मरीजों को ‘मीठी’ गोली दे रही ‘कड़वे’ अनुभव से मुक्ति
साल दर साल होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति मरीजों का विश्वास दृढ़ होता जा रहा है। बीते वित्तीय वर्ष में 1.34 लाख मरीजों ने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को अपनाया। पिछले चार सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह अपने आप में एक रिकार्ड बन गया है
जिला होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी डॉ.ऊषा कुमारी बौद्ध ने बताया कि जिला अस्पताल सहित जनपद में होम्योपैथी के 21 अस्पताल, 19 डॉक्टर और दो फार्मासिस्ट हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 में जनपद में कुल 91180 नए मरीजों ने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पर भरोसा जताते हुए अस्पतालों में अपना पंजीकरण कराया था। इसके बाद कोरोना संक्रमण का दौर शुरू हुआ और अस्पतालों की जनरल ओपीडी बंद कर दी गई। इसके बावजूद वर्ष 2020-21 में 74412 और वर्ष 2021-22 में 99856 मरीजों ने उपचार कराया। जबकि वर्ष 2022-23 में रिकार्ड 1.34 लाख नए मरीजों ने होम्योपैथी पर विश्वास जताया है।
सौम्य व सुरक्षित है होम्योपैथी पद्धति
जिला होम्योपैथी अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉ.राहुल अस्थाना ने बताया कि महामारी में होम्योपैथिक दवाई न केवल उपचार करती है बल्कि रोग से बचाव में भी सहायक सिद्ध होती हैं। बच्चेदानी की गांठ, गुर्दे-पित्ते की पथरी, ट्यूमर, प्रोस्टेट जैसे मरीजों को भी इस पद्धति से फायदा हुआ। ऐसे मरीज रोज ही ओपीडी में आते हैं। इसके साथ ही महिलाओं और बच्चों को देखते हुए यह पद्धति कहीं अधिक सौम्य व सुरक्षित है।
नशे से होने वाली विकृतियों में कारगर
डॉ.अस्थाना बताते हैं कि शराब, सिगरेट, तंबाकू जैसे मादक पदार्थो की लत से उत्पन्न होने वाली विकृतियों एवं समस्याओं के समाधान में भी होम्योपैथिक पूरी तरह से कारगर है।
गुर्दे की पथरी से थी बेहाल, इलाज से मिला फायदा
मौदहा कस्बा निवासी 32 वर्षीय गृहणी प्रियंका अनुरागी बताते हैं कि उनके गुर्दे में पथरी है। दर्द से बेहाल हो जाती थी। करीब छह माह से नियमित होम्योपैथी दवाओं का सेवन कर रही हैं। बहुत फायदा हुआ है। अब पहले जैसा दर्द नहीं होता है।
फालिस के असर से मिली मुक्ति
किंग रोड निवासी रईस बताते हैं कि उनके भाई को फालिस का असर था। होम्योपैथी अस्पताल का ही नियमित उपचार चला। अब पहले से बहुत आराम है। वह स्वयं किसी भी किस्म की बीमारी होने पर होम्योपैथी दवा का ही सेवन करता है। इससे मर्ज जड़ से खत्म हो जाता है।
क्यों मनाते हैं होम्योपैथी दिवस
होम्योपैथी के जन्मदाता जर्मन मूल के फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन के जन्म दिन 10 अप्रैल को हर साल विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस पैथी में लोगों का इलाज उन पदार्थों से होता है जो पीड़ा के सामान प्रभाव पैदा करते हैं। इस पद्धति में किसी एक बीमारी नहीं बल्कि रोगी के सभी लक्षणों को ध्यान में रखकर उस व्यक्ति के सभी रोगों का इलाज किया जाता है।