नॉन बायोलॉजीकल से बायोलॉजीकल भये, कर-कर लंबी बात
राजेंद्र शर्मा का व्यंग्य
अब बोलें, जिन्हें मोदी जी के राज में विकास दिखाई ही नहीं देता है। यह उनकी आंखों में सिर्फ मोतियाबिंद उतर आने का मामला नहीं है, हमें तो लगता है कि उनकी नजर ही जाती रही है। वर्ना मोदी जी ने तो ऐसी-ऐसी जगहों पर और ऐसा-ऐसा विकास कर दिया है, जिसकी अब तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। नेहरू-वेहरू खानदान वालों की तो खैर बात ही क्या करना, किसी नरसिंह राव या मनमोहन सिंह ने भी नहीं और यहां तक कि प्रात:स्मरणीय वाजपेयी जी तक ने नहीं।
पहले कभी किसी ने सुना था कि कोई नॉन-बायोलॉजीकल से विकास कर के बायोलॉजीकल हो गया हो और वह भी देश के किसी कोने-कुचारे में नहीं, प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठे-बैठे! पहले नहीं सुना था ना! पर अब मोदी ने सुनवा भी दिया और वीडियो जारी कर के दिखवा भी दिया। नॉन-बॉयोलॉजीकल से बायोलॉजीकल और वह भी सिर्फ छ: महीने में। यानी न सिर्फ विकास, बल्कि ताबड़तोड़ विकास, तूफानी विकास, धुआंधार विकास। तुमको और कितना विकास मांगता है, भारतवर्ष वालों!
पर हाय, नकारात्मकता के मारे भारत देश। मोदी जी के विरोधी इस मौके पर भी अपनी नेगेटिविटी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उल्टे पूछ रहे हैं कि नॉन-बायोलॉजीकल से बायोलॉजीकल होना विकास कैसे हो गया?बायोलॉजीकल तो वैसे भी नॉन-बायोलाजीकल से छोटा शब्द है। बड़े से छोटे की ओर यात्रा को विकास कैसे कह सकते हैं। हमें तो ये ह्रास को ही विकास कहकर बेचे जाने का मामला लगता है, जिसमें मोदी जी का स्पेशलाइजेशन है।
भाई लोग इतने तक ही रुक जाते, तब तो फिर भी गनीमत थी। विकास की रफ्तार पर भी सवाल उठा रहे हैं और इसे ताबड़तोड़ ह्रास का मामला बता रहे हैं। और कह रहे हैं कि यह ताबड़तोड़ ह्रास चुनाव में पब्लिक के जोर का धक्का, जोर से ही लगाने की वजह से हुआ है। जब तक चार सौ पार की उम्मीद थी, मोदी जी नॉन-बायोलॉजीकल होने में जुटे हुए थे। पर चुनाव में पब्लिक ने ठुकरा दिया, दो सौ चालीस पर ही रोक दिया, नायडू और नीतीश की बैसाखियों का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया, तो मोदी जी को बोध प्राप्त हो गया कि वह तो बायोलॉजीकल हैं, बाकी सब की तरह। गलतियां उनसे भी हो सकती हैं, होंगी भी, देवता थोड़े ही हैं! यह बाकी सब के जैसा होने का बोध-वोध कुछ नहीं है, यह तो रपट पड़े की हर-हर गंगा है।
बेशक, ये विरोधी जबर्दस्ती विकास को ह्रास साबित करने और उसे चुनाव जैसी दुनियावी चीजों से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। पर मोदी जी, बाकी सब के जैसे होते हुए भी, इन सब से ऊपर हैं। दरअस्ल, नॉन-बायोलॉजीकल से बॉयोलॉजीकल की यात्रा के पीछे, मोदी जी की गहरी दार्शनिक विकास यात्रा है। बल्कि यहां तो मोदी जी वास्तव में भौतिकवादी-विकासवादियों की कतार में आगे लगे दिखाई देते हैं। भौतिकवादी, यही तो मानते हैं कि पदार्थ से जीव बना है। नॉन-बायोलॉजीकल से बायोलॉजीकल बना है। मोदी जी उसका साक्षात प्रमाण बन रहे हैं, तो विरोधियों को दिक्कत हो रही है।
दरअस्ल, ये विरोधी ऊपर से कितना ही सेकुलर होने का चोला ओढ़ें, भीतर से ये भी भौतिकवाद के विरोधी ही निकलेंगे। और तो और, कम्युनिस्ट तक मोदी जी का विरोध करने के चक्कर में, भौतिकवाद का भी विरोध कर रहे हैं और नॉन-बायोलॉजीकल से बायोलॉजीकल होने पर सवाल उठा रहे हैं।
दार्शनिक दृष्टि से एक और अधकचरी दलील मोदी जी के विरोधियों की यह है कि आम चुनाव के टैम पर मोदी जी नॉन-बायोलॉजीकल हो चुके थे, इसके तो साक्ष्य खुद मोदी जी की ही जुबान में मौजूद हैं। लेकिन, उससे पहले मोदी जी क्या थे — बायोलॉजीकल या नान-बायोलॉजीकल या इल्लॉजीकल!
आखिर, जब तक मां जिंदा थीं, तब तक तो मोदी जी को भी यही लगता था कि उन्हें बायोलॉजीकली पैदा किया गया था यानी बायोलॉजीकल थे! तो पहले बायोलॉजीकल, फिर नान-बायोलॉजीकल और अब फिर से बायोलॉजीकल, इसमें कोई भी, कैसा भी विकास कहां हुआ। यह तो लौट के बुद्धू घर को आए हुआ। यानी चले तो खूब पर, रहे वहीं के वहीं ; ऐसे चलने को यात्रा नहीं कहते। विकास की यात्रा कहने का तो खैर सवाल ही नहीं है। बस इसमें मोदी जी एक ही बात का संतोष कर सकते हैं कि जहां यात्रा ही नहीं है, वहां अगर विकास नहीं हो सकता, तो ह्रास भी नहीं होगा। बस मुंबइया जुबान में थंबा होगा! पर मोदी जी मूल रूप से इल्लॉजीकल ही रहे हों और बाद में नॉन बायोलॉजीकल और अब बायोलॉजीकल उसी में से निकले हों तो? है कोई जवाब!
पर मोदी जी के विरोधी भी उतने ही ढीठ हैं, दुष्टता से अब भी बाज नहीं आ रहे। कह रहे हैं कि मोदी जी के बायोलॉजीकल होने से सबसे ज्यादा खुशी भगवा पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में हैं। अडवाणी जी, जोशी जी के मन में नयी उम्मीद जाग गयी है कि मोदी जी जैसे ही 75 पार कर जाएंगे, बाकी सब की तरह वह भी मार्गदर्शक मंडल की शोभा बढ़ाने आ जाएंगे। कुछ तो नया होगा, कुछ तो बोरियत घटेगी! बस उनके मन में एक ही आशंका है — जो बंदा एक बार बायोलॉजीकल से नान बायोलॉजीकल और नान बायोलॉजीकल से बायोलॉजीकल हो सकता है, वह 75 तक पहुंचते-पहुंचते फिर से पल्टी नहीं मार जाएगा और फिर से बायोलॉजीकल से नान-बायोलॉजीकल नहीं बन जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? बायोलॉजीकल को तो वैसे भी कुर्सी का प्रेम तो बांधता ही है।
हद तो यह है कि विरोधी बायोलॉजीकल मोदी जी के यह मानने से भी खुश होकर राजी नहीं हैं कि उनसे भी गलतियां हो सकती हैं, वह देवता थोड़े ही हैं। विरोधियों के पास 2002 के गुजरात से लेकर, नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन तक, लंबी सूची है गलतियां मनवाने के लिए। उल्टे यह कहकर डरा और रहे हैं कि मोदी जी की और जोखिम उठाने की क्षमता अभी भी बाकी है यानी लोग नोटबंदी 2.0 के लिए तैयार रहें या गुजरात 2.0 के लिए! नान बायोलॉजीकल से डर नहीं लगता है साहब, बायोलॉजीकल से लगता है।