नाम के साथ मोहम्मद या अहमद का इज़ाफ़ा
मोहम्मद आरिफ नगरामी
शख्सियतसाजी और एख्लाक वा आमाल की तामीर में ‘‘नाम’’ अहम और बुनियादी रोल अदा करता है। इसीलिए माआल्लिमे आजम हजरत मोहम्मद (स अ ) ने अच्छे और पसंदीदा नाम रखने की तालीम फरमाई और हमें इस तरह ‘‘राजे हयात’’ समझा गये। तुम कयामत में अपने बापों के नाम से पुकारे जाओगे। इसलिए तुम अपना नाम अच्छा रखो। चुनानचे रसूले रकीम (स अ ) ने जहां अपने इरशाद में पैगम्बरों के नाम रखने की तालीम दी है तो दूसरी तरफ अपने गोशए जिगर और सबसे छोटे फरजंद का नाम ‘‘ इब्राहीम’’ रखकर उम्मत के लिए इस मसले की शरई नुक्तए नजर भी अपने अमल से वाजेह फरमा दी।
जब नबियों के नाम सबसे अफजल वा आला है तो रसूले करीम (स अ ) का नाम कितना अशरफ व बरकत है और फिर उनके नाम पर नाम रखना किस दर्जा सआदत की बात होगी। रसूले करीम (स अ ) के बेशुमार नाम हैं. बाज उलमा 60, बाज ने 99, बाज ने 200, 300 और बाज ने 500, बाज ने एक हजार तादाद बताई है। अल्लामा जलाल उद्दीन सियोती ने अपनी किताब में रसूले करीम के 500 नाम शुमार कराये है। जबकि काजी अबू बक्र बिन अल अनबी ने तिरमजी में हजार नाम गिरामी नकल किये हैं। लेकिन इन तमाम नामों में ‘मोहम्मद’ और अहमद सबसे ज्यादा मशहूर है। ‘मोहम्मद’ तो कुरआने करीम में कई जगह आया है और अहमद का इंजील ओर दीगर आसमानी किताबों में जिक्र आया है।
‘मोहम्मद’ के मानी है जिसकी ज्यादा तारीफ की जाए और ज्यादा तारीफ अच्छी खसलतों की जियादती की वह से होेती है तो हम यूं भी कह सकते कि ‘मोहम्मद’ के मानी है जिसकी अच्छी आदते ज्यादा हो और अहमद के मानी हैं जो अपने रब की तारीफ ज्यादा करे। काजी अयाज फरमाते है कि रसूले करीम अहमद पहले है और मोहम्मद के बाद. इसलिए कि विलादत व साआदत के फौरन बाद से सिजदे की शक्ल में आप (स अ ) ने अपने रब की हम्द शुरू कर दी थी। आसमानी किताबों में आप (स अ ) की बशारत बनाम अहमद पहले आई है और ‘मोहम्मद’ का नाम तजाकिरे कुरआन में बाद में हुआ है। इसी तरह आखरत में आप (स अ ) के हाथ में हम्द का झंडा होगा और आप बाहालते सिजदा अपने रब की बहुत ज्यादा तारीफ करेंगे। फिर आप (स अ ) को शिफाअते उजमा की इजाजत मिलेगी और आप (स अ ) तमाम मुसलमानों की शिफाअत फरमायेंगे जिसके बाद लोग आपकी बहुत ज्यादा मदद व तारीफ करेंगे तो यहां भी अहमद पहले होंगे और मोहम्मद बाद में।
काजी अयाज ने लिखा हे कि नाम ‘मोहम्मद’ को अल्लाह ताला ने अजल से अछूता बना कर रखा, पूरी तारीखें इंसानियत में इस नाम से कोई शख्स मौसूम नहीं हो सका। अलबत्ता जब ‘‘पैदाइशे मोहम्मद’’ का वक्त करीब हो गया और राहिबों और काहिनो ने जब ‘मोहम्मद’ रसूले करीम (स अ ) के आमद की खुशखबरी सुनाई तो अरब के लोगो नेे अपने बेटों का नाम ‘मोहम्मद’ रखना शुरू कर दिया। ताकि नबुव्वत से सरफराज हो सके।
बहरहाल ख्वाह मोहम्मद नाम हो या अहमद आप (स अ ) के दोनों नामों पर नाम रखना बाइसे शर्फ व फजीलत है मसनदे हारिस बिन उसामा की एक मारफू हदीस नकल की है। जिस शख्स के तीन लड़के और उनमें से एक का नाम भी मोहम्मद ना रखे तो उसने जेहालत का काम किया। इमाम मालिक फरमाते है कि मैंने मदीना मुनव्वरा के लोगों को यह कहते हुए सुना है कि जिस घर में भी मोहम्मद नामी शख्स होगा उसको रिज्के खैर से नवाजा जाएगा। इमामुल अस्र अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी ने तबरानी की हदीस नकल की है जो अपने बेटे का नाम मोहम्मद रखे तो मैं कयामत में उसकी शिफाअत करूंगा। मोहम्मद नाम रखने के सिलसिले में आप (स अ ) ने सिर्फ जुबानी इरशाद व तरगीब पर बस नहीं फरमाया बल्कि बहुत से सहाबा किराम के लड़कों के नाम ‘‘मोहम्मद’’ आप ने खुद रखे हैं।