मदर्स डे स्पेशल–कोरोना का बोझ भी उठा लेगी माँ
ज़ीनत शम्स
मदर्स डे मनाने का विचार सन 1870 में अमेरिका की जूलिया होव को आया था| हर वर्ष वह मदर्स डे मनाकर महिलाओं को प्रोत्साहित करती थीं| दस वर्षों तक जूलिया अपने खर्च से मदर्स डे मनाती रहीं | 8 मई 1914 से अमेरिका में मदर्स डे मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा, आज यह पूरे विश्व में मनाया जाता है|
आज के युग की महिलाऐं 19 वीं सदी की महिलाओं से बहुत आगे हैं| पहले महिलाओं को सिर्फ घर संभालना होता था, अब घर और बाहर दोनों संभालना पड़ता है | पहले दौर की महिलाऐं नौकरी या रोज़गार नहीं करती थीं या बहुत कम करती थी इसलिए उनके लिए बच्चों की परवरिश करना आज के समय की तरह मुश्किल नहीं था| मगर अब महिलाओं को घर व बाहर दोनों जगह संघर्ष करना पड़ रहा है | घर परिवार की देखभाल और बच्चों की परवरिश के साथ साथ अपना करियर भी!
आज जब हम एकल परिवार के युग में जी रहे हैं तो बच्चों का पालन पोषण मुश्किल बनता जा रहा है | मजबूरन घर की ज़िम्मेदारियों को आया के हवाले करना या मेड के हवाले करना पड़ता है , क्रश में बच्चों को डालना पड़ता है| हम आजकी बात करें तो वर्किंग मदर की नींद कोरोना ने उड़ा दी है | बहुत सी मदर घर में रह रहे बुज़ुर्गों पर अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी छोड़कर अपने ऑफिस और बिजनेस के कामों को अंजाम देती हैं| कुछ मदर्स अपने छोटे बच्चों को अपने साथ रखकर ड्यूटी निभाती हैं मगर कोरोना के इस माहौल ने बड़ी दिक्कत पैदा कर दी है| मेडिकल, पैरामेडिकल, पैथॉलॉजी लैब्स, पुलिस और दूसरे आपातकालीन विभागों में काम करने वाली महिलाऐं अपने बच्चों से मिल नहीं पा रही हैं, देख नहीं पा रही है| वह घर नहीं जा सकती क्योंकि वह कोरोना वारियर हैं| मां से दूर जब छोटे बच्चे रोते हैं तो बड़ा मार्मिक दृश्य बनता है, कैसी मजबूरी है, मां अपने जिगर के टुकड़े को गले से नहीं लगा सकती |
वर्किंग मदर्स के लिए कोरोना ने बहुत बड़ी समस्या कड़ी कर दी है| अब वह कैसे आया के सहारे अपने बच्चों को घर पर अकेला छोड़ेंगी, कैसे क्रश पर भरोसा करेंगी कि वहां उनका बच्चा सुरक्षित है| उनके खान पान पहनावा हर बात में हाइजेनिक होना| एक बड़ी समस्या है, सरकार ने कहा दिया है कि हमें कोरोना के साथ जीना है| ऐसे में सबसे ज़्यादा दिक्कत वर्किंग मदर्स को होने वाली है| पहले से ज़िम्मेदारियों के बोझ तले आज की माँ पर कोरोना ने एक बोझ और डाल दिया है| लेकिन माँ तो माँ ही होती है, एक बोझ और सही, कोरोना का बोझ भी उठा लेगी|