राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस
- नौनिहालों को टीकाकरण की सौगात, बीमारियों को दे मात
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट में जनपद की स्थिति सुधरी
- बच्चों को छह जानलेवा बीमारियों से बचाव को लगाए जाते हैं टीके
हमीरपुर
मासूमों की मुस्कान और तोतली बोली से ही हर घर रोशन होते हैं। जन्म से लेकर एक साल तक का समय मासूमों को छह जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। इसमें की गयी चूक बच्चों की जान पर भारी पड़ सकती है। यदि किन्हीं कारणों से बच्चे टीकाकरण से वंचित रह गए हैं तो तुरंत स्वास्थ्य कार्यकर्ता या फिर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए और जितना जल्दी हो सके बच्चों को बीमारियों से बचाव के टीके लगवा देने चाहिए। हालांकि जनपद की स्थिति टीकाकरण के मामले में बेहतर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार इसमें साल दर साल सुधार हुआ है।
जनपद की 65 साल की आमना बताती हैं कि जब वह ब्याहकर आई थीं , तब स्वास्थ्य सेवाएं इतनी अच्छी नहीं थी। वर्ष 1984 में उन्होंने अपना तीन साल का बच्चा खो दिया था। उसे गलघोंटू की शिकायत हुई थी। हलक से पानी तक नहीं उतर रहा था। उस समय डॉक्टर भी कुछ नहीं कर पाए थे। उस दौर की यादों को आज भी वह अपने जेहन में जिंदा रखे हैं। इसके बाद उनके तीन और बच्चे हुए लेकिन जब बेटे को बेटा हुआ तो वह स्वयं उसे जानलेवा बीमारियों से बचाने को लेकर समय से टीका लगवाने अस्पताल जाती रहीं। इसके बारे में स्थानीय आशा कार्यकर्ता ने भी मदद की। 38 साल पहले मिली सीख को आज भी वह नहीं भूली हैं।
जिला महिला अस्पताल में अपने नवजात को टीका लगवाने पहुँचीं 24 साल की सुमन पढ़ी-लिखी हैं और जानती हैं कि टीकाकरण कितना जरूरी है। बताती हैं कि सरकारी अस्पतालों में जो टीके नि:शुल्क लगते हैं, वही टीके प्राइवेट सेक्टर में हजारों रुपए खर्च करने के बाद उपलब्ध होते हैं। लोगों को अपने बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाव को लेकर टीका जरूर लगवाना चाहिए।
क्या है टीकाकरण?
जिला महिला अस्पताल के नवजात शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष निरंजन बताते हैं कि बच्चों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को लेकर टीके लगाए जाते हैं, जिससे बच्चों के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। टीकाकरण से बच्चों को छह गंभीर संक्रामक रोगों से बचाया जाता है। इन रोगों की वजह से प्रतिदिन हजारों बच्चों की जान चली जाती है या वह अपंग हो जाते हैं। इन रोगों में खसरा, टेटनस, पोलियो, टीबी, गलघोंटू, काली खांसी, हेपेटाइटिस “बी” जैसे रोग हैं। पोलियो के अतिरिक्त सभी टीके इंजेक्शन द्वारा दिए जाते है।
गर्भवती को लगते टिटनेस से बचाव के टीके
जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ.फौजिया अंजुम नोमानी बताती हैं कि गर्भवती को टिटनेस के टीके लगाकर उन्हें व उनके नवजात शिशुओं को टिटनेस से बचाया जाता है।
याद रखे
1- बच्चों मे बीसीजी का टीका, डीपीटी के टीके की तीन खुराके, पोलियो की तीन खुराकें व खसरे का टीका उनकी पहली वर्षगांठ से पहले अवश्य लगवा लेना चाहिए।
2- यदि भूलवश कोई टीका छूट गया है तो याद आते ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता/चिकित्सक से संपर्क कर टीका लगवाएं। यह सभी टीके उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक-सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला महिला अस्पताल पर नि:शुल्क उपलब्ध हैं।
3- टीके तभी पूरी तरह से असरदार होते हैं जब सभी टीकों का पूरा कोर्स सही उम्र पर दिया जाए।
4- मामूली खांसी, सर्दी, दस्त और बुखार की अवस्था में भी यह सभी टीके लगवाना सुरक्षित है।
क्या कहता है जनपद का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-05
1- वर्ष 2015-16 में 12 से 23 माह की उम्र के 52.5 प्रतिशत बच्चों को टीके लगाए जा रहे थे। जबकि 2019-21 यह आंकड़ा बढ़कर 77.1 फीसदी हो गया।
2- 97.5 प्रतिशत बच्चों को 12 स 23 माह की उम्र में बीसीजी से बचाव का टीका लगाया जा रहा है।
3- 12 से 23 माह के 84.4 फीसदी बच्चे पोलियो की खुराक ले चुके होते हैं। जबकि इससे पूर्व यही आंकड़ा 56.9 फीसदी का था।
4- इसी आयुवर्ग के 86.6 फीसदी बच्चे पेंटा और डीपीटी वैक्सीन के टीके लगवा चुके होते हैं। इससे पहले यह आंकड़ा 72.2 फीसदी पर था।
5- 92.5 फीसदी बच्चों को खसरा से बचाव के टीके लग चुके होते हैं। इससे पूर्व 73.9 फीसदी बच्चों को ही खसरा से बचाव के टीके लग रहे थे।