लखनऊ
देश की आजादी के समय भारत के शासक वर्ग ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को शासन चलाने की नीति के रूप में ग्रहण किया था। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसे विभिन्न आयाम सरकार की जिम्मेदारी थी। इसी के तहत कर्मचारियों की न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार वेतन और सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था में सम्मानजनक जीवन जीने के लिए गैर अंशदायी पेंशन योजना को स्वीकार किया गया था। इस पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारियों को कोई अंशदान नहीं देना पड़ता और 20 साल की सेवा पूरी करने के बाद अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता था। उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवारजनों को इसका 60 प्रतिशत पेंशन के रूप में प्राप्त होता था। इसके अलावा यह भी प्रावधान था कि कर्मचारी जीपीएफ (जनरल प्रोविडेंट फंड) में अपनी सेवा काल में अंशदान जमा करता था जो सेवानिवृत्ति के वक्त में ब्याज सहित उसे प्राप्त हो जाता था। इसके अलावा कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का भी भुगतान किया जाता था।

1991 में नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों आने के बाद सरकार ने कल्याणकारी राज्य की अपनी जिम्मेदारियां से पल्ला झाड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जो सुविधा मजदूरों और कर्मचारियों को मिलती थी उनमें एक-एक कर कटौती की जाती रही। 2004 में अटल बिहारी वाजपेई की एनडीए सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को खत्म करके नई पेंशन योजना चालू किया। इस पेंशन योजना में कर्मचारियों का अंशदान 10 प्रतिशत रखा गया और सरकार शुरुआत में 10 प्रतिशत का अंशदान करती थी जिसे बाद में बढ़ाकर 14% कर दिया गया। इससे सेवाकाल में जो पूरी धनराशि बनती थी उसका 60 प्रतिशत कर्मचारियों को सेवानिवृति के समय मिल जाता था और शेष 40 प्रतिशत को शेयर मार्केट में लगाया जाता था और उसके लाभांश के रूप में पेंशन दी जाती रही। इस योजना के कारण बहुत सारे कर्मचारियों को 5000 से भी कम पेंशन प्राप्त हुई। स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों में इसके विरुद्ध एक बड़ा गुस्सा था। लोकसभा चुनाव और इसके पहले के विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा बना। राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारों ने पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की बात की है। जिसमें से राजस्थान में भाजपा सरकार बनने के बाद ओपीएस को वापस ले लिया गया।

भाजपा और आरएसएस की सरकार समझ रही है कि कर्मचारियों को नाराज करके वह देश में लम्बे समय तक राज नहीं कर सकती है। इसलिए मोदी सरकार ने वित्त सचिव टी वी सोमनाथन के नेतृत्व में नई पेंशन स्कीम में सुधार के लिए एक कमेटी का भी गठन किया। हालांकि इस कमेटी के अध्यक्ष द्वारा पुरानी पेंशन को लागू करने से साफ इनकार कर दिया गया और इसे सरकार पर बड़ा वित्तीय भार बताया।

बहरहाल अभी मोदी सरकार ने 24 अगस्त 2024 को यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) की घोषणा की है। इस पेंशन स्कीम में सुनिश्चित पेंशन के नाम पर कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति वर्ष के 12 महीनों में प्राप्त वेतन के बेसिक पे के 50 प्रतिशत को पेंशन के रूप में देने का प्रावधान किया गया है। शर्त यह है कि कर्मचारी 25 साल की नौकरी पूरा करें तभी उसे यह पेंशन मिलेगी। इस अवधि तक सेवा करने वाले कर्मचारियों के परिवारजनों को उसकी मृत्यु पर पेंशन का 60 प्रतिशत पारिवारिक पेंशन मिलेगी। जबकि पुरानी पेंशन स्कीम में सेवा अवधि 20 साल थी। सरकार का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के हितों के पूर्णतया विरुद्ध है। क्योंकि आमतौर पर नौकरी में आयु सीमा की छूट के कारण इस तबके के लोग 40 साल तक की आयु में नौकरी पाते हैं और 60 साल की सेवानिवृत्ति में वह मात्र 20 साल ही पूरा कर पाएंगे। जिसके कारण उन्हें इस पेंशन का पूर्ण लाभ नहीं मिल सकेगा। इसके अलावा 10 साल नौकरी करने वालों को न्यूनतम ₹10000 पेंशन राशि देना निर्धारित किया गया है।

यूनिफाइड पेंशन स्कीम में सरकार ने कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के समय दी जा रही पेंशन में डियरलेस अलाउंस देने की कोई बात नहीं की है। सुनिश्चित पेंशन प्राप्त होने के बाद इन्फ्लेशन इंडेक्सेशन यानी मुद्रास्फीति सूचकांक के अनुसार डियरलेस रिलीफ दी जाएगी। सरकार ने कहा है कि सेवानिवृत्ति के समय ग्रेच्युटी के अलावा कर्मचारियों को एकमुश्त भुगतान किया जाएगा। यह एकमुश्त भुगतान उसके अंतिम वेतन और डीए को मिलाकर जो वेतन बनेगा उसका दसवां हिस्सा होगा और उसकी कुल सेवा अवधि को 6-6 महीने में बांटकर इस 10 प्रतिशत का गुणांक का उसको भुगतान किया जाएगा। उदाहरण से हम इसको समझ सकते हैं यदि किसी कर्मचारी की सेवा अवधि 25 साल है और उसका अंतिम वेतन 1 लाख रुपए है तो उसे 50 छमाही अवधि का 10 हजार के गुणांक यानी 5 लाख रुपए का भुगतान किया जाएगा। इस पेंशन योजना में सेवा अवधि के दौरान कर्मचारियों ने जो 10 प्रतिशत अंशदान जमा किया है और सरकार का 18.5 प्रतिशत अंशदान है उसके भुगतान पर कुछ भी नहीं बोला गया है। जबकि सभी जानते हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम में तो कोई अंशदान नहीं था। नई पेंशन स्कीम में भी जो अंशदान था इसका 60 प्रतिशत सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारियों को मिलता था। लेकिन इस योजना में अंशदान का कोई पैसा मिलने का प्रावधान नही है। स्पष्टतह कर्मचारियों के अंशदान के पूरे पैसे को सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम के जरिए लेने का काम किया है।

पुरानी पेंशन देने में सरकार का संसाधन ना होने का तर्क भी बेमानी है। इस देश में संसाधनों की कमी नहीं है यदि यहां कॉरपोरेट और सुपर रिच की सम्पत्ति पर समुचित टैक्स लगाया जाए तो इतने संसाधनों की व्यवस्था हो जाएगी कि कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू की जा सकती है। साथ ही साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार की भी गारंटी होगी। आइपीएफ ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों तक सामाजिक सुरक्षा के लाभ को विस्तारित करने की सरकार से मांग की है और कर्मचारी संगठनों से इसके पक्ष में खड़ा होने की अपील की है। आइपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने पुरानी पेंशन योजना के अधिकार के लिए जो कर्मचारी और कर्मचारी संगठन लड़ रहे हैं उनसे अपनी एकजुटता व्यक्त की है और सरकार से यूपीएस जैसी योजनाओं को लाने की जगह पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग की है।