शब्दों के संग पुत्र के स्वरों में जी उठे पं.बलवंत राय भावरंग
उ.प्र.संगीत नाटक अकादमी में पत्रिका का विमोचन व संगीत कार्यक्रम
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में परतंत्रता की बेड़ियों से देश को आजाद कराने के लिए अपने गीतों से लोगों में अलख जगाने और स्वातंत्र्य आंदोलन का भाव रंगों में भरने वाले गायक संगीतज्ञ पद्मश्री पं.बलवंत राय भावरंग का स्मरण करते हुए उनपर केन्द्रित अकादमी की पत्रिका छायानट के विमोचन अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया।
अकादमी परिसर गोमतीनगर के संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में अतिथियों की उपस्थिति में वाराणसी के षास्त्रीय गायक राहुल भट्ट और अकादमी कथक केन्द्र की दर्षनीय कथक संरचनाओं की प्रस्तुति ने सुधी संगीत प्रेमियों को रससिक्त किया।
इस अवसर पर अकादमी अध्यक्ष डा.राजेश्वरीआचार्य ने अपने गुरु पं.भावरंग के संबंधित संस्मरण रखते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उन्होंने बताया कि संगीत के प्रति प्रेम और देशभक्ति भावना उनमें 95 वर्ष की अवस्था में अंतिम दिनों तक जागृत रहीं। पंडितजी मेरे गुरु थे और उनका देशभक्ति गीत लिखकर गाने का शौक तब और उत्साह में बदल गया जब वह अपने गुरु पं.ओंकारनाथ ठाकुर से मिले।
काशी हिंदू विष्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय से बतौर शिक्षक रहे। गुरुजी की आंखों की रोशनी एक बीमारी में भले चली गई थीं। आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले संगीत कार्यक्रम वह खूब सुना करते थे। अपनी ख्याल गायकी की अलग षैली के लिए प्रसिद्ध बलवंत राय भट्ट द्वारा लिखे गीतों पर आज भी दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं। उनके गीतों से मुग्ध होकर सन् 1952 में अफगानिस्तान के शाह के महल में उन्हें अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए बुलाया था।
इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए अकादमी के सचिव तरुण राज ने पं.भावरंग के योगदान पर प्रकाश डाला और बताया कि हाल में अकादमी ने कुम्भ, योग, सरसरंग, गिरिजादेवी, पं.रविशंकर पर विशेषांक प्रकाशित किये हैं। पं.भावरंग पर केन्द्रित यह अंक आलोक पराड़कर के संपादन में है। उपस्थित प्रेक्षकों के अतिरिक्त कार्यक्रम का आनन्द संगीतप्रेमियों ने अकादमी फेसबुक पेज पर ऑनलाइन भरपूर आनंद लिया।
पिता पं.बलवंत राय भावरंग और दिग्गज शास्त्रीय कलाकारों को सुन-सुनकर गायन सीखने वाले पं.राहुल भट्ट ने पितृपक्ष पर अपने पिता को श्रद्दांजलि देते हुए उनकी रची रचनाओं को पेश किया। पहले राग नंद और रूपक मध्यलय में पगी ख्याल रचना- ऊधो काहे आये ब्रज में और द्रुत तीन ताल में वारि वारि पुनि वारि जांऊ से आलाप इत्यादि के संग पूरे शास्त्रीय तौर तरीकों से की। तबला वादन की तालीम पं.नागेश्वर प्रसाद मिश्र व पं.छोटैलाल मिश्र से लेने वाले राहुल भट्ट द्वारा राग अडाना में प्रस्तुत अगली चतुरंग रचना- होरी खेलत नंदलाल….. की प्रस्तुति में शास्त्रीय लालित्य खिल उठा। नाट्य और पार्श्व संगीत देने में सिद्धहस्त पं.भट्ट ने रागश्री आड़ा चौताल में निबद्ध तराना रचना ने अपनी गायकी के परिपक्व स्वरूप को सामने रखा। रूपक ताल और भैरवी में आजादी से पहले की पिता पं. बलवंत राय की गीत रचना- स्वाधीन भारत सर्वद सुख शांति जग में चाहता है…. में उन्होंने स्वाधीन भारत की परिकल्पना को स्वरों के माध्यम से जीवंत किया। हारमोनियम पर कमलाकांत व तबले पर उनका साथ राजीव मिश्र ने दिया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में अकादमी कथक केन्द्र की छात्राओं ने श्रुति शर्मा के नृत्य निर्देशन में पं.भावरंग की छोटा ख्याल रचना और तराने पर आधारित ‘कथक भावरंग’शीर्षित प्रस्तुति मंच पर उतारी। केन्द्र की छात्राओं प्रियम यादव, सृष्टि प्रताप, शगुन, यादव, अंतरा सिंह, गौरी शुक्ल, सान्वी सक्सेना, विधि जोशी आरोही श्रीवास्तव से खूबसूरत गतियों और संयोजनों में गायक कर रचनाओं को विस्तार दिया। गायन व संगीत पक्ष को कमलाकांत ने अपने सुरों से सजाया तो तबले पर कुशल तबलानवाज राजीव शुक्ल व बांसुरी पर दीपेन्द्र कुंवर ने उम्दा साथ निभाया। रूपसज्जा शहीर व सचिन की रही।