क़ुरआन मजीद इन्सानी ज़िन्दगी का रहबरे कामिल
-मो. आरिफ़ नगरामी
इस्लामी तारीख का अगर आप मुताला करेंगें तो आपको मालूम होगा कि इस्लामी अहेद के हर दौर मेें इस तरह के मुनाफिक लोग मिल जायेंगेें जो मुसलमानों के भेस में रह कर इस्लाम को बदनाम करने और उसकी जड़ों को कमजोर करने की कोशिश करते रहे है। इसमेें सबसे पहला और बडा नाम यमन के मुनाफिक अब्दुल्लाह बिन अब्बी का आता है जो दौरे मोहम्मदी मेें शहरे रसूल सल0 में सुकूनत अख्तियार करके इस्लाम के खिलाफ काम करता रहा और लोगों को इस्लामी तालीमात के खिलाफ भड़काता रहा और उकसाता रहा। उसके बाद से बहुत से इस्लाम मुखालिफ तहरीकें इस्लाम का लबादा ओढ़ कर वारिद हुयीं और मजहबे इस्लाम के खिलाफ बहुत बडे पैमाने पर ज़हर अफशानी की और इसके लिये उन्होंने बेतहाशा पैसा खर्चा करते रहे लेकिन इस्लाम को अलहम्दुलिल्लाह कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। इस्लाम मुखालिफ तहरीकेें और अवाम आज भी इस काम मेें मशगूल हैं मगर जैसे जैसे इस्लाम को दबाने की कोशिशें हो रही हैं इस्लाम की मकबूलियत में उतना ही इजाफा हो रहा है। शहरे निगारां लखनऊ का एक बदकिस्मत मुरतद और दुश्मने इस्लाम शख्स वसीम रिजवी भी है जो अपने सियासी आकाओं को खुश करने के लिये और अपने तहफ्फ़ुज़ के लिये इस्लाम पर हमले कर रहा है। मलवून और मुरतद वसीम रिजवी ने नउजुबिल्लाह क़ुरआन हकीम को निशाना बनाने की कोशिश की है जिसकी वजह से उसको तमाम दुनिया के मुसलमानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है और तमाम दुनिया के मुसलमान मलवून व मुरतद वसीम रिजवी की फौरी गिरफ़्तारी का मुतालबा कर रहे है।
वसीम रिजवी लखनऊ के एक कदीम मोहल्ला कशमीरी मोहल्ले का बाशिन्दा है जिसकी ज़िन्दगी बहुत ही ग़ुरबत और परेशानियों में गुजरी उसकी अचानक मुलाकात लखनऊ के ही एक शिया आलिमे दीन से हो गयी । धीरे धीरे मौलाना और वसीम रिजवी के तअल्लुकात में गहराईयां पैदा हो गयीं। मौलाना की कोशिशों और असर व रुसूख की वजह से वसीम रिजवी कशमीरी मोहल्ले का कार्पोटर बन गया उसके बाद वह शिया वक्फ बोर्ड का मेम्बर बना और फिर शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बन गया उसके बाद उसने वक्फ की जायदादें फरोख्त करके और वक्फ की इमलाक मेें हेराफेरी करके करोड़ों का आदमी बन गया। वक्फ जायदादों की फरोख्त में करोडों रू0 का घपला होते हुये मौलाना साहब नहीं देख सके। उन्होंने वसीम रिजवी के खिलाफ तहरीक चला दी। सैंकडों जलसे किये मगर वसीम रिजवी अपने ओहदे पर बरकरार रहा। जब योगी जी की हुंकूमत बरसरे एक्तेदार आयी तो उन्होंने घपलों के खिलाफ सीबीआई इन्क्वायरी कायम कर दी, साथ ही वसीम रिजवी को शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के ओहदे से हटा दिया।
अब वसीम रिजवी को अपनी जान माल और इज्जत को बचाने की फिक्र हुई तो उसने वह सब गैर इस्लामी, गैर शरई काम करने शुरू कर दिये जिससे मरकजी हुकूमत और रियासती हुकूमत खुश हो गयी । इस काम के लिये वह अयोध्या भी गया और रामजी के दरबार में अपना माथा भी टेका। राम मन्दिर की तामीर के लिये चन्दा देकर मौजूदा हुकूमत को खुश करने की भी कोशिश की। उसके साथ ही उसने कुछ महीने पहले क़ुरआन पाक के 26 आयतों को हटाने के लिये सप्रीम कोर्ट मेें अर्ज़ी दी थी लेकिन कोर्ट ने वसीम रिजवी की अर्ज़ी को खारिज कर दिया था और 50 हजार रू0 का जर्माना भी आयेद किया था मगर शैतान वसीम रिजवी ने उन 26 आयतों को हटा कर अपनी तरफ से एक खुदसाख्ता किताब तैयार की और हुकूमते हिन्द को खत लिख कर उस किताब को हिन्दुस्तान के मदारिस और मकातिब मेें दाखिल करने की दरख्वास्त की है। इसकी इस धिनावनी और मजमूम हरकत से मिल्लते इस्लामियां में बेचैनी और गम व गुस्सा है और इसकी जल्द से जल्द गिरफ़्तारी का मुतालबा किया जा रहा है।
जहां तक क़ुरआने पाक का तअल्लुक है तो वह सफ़हे समाविया में अपने खुसूसियात के एतेबार से मुन्फरिद किताब लिखी हुई है। क़ुरआने मुकद्दस की सबसे बड़ी खुसूसियत उसका तहरीक से महफूज रहना है। क़ुरआने हकीम सूती, लफ़्ज़ी और तरतीब के एतेबार से भी महफूज है खुद क़ुरआने पाक में अल्लाह तआला का इरशाद है जो उस खास इम्तियाज की तरफ इशारा करता है। बेशक हमने क़ुरआन नाजिल किया और हम इसकी हिफाजत करने वाले हैं । इससे मालूम हुआ कि क़ुरआने हकीम क़यामत तक अपने खूुसूसियात के साथ महफूज और काबिले इस्तेफादा रहेगी। इन्शाअल्लाह।
क़ुरआने पाक एजाजे बयानी के साथ रूश्द व हिदायत, इल्म व फिक्र अखबारे बिलगैब, ख़ल्क़े इन्सान और कायनात के इक़रार और खुदा की मख़लूक़ात की ख़ुसूसियात और मुख़्तलिफ़ शोबों में रहनुमाई वाली किताब है। क़ुरान मजीद से पहले भी आसमानी किताबे इस दुनिया में मौजूद थीं लेकिन क़ुरान मजीद के अलावा कोई भी किताब अपनी अस्ल हक़ीक़त पर बाक़ी नहीं रहीं। अलबत्ता क़ुरआन मजीद जो सैयदना मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह पर नाज़िल हुआ इसके सिलसिले में खुद आप सल0 पर पाबन्दी थी कि अपनी तरफ से हरफ़ का इज़ाफ़ा नहीं कर सकते हत्ताकि आप सल0 को इसका भी इख़्तियार नहीं था कि इसमें किसी लफ़्ज़ के बजाये कोई दूसरा हम्मानी लफ़्ज़ का इज़ाफ़ा कर सकेें । चुनांचा अल्लाह अताआला अपने कलाम को हज़रत जिब्रईल अलै0 को वही करता ओर वह मोहम्मद सल0 को बताते कि रसूले करीम सल0 हजरत जिब्रईल अलै0 के बताये हुये कलमात लोगोंु को सुनाते । रसूले करीम सल0 को ताकीद की कि र्कुआने करीम की तिलावत में उजलत से काम न लेूं बल्क्रि उसके लफज व मानी के साथ अच्छी तरह जेहन नशीन कर लेें और फिर लोगों मको सुनायें। रसूले करीम सल0 की हेयाते तय्यबा मेें ही जैसे जैसे र्कुआन का नुजूल होता जब्त तहरीर मेेंल े आया जाता। इसके लिये कातिबीने वही भी मुकर्रर थे इसके अलावा आप सल0 र्कुआनी आयात का साल में एक मर्तबा अआदाद भी करते बजरिये वही आप सल0 को हर सूरत की आयात के मुतअल्लिक हेदायत दी जाती कि उसकी जगह फलां फलां है। हत्ता कि आयात और सूरतों की तरतीब में भी रसूले करीम सल0 को जरा भी दखल नहंी था। इसतरह र्कुआन मजीद की हिफाजत की गयी। इसमेें न तो एक लफज का इजाफा हुआ और न कमी। बल्कि र्कुआनी आयात और सूरतों की तरतीब मेें भी कोई तब्दीली नहंी हुयी । और उसकी फजीलत तकद्दुस वैसा ही बाकी है जैसा की नुजूले र्कुआन के वक्त था और केयामत तक बाकी रहेगा।
आप सल0 की लिखाई सूरतों और आयतों को पूरी हिफाजत और एहतियात के साथ इसी तरतीब से जो अल्लाह तआला की तरफ से रसूल सल0 को बतायी गयी थी। मुतअद्दिइ नुस्खों में खिलाफते सिद्दीकी और खिलाफते उस्मानी ने पूरी एहतियात और अहमियत के साथ मु,ख्तलिफ इलाकों मेें भेज दिया गया। और किस तरह हिफाजत के साथ यह जामे किताब हिदायत तमाम इलाकों में आम हो गयी और केयामत तक इसको बाकी रखने इन्तेजाम भी कुदरती तौर पर इस तरह हो गया कि हर जमाने में लाखों इन्सान इसको जबानी याद करते है। और वह दुनिया के तमाम मकामात पर फैले हुये है। और इनमें से किसी के भी पढने या याद रखने मेें एक दूसरे से अदना सा एख्तेलाफ नजर नहीं आता। मशहूर मुअर्रिख, मुफस्सिर ओर मुसन्निफ अबुल फजल जलालुद्दीन ने अपनी किताब मेें क़ुरआन मजीद के 55 नाम खुसूसी तौर पर जिक्र किये है। उनके बुनियादी खुसूसियत यह है कि उन 55 नामों का हवाला र्कुआन मजीद की सूरतों में भी माॅजूद है।