तौक़ीर सिद्दीक़ी

पूजा-आरती, अज़ान-नमाज़, तीज-त्यौहार यह सब तो प्रेम, मोहब्बत, शांति और सुकून के पर्यायवाची माने जाते थे पर ऐसा क्या हो गया कि यह शब्द अब विलोमार्थी हो गए. पिछले कुछ महीनों से देश में नफरत का एक सिलसिला चल निकला है. कभी हिजाब, कभी हलाल और अब अज़ान बनाम हनुमान चालीसा।अचानक दिल को सुकून पहुँचाने वाली पांच वक़्त की अज़ान लोगों को तकलीफ देने लगी, इतनी तकलीफ कि बदले की बातें होने लगीं, चेतावनी दी जाने लगी कि लाउडस्पीकर से मस्जिदों की अज़ान बंद नहीं हुई तो जवाब में अज़ान के वक़्त तेज़ आवाज़ में मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा का पाठ किया जायेगा।

एक अजीब सा सिलसिला निकल पड़ा, अज़ान भी सुकून देती है और हनुमान चालीसा भी लेकिन लोगों ने दोनों को एक दूसरे के सामने दुश्मन की तरह खड़ा कर दिया। यह दोनों ही चीज़े भगवान और अल्लाह की भक्ति और इबादत के लिए हैं. नमाज़ के समय जब मस्जिदों से अज़ानों की सदा सुनाई देती है तो एक रूहानी माहौल सा बनता है वहीँ मोहल्ले के किसी हनुमान मंदिर में सुबह और शाम की आरती के समय हनुमान चालीसा का जब पाठ सुनाई देता है तो एक आध्यात्मिकता का मन में बोध होता है, मन को शांति मिलती है.

लेकिन अचानक देश में लाउडस्पीकर का एक शोर उठा और लोग पागलों की तरह उसके पीछे भागने लगे. रमजान का पाक महीना, राम नवमी का पवित्र त्यौहार, लोग इन त्योहारों में शांति इबादत और पूजा करने के बजाय तेरा लाउडस्पीकर, मेरा लाउडस्पीकर करने लगे. जिनको कल तक अज़ान से ऐतराज़ नहीं था उन्हें अज़ान बुरी लगने लगी, जिनको हनुमान चालीसा से कभी परेशानी नहीं थी उन्हें हनुमान की भक्ति बुरी लगने लगी. यह दो पवित्र त्यौहार राजनीति की भेंट चढ़ गए, प्रेम और शांति की जगह हिंसा और नफरत ने ले ली. एक दो नहीं कई राज्य इसकी चपेट में आ गए. सियासत चमकने लगी और इंसानियत भटकने लगी. चंद सिरफिरों ने राजनेताओं के जाल में आकर उनके इशारों पर नाचना शुरू कर दिया। छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं की बातें होने लगीं। अरे तुम्हे कौन छेड़ रहा है और तुम किसको नहीं छोड़ेगे, कभी सोचा है? इस तरह की सोच से कभी किसी का भला नहीं होने वाला।

आप मस्जिदों से लाउडस्पीकर से अज़ान दे रहे हैं, किसी को नहीं पसंद है तो आप उसपर मर्ज़ी थोप नहीं सकते। अब अगर ज़िद में ही सही, कोई ख़ास अज़ान के समय ही लाउडस्पीकर से हनुमान चालीसा का पाठ करने की बात कर रहा तो आप उसे रोक नहीं सकते। अगर कोई रोक सकता है तो वह शासन और प्रशासन है. देश में लाउडस्पीकर के उपयोग के कुछ नियम और कानून हैं. कानून में लाउडस्पीकर से अज़ान या हनुमान चालीसा के पाठ की अनिवार्यता या अधिकार की बात कहीं नहीं लिखी है. यह तो हमारे देश की समावेशी सभ्यता की सूंदर मिसाल है कि अज़ान भी होती है और आरती भी और किसी को समस्या नहीं। मगर अब राजनीति ने समाज में जो ज़हर बोया है अज़ान बनाम हनुमान चालीसा जैसे विवाद उसका परिणाम हैं.

कुछ वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं जिनमे सुबह सहरी के समय मुस्लिम युवक गलियों में घूमकर उन हिन्दू भाइयों को जगा रहे हैं जो सुबह की अज़ान के समय हनुमान चालीसा पढ़ना चाह रहे हैं. अच्छी बात है, आप अज़ान दें और नमाज़ पढ़ें वह हनुमान चालीसा पढ़ना चाहें तो हुनमान चालीसा पढ़ें। आप नमाज़ के समय अल्लाह की इबादत में ऐसे मशग़ूल हों कि आपको किसी भी तरह का कोई शोर प्रभावित ही न कर सके. अपने ईमान को और मज़बूत बनायें बल्कि किसी वक्त अगर हिन्दू भाई हनुमान चालीसा का पाठ न करें तो उसका सबब जानें कि क्या बात है, क्या कोई बीमार तो नहीं हो गया, खैरियत पता करें। पैग़म्बर मोहम्मद साहब के अनुयायी हैं तो उनका अनुपालन भी करें।

यह वह बेवजह के मुद्दे हैं जिनका विरोध करके आप उन्हें तूल देते हैं वरना न अज़ान लाउडस्पीकर की मोहताज है और न ही हनुमान चालीसा। बिना लाउडस्पीकर भी अगर आप अज़ान देंगे तब भी नमाज़ी मस्जिद आएंगे और लाउडस्पीकर से आरती न होने पर भी हनुमान जी नाराज़ नहीं होंगे। इसलिए लाउडस्पीकर के पीछे पागलों की तरह भागना बंद कीजिये वरना यह सियासतदां आपको इसी तरह भगाते रहेंगे। आज अज़ान बनाम हनुमान चालीसा के पीछे भगा रहे हैं कल किसी और के पीछे आपको भगाएंगे।