दलित पसमांदा मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण न देना पूर्णतया असंवैधानिक: AIPMM
लखनऊ:
भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दलित मुसलमानों एवं ईसाईयों को अनुसूचित जाति का दर्जा न दिए जाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे का विरोध करते हुए सामाजिक संगठन ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने कहां है कि जिस आधार पर केंद्र सरकार हिंदू दलित बौद्ध एवं सिखों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे रही है। उस आधार( समाज में उनके उत्पीड़न का स्तर) से ज्यादा उत्पीड़न पसमांदा मुस्लिम समाज का उन्हीं के उच्च मुस्लिम वर्ग द्वारा किया जाता रहा है। संगठन ने कहां है कि आरक्षण एक उपचारात्मक प्रक्रिया है। वह स्थाई नहीं है। देश के प्रत्येक वंचित उपेक्षित साधन हीन को जीवन की मुख्यधारा में जोड़कर समानता का आभास कराना ही भारतीय संविधान की मूल भावना है। संगठन ने कहा कि केवल इस आधार पर दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा न देना कि उनके द्वारा अपनाए गए धर्म की उत्पत्ति विदेशी मूल की है। पूर्णत्या असंवैधानिक एवं धर्म के आधार पर भेदभाव पूर्ण है। संगठन केंद्र के पूर्वर्ती निर्णय का स्वागत करता है। जिसमें केंद्र सरकार द्वारा दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने हेतु तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है। संगठन की ओर से गठित आयोग में एक पसमांदा मुस्लिम को सम्मिलित किए जाने की भी मांग की गई है। संगठन गठित आयोग के सबसे प्रमुख जांच बिंदु (पसमांदा मुसलमानों में उनके समाज द्वारा उत्पीड़न के स्तर) को अभी हाल ही में वागपत, उ० प्र० मे विजातीय प्रेमी युगल की हत्या के उदाहरण के रूप मे प्रस्तुत करेगा जिसमें मुस्लिम सय्यद लड़की के परिजनों ने निचली जाति के फकीर लड़के एवं लड़की दोनों की हत्या केवल इसलिए कर दी कि सैयद लड़की निचली मुस्लिम फकीर जाति के लड़के से विवाह कैसे कर सकती है। संगठन ने गठित आयोग के समक्ष पसमांदा मुसलमानों की तथ्यात्मक पैरवी करने की भी बात कही है।