इस्लाम का पैकर हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती संजरी रह.
मोहम्मद आरिफ नगरामी
एक फन्ने तिब का माहिर अपने जमाने का सबसे मशहूर मआलिज जिसके हाथ से हजारो मरीज शिफा पा चुके हैं। वह एक मामूली मर्ज से अपनी इकलौती होनहार जवान औलाद को नहीं बचा सकता। और अपनी आंखों से उसके दम तोडने का तमाशा देखना पडता हे दूसरी तरफ एक फाकाकश बेकस का बच्चा मर्ज मोहलिक में मुब्तिला होता है दवा इलाह?ज को कोई सामान नहीं होता मगर फिर भी अच्छा होता है गर्ज हर अदना व आला को अपनी रोजाना जिन्दगी में ऐसे तजुर्बात व हालात से दो-चार होना पडता है। ऐसे ही हालात इंसान को बेबर कर देते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं। कि इंसानी हाथों के उपर भी कोई परदे में कोई न कोई आलिमे-गैब कादिरे मुतलक है बस यही एतिकाद व इमान बिलगैब मजहब की जान है और इस कामिल असरो कैफ को अपने अंदर पैदा कर लेना तसव्वुफ और इल्म बातिल है। हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती ने अपनी करामात और पैगाम से छोटे बडे अदना व आला मर्द औरत सबको राहे मुस्तकीम पर चलने की तलकीन की तबलीगे इस्लाम के लिए मदीना मुनव्वरा से उस वक्त हिन्दुस्तान तशरीफ लाये जब बुतपरस्ती का दौर दौरा था चोरी मक्कारी अययारी, जिनाकारी, फोहश सब उरूज पर थी पृथ्वीराज के दौरे हुकूमत मे ंहर चहार तरफ बुतपरस्ती का दौर दौरा था हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह मदीने से दिल्ली और फिर अजमेर में इशाअते इस्लाम और तालीम व इरशाद के लिए हिन्दुस्तान तशरीफ लाये और अजमेर में सुकूनियत इख्तेयार की। दौराने सफर अपने मुरीदों को जगह जगह पर छोडने और वहीं इशाअते इस्लाम की तबलीग करने की तलकीन फरमाई। हिन्दुस्तान में इस्लाम का आफताब वलीद बिन अब्दुल मलिक खलीफए बगदाद के अहदे हुकूमत में ही जलवागर हुआ 705 में वलीद बिन मलिक के सिपा सालारों ने हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह की दुआवों से फुतूहात हासिल की और इस्लाम का परचम बुलंद हुआ। हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह बीस साल तक सफर पर रहे हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी की खिदमत में रहे और नेमत व खिलाफ से मुशर्रफ हुए आप बहुत बडे साहबे इल्म थे, आपकी तसानीफ बकसरत मौजूद है आप रियाजत व इबादत में इस तरह मशगूल हुए कि सत्तर बरस तक आप रातों को नहीं सोये कस्बा सनजान में हजरत नजमुददीन कबरी से और जिलान में हजरत गौसुल आजम शेख अब्दुल कादिर जिलानी से मुलाकात की आपकी मशहूर किताब अनीसुल अरवाह से पता चला कि ख्वाजा कुतुबुददीन बख्तार काकाी और सुल्तान तारिकीन शेख हमीदुददीन सूफी आपके खुलफा में थे बाद विसाल आपकी पेशानी मुबारक पर यह इबारत लिखी पाई गयी।
‘‘हबीबुल्लाह मा फी हुब्बिल्लाह’’
यानी खुदा का दोस्त खुदा की मोहब्बत में उसके साथ वासिल हुआ।
हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह बिन ख्वाजा गयासुददीन बिन सै. हुसैन अहमद बिन सै. ताहिर बिन सै. इब्राहीम बिन सै. मेहदी, बिन इमाम हसन असकारी रजि. आपका नस्ब है। हजरत ख्वाजा की वालिदा का विसाल 552 में हुआ आपकी मजार दरवाजए शाम के मुत्तसिल है आपका नाम हजरत माह नुर अलमशहूर उम्मुलवरा था जो हजरत दाउद की बेटी थी आपकी वालदा का नस्ब नामा हजरत उम्मुल वरा दाउद बिन सै अब्दुल्लाह हम्बली बिन सै जाहिद बिन सै मोहम्मद मोरिस बिन सै दाउद अव्वल बिन सै मूसा बिन सै अब्दुल्ला महज बिन हजरत सै हसन मुसन्नना बिन हजरत इमाम हसन अलै. है।
हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह की विलादत 14 रजबुल मुरज्जब बरोज दोशम्बर 537 हि बमुकाम संजरिस्तान में हुई बचपन की इब्तेदाई मंजिलें वालिद की जेरे सरपरस्ती में तय की। सात बरस की उमर से खरासां मंे रहे वहीं तालीम व तरबियत और नशोनुमा हुई पन्द्रह बरस की उम्र में वालद की सरपरस्ती से महरूम हो गये 552 हिज्री में वालिद ने सफर आखिरत इख्तेयार किया।
आपके वालिद माजिद ने तुर्के में एक बाग और एक चक्की छोडी जो आपके हिस्से में आयी खुद ही बाग की बागबानी करते थे एक रोज अपने बाग में पानी दे रहे थे फसल तैयार हो चुकी थी इसी दौरान इब्राहीम कंदोजी जो इसी कस्बे के शेख वक्फ थे उसी बाग की तरफ से गुजर हुआ हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह ने आपको देखा तो ताजीम से बैठाया और कुछ अंूर नजर किये।
हजरत इब्राहीम बहुत खुश हुए आने अपनी जेब से एक टुकडा खिल का निकाला और दांत से कतरकर हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह को खाने के लिए दिया। उसे खाने के बाद हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह पर कैफ तारी हो गया। आपने तमाम बागात राहे खुदा में छोडकर सफर इख्तेयार किया। ख्वाजा गरीब नवाज ‘‘अनीस अरवाह’’ में खुद अपना हाल बयान करते हुए कहते हैं। ‘‘मैं खुद अपना हाल बयान करते हुए कहते है। ‘‘मैं जब बगदाद पहुंचा तो हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी से मिलने की तमन्ना थी मालूम हुआ कि हजरत मस्जिद में नमाज अदा कर रहे है। वहीं मैं भी जा पहुंचा शेख की कदम बोसी हासिल करके खडा हुआ तो फरमाया दोगाना नमाज पढ मैंने तामील हुक्म की फिर इरशाद हुआ किब्ला रो बैठकर सूरह बकरह उसके बाद बीस बार कलमा पढो मैंने पढा। उसी वक्त शेख उस्मानी खडे हो गये और मेरा हाथ पकडकर आसमान की तरफ मुंह किया और फरमाया कि आ तुझे मैं खुदा के सुपुर्द करता हूं। दस्ते मुबारक में मकराज थी उसी से मेरे सर के बाल तराशे। सर पर कुलाह रखी और गिलीम खास अता की आपने अपनी उंगलियां मुझे दिखाई और कहा कि क्या नजर आया मैं ने कहा सब कुछ आपने फरमाया कि जा काम सरअंजाम को पहुंचा।
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रह ने फिर फरमााया कि ‘‘मसाफत तय करता हुआ खाने काबा से वापसी फिर बगदाद आया। हजरत ख्वाजा उस्मान के साथ फिर मसाफत इख्तेयार की 11 बर्स तक अबरीक व जामा ख्वाब हजरत का अपने सर पर रख कर चलता था बीस बर्स तक हजरत के साथ मसाफत तय की 10 माह शव्वाल 560 हिजरी को असा मुसल्ला खिर्कए मुबारक अता फरमाया बाद हजरत ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती रह ने खुदा का शुक्र अदा किया।’’
ख्वाजा गरीब नवाज ने दिल्ली से अजमेर तक के सफर में अपने खुलफा को कस्बात व शहरों में तबलीगे इस्लाम के लिए छोडते हुए सैकडों कुफफार व मुशरिकीन को मुशर्रफ बा इस्लाम फरमाते हुए अजमेर पहुंचे। आना सागर के किनारे को अपना मुस्तकर करार दिया। आपकी अशाअत इस्लाम से खौफ जदा होकर राजा अजमेर पर बहुत जोर डाला गया कि वह ख्वाजा गरीब नवाज से अजमेर खाली कराये उनको शहर बदर करें। मगर किसी की ताब न थी। कसीर तादाद में फौज लेकर लोग जबरदस्ती निकालने के लिए आये मगर जब रामदेव हुजूरी में हाजिर हुआ तो नजर पडते ही कदमों पर गिर पडा और मुशर्रफ ब-इस्लाम हुआ। हजरत गरीब नवाज रह की हजारहा करामात है जिनका जिक्र किया जाये तो अवराक कम पड जायेंगे चंद करामात का जिक्र है कि ‘‘शेरे औलिया’’ में मौलाना बदरूददीन फरमाते हैं, कि ‘‘हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर में आये तो रात बसर करने के लिए एक दरख्त के नीचे बैठ गये दरख्त के नीचे राजा अजमेर के ऊंट बंधा करते थे शाम को जब ऊंट बांधने वाले ने कहा कि ये ऊंट के बैठने की जगह है तुम यहां से उठ जाओ हजरत गरीब नवाज ने कहा लो हम यहां से जाते हैं तुम्हारे ऊट बैठे रहेंगे। आप वहां से आकर अना सागर में कयाम पजीर हो गये। ऊंटों का यह हाल हुआ कि वह बैठे ही रहे ऊंट बांधने वाला ये देखकर हजरत गरीब नवाज की खिदमत में हाजिर होकर आह व जारी करने लगा आपने फरमाया जा खुदा के हुक्म से ऊंट उठ जायेंगे।
आपसे राह चलते सदहा कशफ करामतें जाहिर होती थीं इबादत व रियाजत में ज्यादा वक्त गुजरता था हर रोज एक शब को एक पूरा कुरआन खत्म करते थे इश के वजू से नमाज सुबह की अदा करते तमाम तहाएफ बादशाहों गैर मुस्लिमों से आते सब गरीबों में तकसीम करते।
दिल्ली से अजमेर तशरीफ आये तो सै हुसैन मशहदी जो सुल्तान कुतुबुददीन ऐबक के दरोग थे आप उनके यहां मुकीम थे उन्होंने अपनी चचा जाद बहन बीबी असमत बिन्त सै वजीहुददीन मशहदी का अकद आपके साथ कर दिया जिनतसे तीन औलनादें थीं। ख्वाजा मोहिउददीन मो मुत्ववफी 441 हि ख्वाजा यिाउददीन अबुल खौर मुतव्वफी 665 हि. और ख्वाजा शेख हिसामुददी थे दूसरी अहलिया एक राजा की दुख्तर थीं जो उम्मतउल्ला के नाम से मशहूर थीं उनके बतन से दुख्तर बीबी हाफिजा जमाल पैदा हुईं।
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का विसाल 97 बर्स की उम्र में हुआ एक रोज बाद नमाज इशा ख्वाजा गरीब नवाज ने हुजरे का दरवाजा बंद करके सबको अंदर आने से मना फरमा दिया सुबह को खादिमों ने दरहाजा खोला तो ख्वाजा गरीब नवाज वासिले बहक हुए जुमे के दिन और 6 रज्जुबुल मुरज्जब 634 हि को आप इस दारेफानी से रूख्सत हो गये।