खेल रत्न अवार्ड का नया नामकरण हॉकी के जादूगर का सम्मान या अपमान?
तौक़ीर सिद्दीक़ी
आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुबह सुबह जानकारी दी कि उनसे देश भर के लोगों का आग्रह आया है कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को सम्मानित करने के लिए खेल रत्न अवार्ड उनके नाम किया जाय, सो प्रधानमंत्री जी ने तुरंत फैसला लेते हुए 1991-92 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के नाम से शुरू किये गए इस अवार्ड से तुरंत उनका नाम हटाकर मेजर ध्यानचंद का नाम जोड़ दिया और आग्रहकारियों की मांग को पूरा कर दिया।
वैसे कथित लोगों की कथित डिमांड मानने का यह बिलकुल सही समय है, ओलम्पिक में भारतीय हॉकी ने एक नई उम्मीद जगाई है, 41 साल बाद पदक जीता है, कह सकते हैं क्रिकेट के इस देश में इस समय हॉकी का माहौल है और हॉकी की बात हो रही है तो क्यों न मौके का फायदा उठाया जाय और एक तीर से दो शिकार भी हो जांय। कांग्रेस मुक्त भारत के मिशन के तहत एक पूर्व प्रधानमंत्री जिसका ताल्लुक कांग्रेस पार्टी से है और उससे भी बढ़कर नेहरू परिवार से है, उसका नाम भी हट जायेगा और मेजर ध्यानचंद को सम्मान देकर जनता की वाहवाही भी. हींग लगी न फिटकरी, रंग आया चोखा।
सामने उत्तर प्रदेश का चुनाव है और संयोग से मेजर ध्यानचंद का ताल्लुक़ भी यूपी से है और वह भी प्रयागराज से, जनता को चुनावी रैलियों में बताना भी होगा कि सरकार ने यूपी के लिए क्या-क्या किया। लो जी, इतना बड़ा काम कर दिया, यूपी की जनता का तो उद्धार हो गया. अब सीना चौड़ा करके और छाती ठोंककर कहा जायेगा कि 70 सालों में मेजर ध्यानचंद के साथ जो अन्याय हुआ उसे मेरी सरकार में न्याय मिला, हालाँकि मेजर ध्यानचंद का निधन 1979 में ही हो गया था.
हॉकी के इस जादूगर के लिए भारत रत्न की मांग बरसों से उठ रही है मगर न पिछली और पिछले सात सालों की मौजूदा सरकार की कानों पर जूं रेंगी। यहाँ तक कि कभी रहे हॉकी के इस देश में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को तो खेल रत्न मिल गया मगर लगातार तीन ओलंपिक्स में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले मेजर ध्यानचंद को इस क़ाबिल नहीं समझा गया. शायद सरकारें सोच रही होंगी कि उन्होंने अंग्रेजी शासन की नुमाइंदगी की है और अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान गोल्ड जीते हैं, राजनेता कुछ भी सोच सकते हैं.
भला हो यूपी में होने वाले चुनावों का जो सरकार का हॉकी के इस महान खिलाड़ी पर प्यार उमड़ पड़ा. लेकिन क्या ही अच्छा होता कि मेजर ध्यानचंद के नाम पर एक नए खेल अवार्ड की घोषणा होती, जिसे बेशक ही खेलों का सर्वोच्च अवार्ड कहा जाता तो यह हॉकी के इस जादूगर का सच्चा सम्मान होता। एक अवार्ड जो पहले से किसी और के नाम है उसका नया नामकरण तो मेजर ध्यानचंद का अपमान ही कहलायेगा। क्या यह सरकार इतनी गयी गुज़री हो गयी कि हॉकी के मसीहा के नाम एक नया अवार्ड भी नहीं शुरू कर सकती या फिर यह सिर्फ एक चुनावी दांव है जिसे गोदी मीडिया मास्टरस्ट्रोक कहता है. वैसे मोदी जी के इस मास्टरस्ट्रोक से ध्यानचंद जी की आत्मा बेचैन तो बहुत होगी।