सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बच गयी रहीम अली की नागरिकता
सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते नागरिकता को लेकर एक अहम फैसला दिया है. पहले फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल और फिर गुवाहाटी हाईकोर्ट की ओर से विदेशी ठहराए गए एक शख्स को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नागरिक माना है. ये पूरा मामला 12 साल पुराना है. असम की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने मोहम्मद रहीम अली नाम के शख्स को विदेशी ठहराया था. बाद में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी यही फैसला बरकरार रखा. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो बड़ी बातें कहीं. पहली- अधिकारी बिना किसी सबूत के सिर्फ शक के आधार पर किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित नहीं कर सकते. और दूसरी- सरकारी दस्तावेजों में छोटी सी स्पेलिंग मिस्टेक से किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता शक के दायरे में नहीं आती.
दरअसल असम की फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने मार्च 2012 में मोहम्मद रहीम अली को फॉरेनर्स एक्ट 1946 की धारा 9 के तहत इस आधार पर विदेशी घोषित कर दिया था कि वो अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने में नाकाम रहा है. उसने दावा किया था कि उसके माता-पिता का नाम भवानीपुर विधानसभा के डोलुर पथेर गांव की 1965 और 1970 की वोटर लिस्ट में दर्ज था. 1997 में शादी के बाद वो नलबाड़ी जिले के काशिमपुर गांव में आ गया, जहां की वोटर लिस्ट में भी उसका नाम था. जांच अधिकारी एसआई बिपिन दत्ता ने दावा किया था कि रहीम अली इस बात को साबित करने में नाकाम रहे थे कि वो 1 जनवरी 1966 से पहले भारत में आ गए थे. मार्च 2012 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने रहीम अली को विदेशी घोषित कर दिया था. नवंबर 2015 में हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि अधिकारी बिना सोचे-समझे किसी भी व्यक्ति पर विदेशी होने का आरोप नहीं लगा सकते. और बिना किसी सबूत और शक करने के लिए जरूरी जानकारी होने के बगैर उसकी नागरिकता की जांच शुरू नहीं कर सकते. कोर्ट ने कहा, ‘ये अधिकारियों पर निर्भर करता है कि उसके पास इस बात का शक करने के लिए सबूत या जानकारी है कि कोई व्यक्ति विदेशी है और भारतीय नहीं.’ अदालत ने कहा, ‘सवाल ये है कि क्या फॉरेनर्स एक्ट की धारा 9 अधिकारियों को ये अधिकार देती है कि आप किसी भी व्यक्ति के घर जाएं और उसे बताएं कि हमें आपके विदेशी होने पर शक है.’ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा कि रहीम अली के खिलाफ रत्ती भर सबूत नहीं था. रिकॉर्ड में भी कोई जानकारी या सबूत नहीं रखे गए. कोर्ट ने ये भी पूछा कि रहीम अली के बांग्लादेश के होने की जानकारी कहां से मिली थी?
बता दें कि फॉरेनर्स एक्ट की धारा 9 के तहत ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ आरोपी पर होता है. यानी उसे ये साबित करना होता है कि उसके ऊपर जो आरोप लगे हैं, वो गलत हैं. इस पर कोर्ट ने कहा, ‘भले ही बर्डन ऑफ प्रूफ व्यक्ति पर होता है, लेकिन उसके खिलाफ जो सबूत और जानकारी है, उसकी जानकारी उसे होनी चाहिए, ताकि वो अपना बचाव कर सके.’ कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून की धारा 9 की आड़ में या उसका सहारा लेकर ट्रिब्यूनल न्याय के सिद्धांतों को नजरअंदाज नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि कानूनन बर्डन ऑफ प्रूफ आरोपी पर हो सकता है, लेकिन ये बर्डन तभी कम होगा जब उससे सबूत या जानकारी साझा की जाएगी. अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘बुनियादी सबूतों के अभाव में कार्रवाई शुरू करने के लिए अधिकारियों के अनियंत्रित और मनमाने विवेक पर नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति को गंभीर नतीजे भुगतने पड़ते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी साफ किया कि अगर इलेक्टोरल रोल या सरकारी रिकॉर्ड में किसी व्यक्ति के नाम की स्पेलिंग में मामूली अंतर है तो उसकी भारतीय नागरिकता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल रोल तैयार करते समय नाम की स्पेलिंग में मामूली गलती होना कोई अजीब घटना नहीं है. अदालत ने कहा कि इलेक्टोरल रोल की तैयारी के दौरान कई बार नाम, डेट ऑफ बर्थ और एड्रेस की कैजुअल एंट्री कर दी जाती है, जिस कारण लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इसके अलावा, हमारे देश में कभी-कभी किसी व्यक्ति के नाम के आगे या पीछे कुछ टाइटल जोड़ दिया जाता है. ऐसा लगता है कि ट्रिब्यूनल इस सब से पूरी तरह बेखबर है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘न सिर्फ असम में, बल्कि कई राज्यों में ये देखा गया है कि महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों में भी लोगों के नाम की अलग-अलग भाषा के कारण अलग-अलग स्पेलिंग हो सकती है और होती भी है. और इलेक्टोरल रोल या फिर किसी भी सरकारी दस्तावेज में नाम कर्मचारी नोट करते हैं, इसलिए उनके उच्चारण के आधार पर स्पेलिंग में बदलाव हो सकता है.’ लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के आदेश को एकतरफा मानते हुए उसे खारिज कर दिया और मोहम्मद रहीम अली को भारतीय नागरिक घोषित किया.