1967 में आखरी बार हुआ था ‘वन नेशन वन इलेक्शन’
दिल्ली:
केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। 18 से 22 सितंबर के बीच 5 दिनों के इस विशेष सत्र में मोदी सरकार कोई बड़ा फैसला ले सकती है। टकलों का बाजार गर्म है। चर्चा है कि इस विशेष सत्र के दौरान केंद्र सरकार संसद में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर विशेष बिल संसद में पेश कर सकती है।
‘एक देश एक चुनाव’ के सुगबगाहट के बीच केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है जो इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ अन्य लोगों से चर्चा करेंगे।
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का मतलब पूरे देश में एक साथ लोकसभा और राज्यों विधानसभाओं के चुनाव से है। यानी वोटर लोकसभा और विधानसभा के लिए एक दिन या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट सकेंगे। आजादी के बाद देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराए गए। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग हुई, जिसके बाद देश में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की परंपरा खत्म हो गई।
कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लेकर संसद में कानून बना सकती है, लेकिन इसके लिए दो-तिहाई राज्यों की सहमति जरूरत होगी। ऐसे में नॉन बीजेपी पार्टियों की सरकारें इसका विरोध करेंगी। देश में अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो सवाल उठता है कि जिन राज्यों में अभी हाल में चुनाव हुए और सरकारें बनी है उन्हें क्या बर्खास्त कर दिया जाएगा? ऐसे में इसको लेकर कई कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं।
फिलहाल, जर्मनी, हंगरी, इंडोनेशिया, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, बेल्जियम, स्लोवेनिया और अल्बानिया जैसे देशों में एक ही बार चुनाव कराने की परंपरा है।