बयान की शैलियों में एक मुख्य शैली शेरो- शायरी है: इरशाद अंसारी
बज़्मे-एवाने- ग़ज़ल के तत्वावधान में भव्य मासिक मुशायरा आयोजित
ब्यूरो फहीम सिद्दीकी
सआदतगंज, बाराबंकी। मौज़ून कलाम यानी वज़्न पर कलाम कहना शेर कहलाता है, शेर इज़हार के ज़राएअ में एक बहुत मुअस्सिर ज़रीआ है जिस से इंसान अपनी बात दूसरों तक पहुंचाता है, दूसरों को मुतअस्सिर और क़ाएल करता है और कभी कभी घाएल भी कर देता है। बयान के असालीब में एक बड़ा असलूब शेरो- शायरी है इन ख़्यालात का इज़हार सआदतगंज की अदबी तंज़ीम “बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल” के तत्वावधान में आईडियल इंटर कालेज मोहम्मद पुर बाहूं के विशाल हाल में आयोजित होने वाले मासिक तरही मुशायरे के अध्यक्ष इरशाद अंसारी ने किया इस अज़ीमुश्शान मुशायरे की सरपरस्ती के फ़राएज़ माएल चौखण्डवी ने अंजाम फ़रमाए और संचालन राशिद ज़हूर सैदनपुरी ने किया तथा इस में मुख्य अतिथियों के तौर पर मुशायरों के कामयाब और मारूफ़ शायर कलीम तारिक़, क़य्यूम बेहटवी और असर सैदनपुरी शरीक हुए, मुशायरे की शुरूआत आफ़ताब जामी ने नात पाक से की इस के बाद दिए गए मिसरे
“तेरे सिवा किसी की मुझे आरज़ू न हो”
पर बा क़ायदा व बा ज़ाब्ता तरही मुशायरे का आग़ाज़ हुआ मुशायरा बहुत ही ज़ियादा कामयाब रहा इस में बहुत ज़ियादा पसन्द किए जाने वाले अशआर का इंतिख़ाब पेश है मुलाहिज़ा फ़रमाएं!
वाइज़ अभी शराब को बतलाएँ गे हराम
अच्छा है जामो- मय पे कोई गुफ़्तुगू न हो
माएल चौखण्डवी
खूँ अपना रोज़ बेच के लाता हूँ रोटियाँ
या रब मेरे बदन में कभी कम लहू न हो
बेढब बाराबंकवी
खो जाती है ज़बाँ की लताफ़त ही जाने- मन
दो चार दिन जो तुझ से मेरी गुफ़्तुगू न हो
ज़की तारिक़ बाराबंकवी
तब तक बदन से रूह न निकले ख़ुदा करे
जब तक नज़र के सामने मौजूद तू न हो
असर सैदनपुरी
हज़रत, जनाब, आप हो लहजे में तू न हो
मेयार से उतर के कभी गुफ़्तुगू न हो
कलीम तारिक़
कोई बताए हम को वो है कौन सा महाज़
हम ने जहाँ पे अपना बहाया लहू न हो
असलम सैदन पूरी
जब तक हर एक फ़र्द यहाँ बा वज़ू न हो
मैं चाहता हूँ तेरी कोई गुफ़्तुगू न हो
राशिद ज़हूर
आ जाना मेरे पास मेरे यार बे झिझक
जब चाके- दिल तुम्हारा किसी से रफ़ू न हो
ज़हीर रामपुरी
जिस बज़्मो- अंजुमन में मेरे तू न हो
क्या है तअज्जुब उस में अगर रंगो- बू न हो
अली बाराबंकवी
जिस ने हमारी आँखों से नींदें चुराई हैं
या रब उसे भी नींद मयस्सर कभू न हो
मुश्ताक बज़्मी
क़ल्बो- जिगर में मेरे समा जा तू इस तरह
तेरे सिवा किसी की मुझे आरज़ू न हो
क़य्यूम बेहटवी
या रब दुआ है मेरी कि अब कायनात में
पामाल बेटियों की कहीं आबरू न हो
दिलकश चौखण्डवी
क्या हम ख़ुदा के दीन पे क़ाएम हैं दोस्तो
बातिल तो चाहता है कभी अल्ला हू न हो
राशिद रफ़ीक़
कुछ इस तरह समा जा ख़ुदा मेरी रूह में
तेरे सिवा किसी की मुझे आरज़ू न हो
मिस्बाह रहमानी
शादाब हो न पाएँगी फ़सलें अनाज की
शामिल अगर जड़ों में हमारा लहू न हो
शफ़ीक़ रामपुरी
बेगम ये बोलीं डांट के सुनते हो तुम मियाँ
ख़र्चा तुम्हारे हाथ से अब फ़ालतू न हो
चटक चौखण्डवी
शोहरत का मैं चराग़ नहीं आफ़ताब हूँ
फिर क्यूँ मेरा उजाला भला चार सू न हो
आफ़ताब जामी
जिन के लहू से आज भी रौशन है कायनात
लिल्लाह उन का ज़िक्र कभी बे वज़ू न हो
ज़हीर सआदती
वो आँख कैसी जिस को तेरी जुस्तुजू न हो
वो दिल है कैसा जिस में तेरी आरज़ू न हो
इनायत अशरफ़ सैदनपुरी
मख़मूर जिस को तू करे अपनी निगाह से
उस को कभी भी ख़्वाहिशे- जामो- सबू न हो
सहर अय्यूबी
इन शोअरा के अलावा सग़ीर क़ासमी, अरशद उमैर सफ़दरगंजवी, तालिब नूर, अबू उसामा आदि ने भी अपना अपना तरही कलाम पेश किया, श्रोताओं में मास्टर मोहम्मद वसीम, मास्टर मोहम्मद क़सीम, मास्टर मोहम्मद हलीम, मास्टर मोहम्मद राशिद अंसारी और मोहम्मद नदीम अंसारी साहिबान के नाम भी क़ाबिले- ज़िक्र हैं, “बज़्मे- एवाने- ग़ज़ल” का आइंदा तरही मुशायरा 28/ जनवरी 2024 बरोज़ रविवार निम्नलिखित मिसरे पर होगा
“जा रहा है तू कहाँ मुझ को अकेला छोड़ कर”
क़ाफ़िया:- अकेला
रदीफ़:- छोड़ कर