर भी यही कह रहे हैं कि यह भारत रत्न भी सम्मान नहीं है। यह तो सांत्वना यानी आंसू पोंछ पुरस्कार है। जिसने आंसू दिए हैं, वही आंसू पोंछ पुरस्कार भी दे रहा है। 22 जनवरी के आंसू तो अभी सूखे भी नहीं होंगे, जब आडवाणी जी के साथ वैसी ही हो गयी, जैसी शाहजहां के साथ औरंगजेब ने की बताते हैं। ताजमहल तो बनकर तैयार हो गया, पर शाहजहां कैद कर दिया गया। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तक हो गयी, पर आडवाणी को उपस्थित रहने में असमर्थ घोषित कर दिया गया। घर की कैद में बैठकर टीवी पर देखते रहें, मोदी जी को प्राण प्रतिष्ठा करते हुए, जैसे शाहजहां दूर से बैठा देखता रहा अपना ताजमहल। वहीं मंदिर के लिए धूनी रमाई, आडवाणी जी ने। रथ यात्रा निकाली, आडवाणी जी ने। देश भर में आग लगायी, आडवाणी जी ने। आंखों के सामने मस्जिद गिरवायी, आडवाणी जी ने। यह सब कर के मंदिर पार्टी को पहली बार कुर्सी दिलवायी, आडवाणी जी ने। पर जब मंदिर बन गया, तो आडवाणी जी को ही किनारे कर दिया; सारथी ने ही रथी से सारथी कर दिया। भारत रत्न नहीं, यह तो जले पर नमक है; भारत माता के जले पर यह तो खैर नमक-मिर्च सब है ही, आडवाणी जी के जले पर भी नमक ही है, मरहम नहीं। देखा नहीं कैसे, खबर सुनते ही अगले की आंखों से आंसू निकल पड़े।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)