ज़मीन हिलती थी और आसमान रोता था–ज़मीने गर्म पे सिब्ते नबी का लाशा था
दसवीं मुहर्रम पर विशेष
आज की तारीख़ इसलाम की सरबुलंदी और यज़ीदी मुसलमानों की पस्ती की है। इमाम हुसैन तीन दिन के प्यासे थे, उनका कुनबा और कारवां भी प्यासा था मगर दीने इस्लाम की नुसरत में भूख प्यास आड़े नहीं आई। सुबहे आशूर ( मुहर्रम की दस तारीख़ ) नुमुदार हुयी, इमाम हुसैन के बेटे अली अकबर ( जिन की शक्ल और आवाज़ रसूले ख़ुदा से मिलती थी ) ने अज़ान दी, इधर नमाज़ शुरू हुई कि यज़ीदी मुसलमानों ने ढोल बजा कर जंग का एलान कर दिया, इमाम हुसैन के असहाब व् अंसार ने अपनी जान दे कर कुर्बानियां पेश करनी शुरू कर दी। जब सब ने अपनी क़ुरबानी दे दी तो घर के अफ़राद बढे, कभी मौला अली के बेटों ने क़ुरबानी दी तो कभी इमाम के भांजों ने अपनी गर्दने कटा कर इस्लाम बचाया।
इमाम हुसैन के 13 बरस के भतीजे क़ासिम ज़िन्दगी में ही घोड़ो से पामाल हो गए, उनके जिस्म के टुकड़े मैदान में बिखर गए जिसे इमाम हुसैन अपने दामन में समेट कर लाये, फिर अलमदारे हुसैन हज़रत अब्बास ने इजाज़त मांगी, इमाम ने उनको लड़ने की इजाज़त न दी, हाँ पानी लाने को कहा, हज़रत अब्बास दरिया पर गये, 4000 का लश्कर हैबते अब्बास से भाग गया, मौला अब्बास ने मश्क भरी, उनका तो हुसैन से बच्चों से पहले पानी पीने का सवाल ही नहीं था मगर उनके वफ़ादार घोड़े ने भी पानी की तरफ नहीं देखा, जब मश्को अलम ले कर ख़ैमें की तरफ चले तो एक शक़ी ने धोखे से हाथ काट दिया, फिर दूसरा हाथ भी कट गया, मगर अलम और मश्क को न गिरने दिया कि एक तीर ने मशके सकीना को छेद दिया, पानी ज़ामीन पर गिर गया, वह फिर दरिया की तरफ पलटे, एक बुज़दिल ने सर पर ग़र्ज़ मारा और आप ज़ामीन पर आ गए, इमाम ने कमर थामी, अली अकबर ने हज़रत अब्बास का अलम उठाया, जब अलम ख़ैमे में आया तो सैदानियों में कोहराम मच गया। जैसे वह अलम नहीं जनाबे अब्बास का लाशा हो।
अब 18 साल के बेटे अली अकबर ने नुसरत की इजाज़त मांगी, नवजवान बेटा बूढ़े बाप से इजाज़त माग रहा है, बाप क्या करे मगर रसूल के दीन को बचाने की ख़ातिर इजाज़त दी, एक शक़ी ने नैज़ा मारा जो जिगर के पार हो गया, इमाम घुटनियों के बल चल कर बेटे के पास गए, दुनियां ने देखा बूढा बाप जवान बेटे की मैय्यत पीठ पर ला रहा है। अब कोई न बचा इमाम ने नारा इस्तगासा लगाया, (है कोई जो मेरी मदद को आये ) तब छः माह के अली असग़र ने अपने को झूले से गिरा लिया, गोया बच्चे ने अपने अमल से मदद की आवाज़ पर लबबैक कहा, इमाम अली असग़र को ले कर मैदान में आये और मुसलमानों से कहा, यह बच्चा तीन दिन का भूखा प्यासा है, इसकी माँ भी प्यासी है, जिससे उसका दूध खुश्क हो गया है, इसे दो बूंद पानी पिला दो, पानी तो नही दिया हाँ तीर मार कर बच्चे को शहीद कर दिया।
अब इमाम हुसैन अकेले है और मैदान में इस्लाम बचाने के लिए जंग कर रहे हैं, मगर लाखों दुश्मनों ने एक साथ हमला कर दिया, जब इमाम हुसैन घोड़े से ज़ामीन पर आये तो आप का जिस्म तीरों पर मोअल्क़ था, आपने सजदे में सर रख कर अल्लाह का शुक्र अदा क्या, शिम्र ने सजदे में ही आप के सर को जिस्म से जुदा कर नैज़े पर बुलंद कर दिया। यह ज़ुल्म की इंतहा थी।
बादे शहादते इमाम हुसैन मुस्लमान बेहयाई पर उतर आया, जिस नबी का कलमा पढता था उसी की निवासियों के सरों से चादरें छीन ली, मुसलमानों ने इमाम हुसैन के ख़ैमो में आग लगा दी, इमाम हुसैन की चार साल की बच्ची सकीना के कानों से बुन्दे खींच लिए जिससे कानों से ख़ून जारी हो गया, मुंह पर तमाचे लगाये, और उन्हें क़ैद कर लिया।
मुस्लमान इतना बिगड़ चुका था कि अपने हाथों न सिर्फ़ रसूल के फ़रज़न्द और उनके घर को तबाह कर रहा था बल्कि इस्लाम को भी क़त्ल कर गया।
लानत है ऐसे मुसलमानों पर जो इस्लाम और फर्ज़न्दे रसूल इस्लाम और मोहसिने इंसानियत के क़ातिल थे।